ऐसा लगता नहीं कि पाकिस्तान जिन रहस्यपूर्ण और दावपेंच की स्थितियों से घिरा है उसका निकट भविष्य में कोई अंत होने वाला है. अमेरिका की कंपनी है CastelliumAI. इसके नेतृत्वकर्ताओं में यूएस ट्रेजरी डिपार्टमेंट के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और फिनान्शियल टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञ होते हैं.कंपनी की रिपोर्ट कहती है कि मार्च 2020 से आगे पाकिस्तान ने अपनी सूची में बड़े पैमाने पर आतंकियों के नाम हटाए हैं और इसे 7600 से घटाकर 4000 के करीब कर दिया है.
इनमें से ज्यादातर को ‘डी-नोटिफाइड लिस्ट’ में डाल दिया गया है. यह सबकुछ उस डेडलाइन से ठीक पहले हुआ है जो फिनान्शिलय एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने दे रखी थी. यह आतंकियों को वित्तीय मदद और मनी लाउन्ड्रिंग पर विश्वस्तर पर निगाह रखती है.
इसने पाकिस्तान को खुद को साफ-सुथरा बताने के लिए जून 2020 तक का समय दिया था. इसमें असफल होने पर पाकिस्तान ‘ब्लैक लिस्ट’ यानी काली सूची के दायरे में चला जाएगा.इसका मतलब होगा कि अंतरराष्ट्रीय निकायों से उसे उदार लोन नहीं मिलेंगे और सबसे महत्वपूर्ण यह कि पूरब और पश्चिम में पाकिस्तान की संदिग्ध गतिविधियां पर वित्तीय संस्थाओं की निगाह रहेगी.
- आतंकियों को वित्तीय मदद और मनी लाउन्ड्रिंग पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था फिनान्शियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए जून 2020 तक का समय दिया था.
- पाकिस्तान ने बड़े पैमाने पर अपनी सूची को छोटा करते हुए ‘आतंकियों’ की संख्या 7600 से घटाकर 4000 कर दिया और इनमें से ज्यादातर को ‘डी नोटिफाइड लिस्ट’ में शामिल कर दिया.एफएटीएफ डेडलाइन के तुरंत पहले ऐसा किया गया.
- पाकिस्तान में आतंकियों की सूची में नाम डालने की प्रक्रिया उसी तरह नौकरशाही और बहुविभागीय है जैसी कि भारत में होती है.
- पाकिस्तान में सूची में नाम डालने की प्रक्रिया बहुत सरल है. कागज पर पाकिस्तान की एंटी टेररिस्ट एक्ट 1997, जिसे संशोधित कर 2018 कर दिया गया है, के अनुसार सूची में यूएन की ओर से घोषित सभी नाम दर्ज होने चाहिए. लेकिन, ऐसा होता नहीं है.
आतंकियों की सूची छोटी करने को लेकर ‘बहाना’ बहाने से पाकिस्तान को नहीं होगा कोई फायदा
पहला खुद पदनामों की सूची है. निस्संदेह यह बहुत अच्छे तरीके से एक साथ रखा गया है जिसमें सभी संबंधित विवरण हैं जिनमें कंप्यूटराइज्ड नैशनल आइडेंटिटी कार्ड (सीएनआईसी) नंबर, परिवार का ब्योरा और दूसरे ब्योरे हैं, जो सभी ठीक-ठाक व्यवस्थित हैं. लेकिन इसका मिलान यूएन सिक्योरिटी काउंसिल सैंक्शन्स लिस्ट से कर पाना असंभव है.
उदाहरण के लिए आतंकी अलग-अलग नामों से आगे बढ़ते हैं जिसे अलग-अलग तरीके से बताया जा सकता है. उसके बाद आंकड़े बदलने लग जाते हैं.
हाफिज सईद लिस्ट में बना हुआ है लेकिन उसका सीएनआईसी नंबर यूएन लिस्ट से अलग है. एक और उदाहरण है जकी उर रहमान लखवी का, जो दोनों में से किसी भी सूची में नहीं है. न तो उसका आइडेंटिटी कार्ड नम्बर है और न ही किसी तरीके से उससे मिलता जुलता कोई नाम.
तहरीक-ए-तालीबान (टीटीपी) के मौलाना फजलुल्लाह, जो पाकिस्तान की सेना के लिए प्राथमिक खतरा है, फजल हयात के रूप में डी-नोटिफाइड है. इससे यह मान्यता पुख्ता होती है कि उसके मरने की अफवाह सही है. टीटीपी का एक और सदस्य आमिर अली, जो यूएन की सूची में भी है, का नाम पूरी तरह से गायब है. हालांकि स्वात घाटी से लोगों का एक पूरा जत्था ही आतंकियों के रूप में सूचीबद्ध है. बेशक सूची में बड़ी संख्या में बलूचों के नाम हैं.
आज की तारीख में कांट-छांट के बाद पाकिस्तान की सूची में बहिष्कृत 3602 लोग हैं जबकि डी नोटिफाइड लिस्टी मोटी होकर 4003 तक पहुंच गयी है. इनमें पहली सूची से हटाए गये सभी नाम शामिल नहीं हैं.
पाकिस्तान अपनी ‘आतंकियों की सूची’ के साथ कैसे बढ़े?
कैस्टेलियम एआई ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को सूचनाएं उपलब्ध करायी, जिसने पाकिस्तानी अधिकारियों से संपर्क किया और स्वाभाविक रूप उन्होंने इसे अनसुना कर दिया. रिपोर्टर किसी तरीके से पाकिस्तान में एक सेक्शन ऑफिसर से संपर्क साध सका जिन्होंने बताया कि ‘मोटी सूची’की वजह कई ‘गलत सूचनाएं’ हैं. इनमें बहुत पहले मर चुके लोग हैं और वैसे अपराध हैं जिनका आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है.
यही वह स्पष्टीकरण हैं जो जांच के दौरान खरे नहीं उतरते.
पाकिस्तान में आतंकियों की सूची में नाम डालने की प्रक्रिया उसी तरह नौकरशाही और बहुविभागीय है जैसी कि भारत में होती है. ईमानदारी के साथ ऐसा कोई भी काम करने में कई साल अगर नहीं लगते तो महीनों जरूर लग जाते हैं. और निश्चित रूप से इसे मीडिया कवरेज में प्रमुखता मिलती, क्योंकि 4000 से ज्यादा लोगों के नाम सूची से बाहर होने पर उनके समर्थक इसका जश्न मनाते.
पाकिस्तान में सूची में नाम डालने की प्रक्रिया बहुत सरल है. कागज पर पाकिस्तान की एंटी टेररिस्ट एक्ट 1997 जिसे संशोधित कर 2018 कर दिया गया है. इसके अनुसार सूची में यूएन की ओर से घोषित सभी नाम दर्ज होने चाहिए. लेकिन, ऐसा होता नहीं है.
इस तरह हाफिज सईद को एक ‘आतंकी’ के तौर पर सूची में नाम डालने के लिए एक पूरा खेल खेलना होता है जहां पुलिस असत्यापित आरोप लगाती है और जज मौन धारण किए रहते हैं. आतंकवाद विरोधी विस्तृत ढांचा भी अस्तित्व में है. उदाहरण के लिए राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी प्राधिकरण है जिसमें 13 मंत्रालय और विभाग हैं, 14 फेडरल लॉ इनफोर्समेंट एंड इंटेलिजेंस एजेंसियां हैं और 12 प्रोविन्शियल डिपार्टमेंट्स हैं और इसे मुख्य को-ऑर्डिनेटर माना जाता है. यह निकाय दंतहीन है.
मौलाना लुधियानवी जैसे आतंकी भी हैं जो सेलेब्रिटी माने जाते हैं जो नेताओँ को चुनाव जीतने में मदद करते हैं. 2018 में उसका नाम आतंकियों की सूची से बाहर निकाल लिया गया.
वह संसद सदस्य बनने के करीब पहुंच गया. इन बातों से यह भी पता चलता है कि महत्वाकांक्षी पुलिस अधिकारी आतंकवाद विरोधी विभागों में तैनाती के लिए रिश्वत देने को आतुर क्यों रहते हैं. पूरा खेल ही निरर्थक लगता है.
‘सबसे अधिक परेशान करने वाले’ आतंकियों को अन्यत्र स्थापित करने की कोशिशों में भी लगा रहा है पाकिस्तान
जब आतंकियों की सूची से नाम मिटाने की कवायद चल रही थी पाकिस्तान कुछ सबसे ज्यादा परेशान करने वाले आतंकियों को दूर भगाने की कोशिश में भी लगा हुआ था. पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर भारतीय लड़ाकू विमानों के हमले के तुरंत बाद फरवरी 2019 में यह अफवाह फैलने लगी कि जैश प्रमुख मसूद अजहर मारा गया. भारतीय एजेंसियों ने सार्वजनिक रूप से इस दावे की छीछालेदर कर दी.
तब खबर आयी कि अजहर बहुत बीमार है और उसे रावलपिंडी के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
जुलाई में एक और खबर आयी कि अस्पताल में हुए विस्फोट में 10 लोगों की मौत हो गयी है. 2020 की शुरुआत में पाकिस्तान के अधिकारी उसकी किडनी खराब होने की चर्चा कर रहे थे और मीडिया से किसी संबंध से वह दूरी बनाए हुए था. यहा तक कि एफएटीएफ को भी उन्होंने यही बताया कि वह और उसका परिवार ‘लापता’ हैं. दूसरे मामले में पाकिस्तानी अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि फरवरी 2020 में तहरीक-ए-तालिबान का इंशाउल्लाह एहसान जिसने संभवत: 2017 में आत्मसमर्पण किया था, वह हिरासत से भाग निकला. एक बार फिर अफवाह तंत्र ने उसका तुर्की में होना बताया.
अपने कई साथियों की गिरफ्तारी में ‘सहयोग’ देने वाले मुख्य व्यक्ति अहसान से अगर एफएटीएफ की ओर से किसी ने भी पूछताछ की होती तो वह पूरी बात उगल देता.
पाकिस्तान किसी को मूर्ख नहीं बना सकता
कारी युनूस और शेख खालिद हक्कानी की मौत हो जाती है. ये टीटीपी से भी जुड़े थे लेकिन रहस्यपूर्ण तरीके से काबुल में इन्हें मार डाला गया.जैसा कि प्रोफेसर मार्विन जी वीनबाउम गौर करते हैं कि उनके शव काबुल से पाकिस्तान लाए गये जो अब भी विचित्र लगता है. कारी युनूस वैसा आतंकी था जिसकी वफादारी संभवत: एक से अधिक के साथ थी.इससे भी भयानक बात यह है कि फरवरी में पाकिस्तान ने दावा किया कि यूएन की ओर से घोषित 16 आतंकियों में से 7 की मौत हो गयी.
यह है पाकिस्तान. और, एफएटीएफ जो उच्चस्तरीय गोपनीय संस्था है वह इस पर कुछ नहीं कहेगी. लेकिन किसी को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता.
जांच और होगी और शायद ऐसे सवाल पूछे जाएं कि किस तरह से यह प्रक्रिया पूरी हुई और उसका आधार क्या रहा. उम्मीद है कि इसमें वैसे सवाल भी शामिल रहेंगे जिनमें पाकिस्तान के इंटीरियर मिनिस्टर ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) एजाज शाह जो पूर्व आईबी प्रमुख हैं और अगस्त 2019 में तैनात हुए थे. शाह ने कई आतंकियों और आतंकी संगठनों को बनाया और बर्बाद भी किया जिसकी याद दिलाना वे पसंद करते हैं.
वे अपने पूर्व तानाशाह के लिए ‘फिक्सर’ थे और ‘निर्वाचित’ प्रधानमंत्री के लिए भी उनके लिए फिक्सिंग से ज्यादा कोई मसला नहीं था. लेकिन केवल उनको श्रेय देना अन्यायपूर्ण होगा. वास्तविक सच्चाई यह है कि पूरी मशीनरी ही आतंकी पैसों से चल रही थी. सबकुछ उसी पर निर्भर था जिसे आप कहते हैं ‘आतंकी’.
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