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बिहार में बेलगाम अपराध, नकेल कसने में बेबस दिख रहे CM नीतीश कुमार

बिहार में अफसर अब अपने मुख्यमंत्री की बात को भी अनसुना कर रहे हैं?

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को अपने अफसरों की बैठक बुलाई थी. बिहार में अपराध के बढ़ते ग्राफ के मद्देनजर उम्मीद थी कि नीतीश आला अधिकारियों को क्राइम कंट्रोल को लेकर कोई बड़ा आदेश देंगे. सूबे में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को देखते हुए अधिकारियों को नई रणनीति बनाने को कहेंगे. हालांकि बिहार के गृह सचिव अमीर सुबहानी ने बैठक के बाद पत्रकारों को जो बताया, उसके मुताबिक तो 6 घंटे से ज्यादा चली इस मैराथन मीटिंग में नीतीश ने पुरानी बातों को ही दोहराया.

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सुबहानी के मुताबिक, बैठक में बिहार में क्राइम काबू में होने की बात कही गई. साथ ही पुलिस और पब्लिक पर हमला करने वालों पर सख्ती से निपटने को कहा गया. वहीं शराब और बालू माफिया से सख्ती से निपटने का आदेश भी मुख्यमंत्री ने दिया.

पुलिस और प्रशासनिक टीम पर हमले की घटना पर उन्होंने चिंता जताई और इसमें लिप्त असामाजिक तत्वों पर तुरंत कार्रवाई का आदेश भी नीतीश ने दिया. साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि मामला किसी भी इलाके का हो, पीड़ित व्यक्ति की शिकायत को तुरंत दर्ज किया जाए. अपराधियों को स्पीडी ट्राइल के मार्फत जल्द से जल्द सजा दिलाई जाए. जिन थानों में अपराध के मामलों में इजाफा होगा, वहां के थानेदार का तबदला करने की बात भी नीतीश ने कही.

ये सारी बातें पहली नजर में तो अच्छी लगती हैं, लेकिन समस्या यह है कि लगभग यही बातें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फरवरी में कानून-व्यवस्था की समीक्षा बैठक में कही थी. इससे पहले बीते साल दिसंबर में भी एक समीक्षा बैठक में नीतीश ने यही बातें की थीं.

इससे पहले बीते साल सितंबर में नीतीश की पुलिस के आला अधिकारियों की बैठक का लब्बोलुआब भी करीब-करीब यही था. तो क्या बिहार में अफसर अब अपने मुख्यमंत्री की बात को भी अनसुना कर रहे हैं?

बिहार में अफसर अब अपने मुख्यमंत्री की बात को भी अनसुना कर रहे हैं?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को अपने अफसरों की बैठक बुलाई थी.
(फोटो: PTI)

बिहार में कानून-व्यवस्था मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण रहा है. उनके धुर विरोधी भी मानते हैं कि 2005 में बिहार में सत्ता संभालने के बाद सूबे में अपराध कम हुआ. राज्य में लगातार तीन विधानसभा चुनाव में नीतीश की जीत के पीछे इसे एक अहम कारण माना जाता है. हालांकि बीते कुछ महीनों में उनकी इस छवि एक के बाद एक कई झटके लगे.

इसकी शुरुआत इस साल मार्च में बिहार में रामनवमी के मौके पर फैली सांप्रदायिक हिंसा से हुई. इसके बाद तो लगातार ही बिहार में अपराध के कई 'हाई-प्रोफाइल' मामले सामने आए. मसलन, जुलाई में पटना में सरकार के एक डिप्टी डायरेक्टर की अपराधियों ने घर में घुसकर हत्या कर दी. वहीं अगस्त में कुख्यात डॉन संतोष झा को भी अपराधियों ने कोर्ट कैंपस में ही गोलियों से भून डाला.

मॉब लिंचिंग के बढ़ते मामलों ने आग में घी का काम किया. बिहार में बीते हफ्ते में 5 लोगों की हत्या भीड़ के हाथों हो चुकी है. बेगूसराय में एक बच्ची के अपहरण को आए तीन अपराधियों की भीड़ ने जान ले ली. वहीं सीतामढ़ी में भी एक युवक को ‘तालिबानी भीड़’ ने मार डाला. इसके अलावा, सासाराम शहर में रेलवे के क्लर्क से पैसे छीन रहे एक लुटरे की भी भीड़ ने मार-मार कर जान ले ली. इन सभी मामलों में नीतीश्‍ा की पुलिस तमाशबीन ही नजर आए.
बिहार में अफसर अब अपने मुख्यमंत्री की बात को भी अनसुना कर रहे हैं?
पिछले दिनों मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं को गुस्सैल फौज के सदस्यों ने अंजाम दिया है.
(फोटो: क्विंट)

राज्य में नीतीश का 'सुशासन' उस वक्त निर्वस्त्र हुआ, जब आरा के पास बिहियां में भीड़ ने एक महिला के कपड़े फाड़कर उसे नग्न घुमाया. इस घटना ने सभ्य समाज को झकझोर कर रख दिया. वहीं बीते हफ्ते सासाराम में एक दलित महिला की भीड़ ने पीटकर हत्या भी कर दी.

अब राज्य के कैमूर, जहानाबाद, नालंदा, दरभंगा और सहरसा जैसे कई इलाकों से लड़कियों के साथ छेड़खानी और बलात्कार के वीडियो को भी वायरल करने का मामला सामने आया है.

राज्य सरकार के अपने आंकड़ों की मानें, तो इस साल मई और जून महीनों मे रिकॉर्ड अपराध दर्ज हुए हैं. सूबे में मई के महीने में करीब 26 हजार, तो जून के महीने में 24,244 मामले दर्ज हुए. यह नीतीश के बीते 13 साल के शासनकाल में सबसे ज्यादा है.

हत्या के मामलों में अगस्त में बीते साल की तुलना में 8 फीसदी का इजाफा हुआ है. अपहरण और बलात्कार के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है. इस साल जून तक सूबे में महिलाओं से जुड़े अपराध के कुल मिलाकर 7,683 मामले दर्ज किए गए हैं. हालांकि पुलिस के अधिकारी इस आकलन को सही नहीं मानते. बिहार पुलिस के एडीजी (हेडक्वाटर्स) एसके सिंघल के मुताबिक, बिहार में अपराध में कमी आई है.

वैसे, रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों और विश्लेषकों की मानें, तो 13 बरसों के नीतीश के शासनकाल में पहली बार जनता को लग रहा है कि अपराधी बेलगाम हो गए हैं. पटना यूनिवर्सिटी के पटना कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल एकके चौधरी ने कहा, “नीतीश की यूएसपी थी अपराध पर लगाम. हालांकि बीते दिनों जिस तरह अपराध के मामलों में इजाफा हुआ, उससे उनकी छवि को ठेस लगी है. इसके लिए सीधे तौर पर बेलगाम अफसरशाही जिम्मेदार है.” पुलिस के कई रिटायर्ड अफसरों भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं.

राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने माना कि पुलिस जवानों का मनोबल कमजोर हुआ है. उनके मुताबिक बीते 12 बरसों मे सुधार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग की पारदर्शी व्यवस्था बनाने में नाकाम रही है. ऊपर से शराबबंदी के बढ़ते दबाव की वजह से भी पुलिसवालों का ध्यान कानून-व्यवस्था से हटा है. लोगों का भी भीड़ पर से भरोसा कम हुआ है. उन्होंने कहा, “जनता को पुलिस और न्याय व्यवस्था पर भरोसा होता, तो वह मुजरिमों को हमारे हवाले करती. अगर भीड़ कानून अपने हाथ में ले रही, तो इसका सीधा मतलब है कि पुलिस अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही है.”

बिहार में अफसर अब अपने मुख्यमंत्री की बात को भी अनसुना कर रहे हैं?

(निहारिका पटना की जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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