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View:श्रीनगर में G20 बैठक क्यों? जो तस्वीर दिखाई जा रही,उससे कहीं ज्यादा छिपा है

सरकार का मानना ​​​​है कि PR का हाई डोज देकर कश्मीर में उसकी परेशानी को कम किया जा सकता है.

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(22 मई से श्रीनगर में हो रही G20 बैठक ने कश्मीर के आसपास की राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए स्थल के चयन को लेकर एक बहस छेड़ दी है. हालांकि, इस लेख में कार्यक्रम स्थल के चयन के खिलाफ तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं. यहां क्लिक करके इसके पक्ष में तर्क ढूंढें.)

शानदार तरीके से सुस्सजित श्रीनगर शहर (Srinagar) G 20 की मेजबानी कर रहा है. स्थानीय प्रशासन इस इवेंट को एक शानदार सफलता बनाने के लिए हर तरह के कदम उठा रहा है. देशभर में हो रही कुल 215 G20 बैठकों में से केवल चार पर्यटन को बढ़ावा देने से संबंधित हैं. कुछ लोगों का ये सवाल भी है कि देश के सुदूर उत्तर में जो हमेशा से राजनीतिक तनाव और हिंसा से प्रभावित रहा है, वहां पर G20 बैठक क्यों आयोजित की जा रही है?

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इसका जवाब शायद यह है कि मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के चार साल बाद, राज्य में इन केंद्रीय अभियानों ने जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक माहौल को और भी ज्यादा तनावपूर्ण और जटिल बना दिया है.

परिसीमन हो, डोमिसाइल रूल या लैंड रूल में बदलाव, मोदी सरकार की पॉलिसी आम पब्लिक में अलोकप्रिय साबित हुई हैं, केंद्र सरकार द्वारा चुने हुए एक उपराज्यपाल के लिए ऐसी पॉलिसीज को मंजूरी देना आसान होता है. वहीं राज्य सरकार शायद ऐसी पॉलिसिज को मंजूरी नहीं देती, क्योंकि इससे वोटर्स में आक्रोश पैदा होता.

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इसलिए, राजनीतिक अभाव को पार करने के लिए लोकतंत्र पर भरोसा करने की बजाय, सरकार का मानना है कि जनसंपर्क ऊर्जा की मात्रा पर मंथन करके कश्मीर में उसकी परेशानियों को कम किया जा सकता है.

किनारे पर लोग

इस बैठक ने पहले ही श्रीनगर के निवासियों को चिंतित कर दिया था. हालांकि, श्रीनगर शहर के 1000 करोड़ रुपये के मेकओवर को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा भी खूब हो रही है, लेकिन घाटी में इस महंगे अर्बन मेकओवर के अलावा वास्तविकता कुछ और भी है.

बैठक की तैयारियों के साथ बड़े पैमाने पर सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें बेतरतीबी से लोगों को सड़क के बीच में रोका जा रहा है और लोगों की तलाशी ली जा रही है. दोपहिया वाहन जिनके पास पूरे कागज नहीं मिले, उनके वाहनों को जब्त करने की खबरें भी हैं. पूरी घाटी में बड़ी संख्या में कुछ लोगों को हिरासत में लेने की सूचना मिली है. एक पत्रकार से बात करते हुए एक पुलिस सूत्र ने खुद गिरफ्तारियों की पुष्टि की. हालांकि उसने ये भी बताया कि उन्हें आतंकवादी हमलों के इनपुट मिले थे, जिसके बाद ये कदम उठाना पड़ा.

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जिन जगहों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, उनके आसपास मौजूद कारोबारियों की शिकायत है कि कंस्ट्रक्शन के काम की वजह से उनके कारोबार पर असर पड़ा है. इन लोगों का कहना है कि उनके बिजनेस का नुकसान हो रहा है. क्योंकि उनके इलाके में ग्राहक आजकल कम आ रहे हैं.

सुरक्षा उपाय में बढ़ोत्तरी

अतिसंवेदशील इलाकों के स्कूलों को बंद करने का निर्देश दिया गया है, यहां तक कि गैर स्थानीय मजदूरों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है. इन लोगों को 27 मई तक सार्वजनिक जगहों पर जाने से बचने की सलाह दी गई है.

उन पुलिस अधिकारियों की जांच की जा रही है, जो लोग मेहमानों की सुरक्षा में तैनात होंगे, जम्मू-कश्मीर पुलिस के काउंटरिंटेलीजेंस यूनिट्स द्वारा उनके बैकग्राउंड की जांच की जा रही है, वहीं उन दो होटलों के स्टाफ की भी पूरी जांच की जा रही है, जहां विदेशी वीआईपी मेहमान ठहरे हैं. शायद प्रशासन भी अब उन लोगों से सावधान हो गई है, जो पीएमओ ऑफिशियल होने का झूठा दावा करते हैं. मरीन कमांडोज को श्रीनगर की डल झील के आसपास तैनात किया गया है और उनकी मोटरबोट किसी भी तरह के खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

पिछले दो हफ्तों में, NIA के साथ-साथ राज्य की जांच एंजेसी (SIU) ने पूरे कश्मीर में छापे मारे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश के कई इलाकों में गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू कर दिया है.
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पोटेमकिन गांव

100 के करीब जी 20 डेलीगेट्स को जो घाटी का दौरा कर रहे हैं कि उन्हें कश्मीर के सुरक्षा हलात की भनक भी नहीं लगेगी. श्रीनगर प्रशासन 44 करोड़ रुपये खर्च कर यहां कि मिलिट्री आउटलुक को बदलने की कोशिश कर रही है, डेलिगेट्स को शहर ज्यादा खूबसूरत और शांत लगे.

डेलीगेट्स को एस्कॉर्ट करने वाले सुरक्षा कर्मियों को इस तरह से ट्रेन किया गया है, जिससे उनका अपीयरेंस ज्यादा आक्रमक न दिखे. साथ हैं में सभी संवेदनशील जगहों पर तैनात ब्लास्ट प्रूफ व्हीकल्स को G20 मीट तक के लिया हटा दिया गया है, जी20 मीट के बाद शायद उन्हें दोबारा तैनात किया जाएगा.

जी-20 से पहले जिस तरह का उत्साह और व्यापक प्रचार-प्रसार एक स्तर पर किया जा रहा है, वह जीत की निशानी है.

लेकिन कुछ हद तक ये असफलता की भी निशानी है,. ऐसा इसलिए है क्योंकि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता की अनुपस्थिति के कारण पैदा हुई खाई को engineered तरीके से परसेप्शन बदलने की कोशिश कर रही है.

दावों और वास्तविकता के बीच अंतर

उदाहरण के लिए, अगर आप भी उन लोगों में से थे जो "नया कश्मीर" की भव्यता और इसके आस-पास बड़ाई भरे कथनों से अभिभूत थे तो आप शायद ही विश्वास करेंगे कि जम्मू और कश्मीर में वर्तमान में देश में सबसे अधिक बेरोजगारी दरों में से एक है (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार 23.1 प्रतिशत).

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या कि इसका निवेश 2017-2018 में 840.55 करोड़ रुपये से घटकर 2021-2022 में 376.76 करोड़ रुपये रह गया है. ये आंकड़े मूल रूप से दिसंबर में संसद में पेश किए गए थे. हालांकि, आलोचनाओं के बाद गृह मंत्रालय ने जनवरी में इस आंकड़े को संशोधित किया और दावा किया कि पिछले तीन वर्षों में (UT) को 56,000 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है.

जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए अभूतपूर्व संख्या में पर्यटकों के आगमन को एक वरदान के रूप में पेश करने के हाई-ऑक्टेन कैंपेन के बावजूद, पर्यटन का योगदान UT के कुल GDP का केवल 6 प्रतिशत है.

इसके अलावा, सेवा और कृषि क्षेत्र हैं, जो सबसे बड़े प्रभावक हैं. इन क्षेत्रों को 2019 के लॉकडाउन और COVID द्वारा उत्पन्न विघटनों के बाद संकट का सामना करना पड़ रहा है. जम्मू और कश्मीर के छोटे उद्योग भी सरकार द्वारा स्थानीय उपकरणों की खरीद के प्रवृत्ति को रोकने और एक अखिल भारतीय स्तर के प्रतियोगिता में नवीनीकृत कॉन्ट्रैक्ट जारी करने के बाद संघर्ष कर रहे हैं.

मेरा मतलब यह नहीं है कि कश्मीर के पास जटिल समस्याएं हैं, बल्कि एक चुनी हुई सरकार, जिसकी सच्ची प्रतिनिधित्व क्षमता है, ही सिर्फ उन समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होती है.
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पहले भी हुई राजनयिक यात्रा

यह पहली बार नहीं है जब सरकार उथल-पुथल भरे पूर्व राज्य के आसपास विदेशी राजनयिकों का दौरा करा रही है. पिछले मौकों पर जब इस तरह के दौरे आयोजित किए गए थे, तो वे अगस्त 2019 को लागू किए गए परिवर्तनों को सामान्य बनाने की कोशिश के लिए आलोचना के घेरे में आ गए थे. यही कारण है कि अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फर्नांड डी वेरेन्स ने "अनजाने में" कश्मीर में सामान्य स्थिति का "मुखौटा" का समर्थन करने के लिए G20 देशों को फटकार लगाई है.

वारेन्स ने कहा कि श्रीनगर में पर्यटन पर कार्य समूह की जी20 बैठक आयोजित करके, सरकार इसे सामान्य करने की कोशिश कर रही है जिसे कुछ लोगों ने सैन्य कब्जे के रूप में वर्णित किया है. यह कहते हुए कि जम्मू और कश्मीर में संवैधानिक परिवर्तनों को अंतरराष्ट्रीय "अनुमोदन की मुहर" के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा था.

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संयुक्त राष्ट्र के विशेष शासनादेश धारकों द्वारा की गई आलोचना इस बात का संकेत देती है कि वैश्विक स्तर पर अब और अधिक लोग कश्मीर में हो रही बड़ी घटनाओं की प्रकृति और उनके राजनीतिक संदेश के प्रति सतर्क हो रहे हैं. चीन और तुर्की जैसे देश श्रीनगर की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं. ऐसा ही स्टैंड सऊदी अरब ने लिया है.

G20 की बैठक, जितना उजागर कर रही है, उससे कहीं अधिक चीजों को अदृश्य बना सकती है.

कश्मीर पर काम करने वाली स्कालर अनन्या जहांआरा कबीर हमें "mimetic capital" से रूबरू कराती हैं. वो mimesis के जरिए कश्नीर की सुंदरता को बयां करती है.

पिछले हफ्ते, जब श्रीनगर में  नई बनी पोलो व्यू स्ट्रीट की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं,तो इसे 'landscape of fantasy' कहा गया. ” 

G20 की बैठक भी, जितना उजागर कर रही है, उससे कहीं अधिक अदृश्य हो सकती है.

(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने The Wire.in, Article 14, Caravan, Firstpost, The Times of India, आदि के लिए भी लिखा है. उनका ट्विटर हैंडल @shakirmir है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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