अफगानिस्तान (Afghanistan) के स्पिन बोल्डक में पुलित्जर पुरस्कार विजेता और भारत में रॉयटर्स मल्टीमीडिया टीम के प्रमुख फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी (Danish Siddiqui) की हत्या 16 जुलाई को तब कर दी गई, जब वो तालिबान और अफगानिस्तान नेशनल सिक्योरिटी फोर्स (ANSF) के बीच चल रहे वॉर को कवर करने के लिए गए थे. सिद्दीकी एएनएसएफ के साथ जुड़े हुए थे और उस बल की एक टुकड़ी के साथ थे, जिसने स्पिन बोल्डक में तालिबान से मुकाबला किया था.
दानिश सिद्दीकी की हत्या किस तरह से हुई है यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है और अफगान सिक्योरिटी ने भी भारतीय अफसरों को अभी तक इस बारे में कोई सूचना नहीं दी है. आधिकारिक तौर पर काबुल और दिल्ली द्वारा अभी तक यह भी पुष्टि नहीं की गई है कि उनके शव को किस बेरहमी से खराब किया गया, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उनके शव को गाड़ी से कुचला गया था.
सरकार को देना चाहिए आधिकारिक बयान
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से साप्ताहिक प्रेस कांफ्रेंस में पूछा गया था कि “भारत उनकी हत्या और शव के साथ की गई बर्बरता की जांच कर रहा है कि नहीं ? तो बागची ने कहा था कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है क्योंकि ये हादसा अफगानिस्तान में हुआ है, लेकिन ये जरूर पता है कि उस वक्त हालात क्या थे जब ये हत्या हुई."
अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए अलग-अलग बातें सामने आ रही है. यूएस की एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से भारतीय मीडिया ने छापा कि सिद्दीकी की मौत क्रॉसफायर के दौरान नहीं हुई. उन्हें जिंदा पकड़ा गया था और मार दिया गया, फिर शव को भी क्षत विक्षत कर दिया गया.
बागची ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि सरकार को उन परिस्थितियों का पता है जिसमें तालिबान द्वारा सिद्दीकी को मारा गया था. मीडिया रिपोर्ट्स में कयास से बेहतर यह होगा की भारतीय अधिकारियों को उस घटना के बारे में जो भी मालूम है वह सब बता देना चाहिए.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर दानिश की इतनी निर्मम हत्या की गयी है तो तालिबान को इस घटना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. यह तालिबान के लिए एक परीक्षा होगी, क्योंकि वह दावा कर रहा है कि वह पकड़े गए एएनएसएफ कर्मियों के साथ मानवीय व्यवहार कर रहा है.
सिर्फ सहानुभूति से काम नहीं चलेगा
भारत को हर स्थिति में दानिश सिद्दीकी के साथ न्याय सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करना होगा. यह भारत का हर उस भारतीय नागरिक के प्रति दायित्व है जो विदेशों में अपराध का शिकार होता है. अगर कोई भी भारतीय नागरिक विदेश में अपराध का शिकार हुआ हो, तो भारत के अधिकारियों को उस देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के हिसाब से न्याय की मांग करनी चाहिए. और अगर यह आतंकवादियों के हाथ होता है, तो उस अपराध को भुलाया या माफ नहीं किया जाना चाहिए और न्याय होने तक फाइल को खुला रखा जाना चाहिए, चाहे इसमें कितना भी समय लगे.
हमलों में कई भारतीय मारे गए हैं
सिद्दीकी की मौत उन सभी भारतीयों की याद दिलाती है जो असामान्य परिस्थितियों में विदेश में या भारत की सीमाओं के बाहर मारे गए. सन 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 के हाईजैक के दौरान, मसूद अजहर जो अब पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख है, उसके साथियों ने एक भारतीय युवा, रूपिन कात्याल की विमान में बेरहमी से हत्या कर दी थी. कात्याल काठमांडू में हनीमून मनाकर अपनी दुल्हन के साथ दिल्ली लौट रहे थे. सीबीआई ने पाकिस्तानी हत्यारों के खिलाफ मामला दर्ज किया. हालांकि दो दशक से अधिक समय बीत चुका है, भारत को कात्याल की हत्या को भूलना या माफ नहीं करना चाहिए.
पाकिस्तानियों ने आतंकियों से भारतीयों पर काबुल में दो हमले कराए. पहले केस में 2008 में भारती दूतावास के सामने एक शक्तिशाली विस्फोट. हमले में मिशन के काउंसिलर और एक अन्य अपसर मारे गए थे. इसमें कई सामान्य अफगानी भी मारे गए थे. दूसरे हमले में एक ऐसे होटल पर हमला किया गया जहां भारतीय रुके हुए थे. इसमें 9 भारतीयों की मत हो गई थी. इनमें दो आर्मी अफसर भी थे. इन गुनाहों को भी नहीं भूल सकते.
मुंबई में हुए आतंकवादी हमले को लेकर न्याय दिलाने के मामले में पाकिस्तान की रुचि नहीं दिख रही लेकिन भारत को दबाए बनाए रखना चाहिए. इसके साथ ही लश्कर-ए-तैयबा पर 160 निर्दोष भारतीयों को मारने का आरोप है. भारत को इस मामले में लगातार कदम उठाकर दुनिया को दिखाना चाहिए कि वो अपने लोगों को नहीं भूलेगा जब तक उन्हें इंसाफ नहीं मिल जाता. सरकार को ऐसे सभी मामलों पर नजर रखने के लिए आधुनिक कार्यप्रणाली बनाने पर विचार करना चाहिए.
ऐसा ही एक मामला जिस पर निश्चित रूप से नजर रखने की आवश्यकता है, वह है इटालियन मरीन सलवटोर गिरोन और मासिमिलियानो लैटोर का, जिनपर दो भारतीय मछुआरों अजेश पिंक और वेलेंटाइन जेलेस्टिन की हत्या का इटालियन कोर्ट में मुकदमा चल रहा है.
तालिबान अफगान मामलों का अहम हिस्सा हो गया है. तालिबान ने सिद्धीकी की हत्या की है और उसके कई धड़ों ने अफगानिस्तान में भारतीयों को निशाना बनाया है, फिर भी हमें तालिबान से बात करनी चाहिए. इसका मतलब ये नहीं है कि हम सिद्दीकी, कात्याल और 2008, 2010 में मारे गए लोगों के लिए इंसाफ न मांगें. असल में इसी पर तालिबान से गंभीर बातचीत होनी चाहिए. जो मारे गए हैं उनके लिए इंसाफ मांगना राष्ट्रीय हित को अनदेखा करना नहीं है.
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव (वेस्ट) रह चुके हैं. उनसे @vivekkatju पर संपर्क किया जा सकता है. ये एक ओपिनियन लेख है और इससे क्विंट का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.)
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