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Exclusive:भारतीय बंधकों की रिहाई में अड़चन, तालिबान पर ISI का दबाव

केईसी इंटरनेशनल के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए अफगान पब्लिक प्रोटेक्शन फोर्स के 60 सुरक्षाकर्मी तैनात थे

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अफगानिस्तान में भारत के जिन पावर लाइन इंजीनियरों को पिछले वीकेंड अगवा किया गया, उन्हें अभी तालिबान के नियंत्रण वाले गांव डंड-ए-शहाबुद्दीन में रखा गया है. यह अफगानिस्तान के बागलान क्षेत्र के शहर पुल-ए-खुमरी में पड़ता है. वहां की सरकार के उच्चस्तरीय सूत्रों ने यह जानकारी दी है.

उन्होंने बताया कि गांव के बुजुर्गों और धार्मिक नेताओं के जरिये स्थानीय प्रशासन ने इंजीनियरों को रिहा कराने के लिए कारी बख्तियार से बातचीत शुरू की है. बख्तियार कुंदुज क्षेत्र का पख्तून और बागलान क्षेत्र में तालिबान का डिप्टी चीफ है.

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भारत के बढ़ते प्रभाव से टेंशन में पाकिस्तान

बागलान के एक बड़े अधिकारी ने बताया, ''रविवार की सुबह बख्तियार ने कहा था कि भारतीय इंजीनियरों को गलती से अगवा किया गया है और उन्हें जल्द रिहा कर दिया जाएगा.''

हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि इंजीनियरों के अपहरण की खबर को मीडिया में प्रमुखता दिए जाने के बाद उनकी रिहाई की बातचीत रुक गई. अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी, रियासत-ए-अमीनियत-ए-मिल्ली यानी नेशनल डायरेक्टोरेट ऑफ सिक्योरिटी का कहना है कि बख्तियार पर शायद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपहरण करने के लिए दबाव डाला है, ताकि भारतीय बिजली कंपनियों को उत्तरी अफगानिस्तान से बाहर किया जा सके.

सूत्रों ने बताया कि जब भारतीय इंजीनियरों को अगवा किया गया, तब वे बिना सुरक्षा दस्ते के सफर कर रहे थे, क्योंकि उन्हें स्थानीय कॉन्ट्रैक्टर्स और तालिबान से किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाए जाने का आश्वासन मिला था. ये लोग वर्ल्ड बैंक की फंडिंग वाले एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, जिसके तहत मध्य एशिया से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पावर सप्लायर्स को जोड़ा जा रहा है.

अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव ने आईएसआई को काफी समय से बेचैन किया हुआ है. उसे लगता है कि भारत के साथ आर्थिक रिश्तों में मजबूती आने से अफगानिस्तान में पाकिस्तान का प्रभाव कम हो रहा है.

आरपीजी गोयनका ग्रुप की केईसी इंटरनेशनल सहित दो भारतीय कंपनियों ने 2017 में अफगानिस्तान की सरकारी कंपनी से 23.51 करोड़ डॉलर का कासा-1,000 पावर लाइन प्रोजेक्ट का ठेका हासिल किया था. इसमें पाकिस्तान को अफगानिस्तान के जरिये किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान से जोड़ा जाना था. अफगानिस्तान सरकार इस प्रोजेक्ट से सालाना 5 करोड़ डॉलर के ट्रांजिट फी की उम्मीद कर रही है.

केईसी इंटरनेशनल के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए अफगान पब्लिक प्रोटेक्शन फोर्स के 60 सुरक्षाकर्मी तैनात थे
अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव ने आईएसआई को काफी समय से बेचैन किया हुआ है
(Photo: Reuters)

बागलान के गवर्नर अब्दुल हई नेमती के प्रवक्ता ने क्विंट को बताया कि केईसी इंटरनेशनल के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए अफगान पब्लिक प्रोटेक्शन फोर्स के 60 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था. कासा-1,000 प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने के तुरंत बाद दिसंबर 2017 में देश की वायुसेना की मदद से अफगानी सुरक्षा बलों ने पुल-ए-खुमरी से तालिबानी विद्रोहियों को खदेड़ने के लिए बड़ा अभियान शुरू किया था.

इसके बाद मार्च में बख्तियार के नेतृत्व में तालिबान ने जवाबी हमला किया और उसने उज्बेकिस्तान से बिजली की सप्लाई करने वाले टावरों को उड़ा दिया. इससे काबुल और गजनी सहित कई इलाकों में बिजली सप्लाई प्रभावित हुई थी.

अफगानिस्तान सरकार के सूत्रों ने बताया कि स्थानीय पुलिस चीफ, ब्रिगेडियर जनरल अकरमुद्दीन सारी के इस क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों को भेजने के बावजूद तालिबान के हमले के डर से तकनीकी स्टाफ टावरों को ठीक करने को तैयार नहीं हुआ.

पुलिस ने तब बख्तियार पर दबाव बढ़ाया और उसके बेटे तारिक को हिरासत में ले लिया. इसके बाद डंड-ए-शहाबुद्दीन के बुजुर्गों और धार्मिक नेताओं की मदद से दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोशिश हुई. इस मामले में आखिर में एक अजीब समझौता हुआ. इसके तहत तालिबान ने पावर लाइन पर काम शुरू करने की इजाजत दी और बदले में घायल तालिबानी लड़ाकों के पुल-ए-खुमरी में इलाज का वादा हासिल किया.

तालिबान से यह भी कहा गया कि उसके नियंत्रण वाले गांवों में भी बिजली की सप्लाई की जाएगी. सुलह के बाद केईसी के इंजीनियरों को क्षतिग्रस्त टावरों पर काम करने के लिए भेजा गया. स्थानीय लोगों की सलाह पर उन्होंने सरकारी सुरक्षाबलों की मदद नहीं ली, क्योंकि इससे तालिबान के हमले का डर था. सरकारी सूत्रों ने बताया कि बागलान के गवर्नर नेमती ने भी कंपनी के इस फैसले का विरोध नहीं किया.

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तालिबान, स्थानीय लड़ाकों, सुरक्षाबलों के बीच वर्चस्व की जंग

हालांकि, 2015 के बाद से तालिबान ने ऐसे स्थानीय उग्रवादियों को यहां से खदेड़ना शुरू कर दिया था. तालिबान ने पख्तून बहुल डंड-ए-घोरी क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाई, जो पुल-ए-खुमरी के उत्तर-पश्चिम में स्थित है. उसी साल सितंबर में तालिबान ने डंड-ए-घोरी पर कब्जा कर लिया और अफगानिस्तानी सुरक्षा बलों के हाथों शिकस्त का सामना करने से पहले पांच महीनों तक इस पर नियंत्रण बनाए रखा.

बागलान क्षेत्र में लड़ाई तेज हो रही है. 2016 के बाद तालिबान का इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ा है. इस क्षेत्र के कबायली सरदारों इस्माइल खान और मुहम्मद अता ने सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद में बड़ी भूमिका निभाई थी. ये दोनों अफगानिस्तान सरकार की बागलान में चलने नहीं दे रहे हैं और उनके बीच आपसी रंजिश भी है. इसके अलावा, मुस्तफा अंद्राबी जैसे स्थानीय उग्रवादी कमांडर बागलान-बालख हाइवे से गुजरने वालों से वसूली करते थे. यह हाइवे काबुल को उत्तर अफगानिस्तान से जोड़ता है.

संख्या कम होने की वजह से सुरक्षाबलों को डंड-ए-घोरी की सुरक्षा का जिम्मा मजबूरन मुल्ला आलम नाम के स्थानीय लड़ाके को सौंपना पड़ा. आलम अहमदजाई पख्तून है और सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद में वह भी शामिल था. उसके रिश्ते हिज्ब-ए-इस्लामी-ए अफगानिस्तान से हैं.

इसके कुछ ही दिनों बाद मुल्ला आलम और उसके लड़ाकों को तालिबान ने हरा दिया. हालांकि दोनों पक्षों के बीच अभी भी लड़ाई चल रही है. 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया था कि डंड-ए-घोरी और डंड-ए-शहाबुद्दीन में लड़ाई के चलते 32,500 लोग विस्थापित हुए हैं. तालिबान इस क्षेत्र में अपना प्रभाव भी बढ़ा रहा है. उसने 2016 में चश्मा-ए-शीर नाम के गांव पर नियंत्रण कर लिया था. उसका बागलान-बालख हाइवे पर भी कंट्रोल है. वह इस पर ट्रकों और किसानों से वसूली करता है. तालिबान ने स्थानीय विरोध को पूरी तरह कुचल डाला है.

(लेखक सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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