किसी ‘अपने’ गुट की महिला बुर्का पहनकर बाजार निकलती है. उसकी 'गलती' थी कि उसकी आंखें फिर भी दिख रही थीं. मोरल पुलिस के लिए इतना काफी है. बस जड़ दिया आंख में एक घूंसा. महिला हमेशा के लिए आंशिक रूप से अंधी हो गई.
‘अपने’ ही गुट के एक सम्मानित व्यक्ति. उस समय के सरकारी महकमे में बड़े अधिकारी थे. व्यवस्था से तंग आ गए. शहर छोड़ने का फैसला किया. अपनी सारी जमा पूंजी बैंक से निकाली और लगे सामान पैक करने. बैंक से पैसे की निकासी की भनक मोरल पुलिस को लग गई. कुछ ही घंटे में घर पर धमक हुई और दे डाली धमकी. फिर इस तरह की बात सोचे भी, तो सर फोड़ दिया जाए.
‘अपनों’ को संदेश दिया गया कि जिनके साथ वो बड़े हुए, स्कूल-कॉलेज गए, सुख-दुख के दिन बिताए, वो दरअसल अपने हैं ही नहीं. वो सिर्फ पराए ही नहीं, दुश्मन भी हैं. उसकी सारी जायदाद हड़पी जाएगी. दुश्मनों से हड़पी हुई जमीन-जायदाद के लिए ‘अपने’ बोली लगा सकते हैं. जिनकी बोली सबसे दमदार होगी, जायदाद उनकी हो जाएगी.
ये तीनों मनगढ़ंत कहानियां नहीं हैं. तीनों अमेरिका की प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की शानदार रिपोर्ट से निकाली गई तीन घटनाएं हैं, जो इराक के मोसुल शहर में हुई थीं, जब वहां आतंकी संगठन ISIS का शासन था. यह रिपोर्ट कई महीने की रिसर्च का नतीजा है. इसके लिए सैकड़ों लोगों से बात की गई, हजारों दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया.
रिपोर्ट में दिल दहलाने वाली बातों का जिक्र है. और सबसे बड़ी बात- हमें पहली बार ठीक से पता चल रहा है कि आतंकियों ने प्रशासन के काम को कैसे अंजाम दिया. लगभग तीन सालों तक उस संगठन ने करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों पर राज किया. उसके कब्जे में इराक का महत्वपूर्ण शहर मोसुल भी था. और कब्जे वाला इलाका ब्रिटेन के बराबर.
उसके राज में सिर्फ सुन्नी ‘अपने’ थे. शिया और ईसाइयों को इलाके से भगाया गया और सारी जमीन-जायदाद हड़पकर बाकी आबादी में बांट दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली की व्यवस्था काफी अच्छी थी, नल में पानी की सप्लाई भी चौबीसों घंटे.
मोसुल वाले अब भी बताते हैं कि उस समय शहर की स्वच्छता में कोई कमी नहीं थी, म्यूनिसिपल कर्मचारी काफी मुस्तैदी से काम करते थे. टैक्स की जबर्दस्त वसूली हो रही थी. एक मैरिज ब्यूरो था, जिसका काम मेडिकल रिपोर्ट की जांच कर दंपतियों को होने वाले संतान के बारे में बताना था. खेती और कारोबार पर टैक्स से आमदनी, कच्चा तेल बेचकर होने वाली कमाई से कहीं ज्यादा थी. कुछ मिलाकर प्रशासन बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त.
लेकिन किसके लिए और किस कीमत पर? एक नमूना देखिए. आतंकियों के कब्जे के बाद एग्री विभाग का एक सीन. सबको लगातार काम करने को कहा गया. समय से आने और समय पर जाने का फरमान.
सबसे पहले विभाग से शिया और ईसाइयों को निकाला गया. फिर फरमान आया कि महिलाएं काम नहीं करेंगी. वो घर पर ही रहें. दफ्तर में चल रहे क्रेच बंद कर दिए गए. विभाग का लीगल डिपार्टमेंट भी बंद कर दिया गया. यह बता दिया गया कि लड़ाइयों का फैसला ईश्वरीय नियमों के तहत होगा.
बारिश मापने की मशीन बंद कर दी गई. तर्क दिया गया कि बारिश ईश्वर की देन है, इसे मानवीय शक्ति से कैसे मापा जा सकता है? कर्मचारियों को दाढ़ी नहीं काटने की हिदायत दी गई. साथ ही पतलून के साइज को छोटा करने को कहा गया.
एक फरमान जारी हुआ, जिसके शब्द कुछ इस तरह थे— आजकल मुस्लिमों की दिक्कत है कि पुरुषों का कपड़ा जरूरत से ज्यादा लंबा है और महिलाओं का जरूरत से ज्यादा छोटा.
साथ ही एग्री विभाग का सबसे बड़ा काम हो गया सरकारी जमीन को लीज पर देकर रेंट की वसूली करना. सरकारी जमीन का बड़ा हिस्सा वो जमीन थे, जो दुश्मन से छीने गए थे. विभाग का काम था दुश्मनों की प्रॉपर्टी की लिस्ट बनाना और उस पर कब्जा कर सुन्नियों में बांटना. सारा काम जल्दबाजी में, जिससे टैक्स की वसूली तेजी से बढ़ सके.
सरकार के कुल 14 विभाग थे और नई बात थी मोरल पुलिस का होना, जिसके पास सबसे ज्यादा अधिकार थे. उसका काम सिर्फ बात मनवाना होता था. कोई जिरह नहीं, कोई बहस नहीं. बस सजा सुनाई जाती थी और सजा के खिलाफ अपील की कोई गुंजाइश नहीं.
कुल मिलाकर, ऐसा सिस्टम था, जिसमें कुछ लोग सबकुछ तय करते थे और बाकियों के लिए (जो कहने के लिए अपने धर्म वाले थे) उनको शब्दश: मानने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं होता था. सजा भी ऐसी कि रूह कांप जाए. आधुनिक सभ्यता को पूरी तरह से शर्मसार करने वाले.
कई सारी जिद एकसाथ मिली थी— हमारे धार्मिक तरीकों को अपनाओ, नहीं तो भागो. तुम मरो या जिओ, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हमें हर हाल में टैक्स देते रहो. हम इतनी सुविधाएं देते रहेंगे, जो तुम्हें जिंदा रखने के लिए काफी हो. इसके आगे की सोचना भी नहीं, और इससे भागने की तो कतई नहीं.
हमारे जैसी डेमोक्रेसी में रहने वालों के लिए इसमें बड़ा सबक है. ISIS के कसाईपन से बचने का एक ही तरीका है— हमें हर हाल में अपनी डेमोक्रेसी को बचाना और मजबूत करना है.
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