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लालकिले से PM मोदी का भाषण: कितनी हकीकत, कितना फसाना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से भारत जोड़ो’ की बात की, लेकिन वह किसे साथ लाना चाहते हैं?  

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प्रधानमंत्री के भाषण में बहुत कुछ था और कुछ भी नहीं था. टुकड़ों में वह जरूर अच्छा लगा. प्रधानमंत्री बेहतरीन शब्द भंडार वाले शानदार वक्ता हैं और हम में से कोई भी इसके लिए उनसे ईर्ष्या नहीं करता. लेकिन इन शब्दों, इशारों और अलंकारों से वह जो कुछ भी कहते हैं, वह हमें चिंता में डालता है.

पीएम ने भाषण में राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता बताया और इसमें कुछ सीना ठोकने वाला भाव था: “सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दुनिया भी हमारी ताकत का लोहा मानने लगी है.”

कांग्रेस का देश की सेना को समर्थन किसी से कमतर नहीं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर मोदी सरकार का प्रदर्शन, खुद की तारीफों के पुल बांधने और वास्तविकता के अंतर को देखें तो यह शर्मनाक रहा है.

मई 2014 से अब तक 172 आतंकवादी हमले (अकेले जम्मू-कश्मीर में 13 बड़े हमले) हो चुके हैं, जिनमें हमारी जांबाज सेना के 578 जवान शहीद हो चुके हैं और 877 नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं. बीते तीन सालों में हिंसा की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जबकि इससे पहले यह ट्रेंड ढलान पर था. सर्जिकल स्ट्राइक हालांकि सही तरीके से की गई थी, लेकिन उसके बाद सीजफायर उल्लंघन की 300 घटनाएं हो चुकी हैं. जाहिर है उन लोगों में कोई डर नहीं पैदा हुआ.

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आतंकवाद के खिलाफ क्या प्रभावी कदम उठाया?

वह प्रभावी कार्रवाई कहां है, जिसके बारे में पीएम बात करते हैं? उनकी सरकार हमारे खुद के आर्मी कैंप को भी हमलों से सुरक्षित रख पाने में नाकाम है. पिछले साल एक के बाद एक पठानकोट, उरी और नागरौटा में हमले हुए. आर्मी कैंपों की सुरक्षा पर कैंपोस कमेटी रिपोर्ट मार्च 2016 में जमा कर कर दी गई थी, लेकिन यह रक्षा मंत्रालय में आठ महीने तक बिना अमल किए पड़ी रही और इस दौरान दो और हमले हो गए, फिर भी जिनके सिर कटे वो आतंक के पीड़ित थे, ना कि मोदी सरकार के अफसर.

कई देश आज आतंक के खिलाफ लड़ाई में भारत की मदद कर रहे हैं. 
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

लेकिन यह भी हकीकत है कि बीते 70 सालों में पहली बार लंबे वक्त भारत से दोस्ती निभाते रहे रूस ने पाकिस्तान को हथियार की बिक्री पर लगी रोक हटा दी है. वह पाकिस्तान को MI-35 हेलिकॉप्टर बेच रहा है और उसके साथ सैन्य सहयोग समझौता भी कर लिया है, जिसमें पहली बार रूस और पाकिस्तान का सितंबर 2016 में हुआ संयुक्त सैन्य अभ्यास भी शामिल है.

इसमें से कुछ उस क्षेत्र में भी हुए, जिसे भारत, ‘अधिगृहीत कश्मीर’ कहता है, लेकिन अब शायद रूस इस मसले पर भारत की संवेदनाओं की परवाह नहीं करता. चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के भारतीय संप्रभु क्षेत्र से गुजरने को लेकर भारत के एतराज के बावजूद रूस ने इसे पूरा समर्थन दिया.

शब्दों की जुगालीः गाली-गोली-गले

जब हम कश्मीर का जिक्र कर रहे हैं, पीएम की गाली-गोली-गले की तुकबंदी सबसे यादगार लाइनें हैं. लेकिन शब्दों के चाहे कितने भी मुलम्मे चढ़ा दें, यह हकीकत छिप नहीं सकती कि बीजेपी सरकार, खासकर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार जनता की उम्मीदों पर बुरी तरह नाकाम हुई.

तकरीबन एक साल से सड़कों पर हिंसा और पत्थरबाजी से कश्मीर जल रहा है, स्कूलों को आग लगाई जा रही है और विकास थम गया है. बीते दो दशकों की तुलना में ज्यादा से ज्यादा युवा आतंकवाद की राह पकड़ रहे हैं, कारोबार और पर्यटन का भट्टा बैठ चुका है.

आतंकवादी संसदीय उप-चुनाव से दूर रहने के लिए जनता को धमकाने में कामयाब रहे, जिसके नतीजे में इतिहास का सबसे कम मतदान हुआ. पाकिस्तान और ISIS के झंडे घाटी में लहराए जाते हैं और एक डीएसपी और छुट्टी पर गए सेना के लेफ्टिनेंट की हत्या कर दी जाती है.
प्रधानमंत्री इन सबमें खुश होने वाली कौन सी बात ढूंढ पाते हैं?

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सांप्रदायिक घटनाओं से त्रस्त है देश

प्रधानमंत्री मोदी एक जुमले की तरह कहते हैं, “आजाद भारत में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. आस्था के नाम पर हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी.” हो सकता है देश इसे स्वीकार ना करे, लेकिन इस हिंसा को बढ़ावा देने वाले तो खुद उन्हीं की पार्टी के हैं.

बीते साल सांप्रदायिक हिंसा की 703 घटनाएं (बीजेपी के सत्ता संभालने के बाद यह आंकड़ा हर साल बढ़ता गया) हुईं. बीते तीन सालों में मॉब लिंचिंग की 58 घटनाएं हुईं, जिनमें से ज्यादातर हमलावर बीजेपी की नीतियों और बयानों से उत्साहित गोरक्षक थे, जिन्होंने “गोरक्षा” के नाम पर हमले किए और लोगों की जानें लीं. ( बीते 10 साल में हुए भीड़ के सभी हमलों का 92 फीसदी बीजेपी शासन के तीन साल में हो गया.)

उचित सजा नहीं मिलने और प्रधानमंत्री के सिर्फ एक तकलीफदेह बयान भर से- यह सब चलता रहने वाला है, क्योंकि उन्हें लगता है कि सत्ता के असली केंद्र संघ परिवार का आशीर्वाद तो उनके साथ है.

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एक देश, तीन GST और कई टैक्स स्लैब

चलिए अर्थव्यवस्था पर बात करते हैं. प्रधानमंत्री ने ऐलान किया है कि GST को अपार सफलता मिलेगी.

दुनिया हमें अचंभे से देख रही है कि इतने कम वक्‍‍‍त में हमने नया टैक्स सिस्टम कैसे लागू किया.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

यह बिना शक राहत की बात है कि भारत के कारोबार का कबाड़ा करने वाले केंद्र और राज्यों के बिक्रीकर के घालमेल को हटाकर इनकी जगह GST लागू कर दिया गया है.

लेकिन “एक देश, एक टैक्स” के वादे के उलट सरकार ने तीन GST (IGST, CGST और SGST) लागू करने के साथ ही GST के सात स्लैब लागू कर दिए हैं- “एक देश, तीन GST और कई टैक्स स्लैब.”

तमाम उत्पादों पर अलग-अलग टैक्स रेट पक्के तौर पर टैक्स चोरी, घूसखोरी और टैक्स अफसरों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देंगे. साथ ही कैटेगरी को लेकर मुकदमेबाजी बढ़ेगी.

उदाहरण के लिए जिस तरह मिल्क प्रोडक्ट में कई कैटेगरी बनाई गई हैं और पेस्ट्री पर अगर चॉकलेट आइसिंग की गई है, तो अलग-अलग दरें लगेंगी, इससे अव्यवस्था और हेराफेरी बढ़ेगी या शायद इससे भी बुरा होगा.

कांग्रेस ने अधिकतम 18 फीसदी GST की सीमा तय किए जाने की मांग की थी, लेकिन सरकार ने राजस्व के लालच में 28 फीसदी तक GST रखा. यह जरूरत से ज्यादा ऊंची दर सिर्फ कुछ लग्जरी आइटम पर लगाने के बजाय करीब 30 फीसदी सामानों पर लगा दी गई, पक्का है कि इससे टैक्स चोरी बढ़ेगी.

जाहिर है कि कारोबारी कोशिश करेंगे कि उनका माल यथासंभव न्यूनतम टैक्स रेट वाले स्लैब में रखा जाए और उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली, तो वह अपने कारोबार को बचाने के लिए अदालत जाएंगे.

मुकदमों के बोझ तले दबी अदालतों पर GST हजारों मुकदमों का भार और डाल सकता है. बता दें कि 2.4 करोड़ मुकदमे पहले से ही भारतीय न्याय तंत्र का गला घोंट रहे हैं, जिसमें से एक लाख अप्रत्यक्ष करों की अपील से जुड़े हैं. इसमें करीब 1478.55 अरब रुपये का टैक्स फंसा हुआ है.

लेकिन GST की समस्या सिर्फ इसकी जटिलता ही नहीं है. इसके लिए फर्म को जीएसटी नेटवर्क (GSTN) में हर महीने कम से कम तीन (साल में 37) टैक्स रिटर्न भरने होंगे. GST की रीढ़ बने भारी-भरकम आईटी सिस्टम को तीन से पांच अरब इनवॉयस एक महीने में प्रोसेस करने होंगे.

करीब 80 लाख टैक्सेबल बिजनेस अब तक GSTN में रजिस्टर हो चुके हैं, लेकिन जिस आपाधापी में GST लागू किया गया, उससे यह जायज चिंता पैदा होती है कि क्या नया सिस्टम इस बोझ को उठाने के लिए तैयार है? इसका टेस्ट करने के लिए बहुत कम समय मिला. खबर है कि सिस्टम तैयार नहीं है, यह बार-बार क्रैश हो जाता है.

देशभर में कई ट्रेडर्स GST लागू किए जाने के खिलाफ हड़ताल पर चले गए, इनमें से ज्यादातर को चिंता है कि उनका धंधा चौपट हो जाएगा. ज्यादातर छोटे काम-धंधों के मालिकों के साथ ट्रेडर्स और दुकानदारों के पास भी कंप्यूटर की सुविधा नहीं है और वो  कंप्यूटर का इस्तेमाल सीखने और GSTN पर ऑनलाइन रजिस्टर करने के लिए जूझ रहे हैं.

उलझन भरे टैक्स रेट, बहुत ज्यादा कागजी कार्यवाही, साल में 37 ऑनलाइन टैक्स रिटर्न और जरूरी शर्तें पूरी करने के तनाव का लोगों पर नकारात्मक असर पड़ने का डर है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी निभाने वाला स्वरोजगार का अनौपचारिक सेक्टर कुछ महीने पहले हुई नोटबंदी से वैसे ही बुरी तरह लड़खड़ाया हुआ है. GST उनके लिए दोहरा झटका हो सकता है. यह इस बार ज्यादा जानलेवा भी हो सकता है.

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अपने भाषण में पीएम क्या कह सकते थे?

पीएम के पूरे भाषण में लफ्फाजी और हकीकत के बीच का फर्क ही इसकी असल खामी है. इसके और भी उदाहरण हैं:

  • गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में लापरवाही, अक्षमता, भ्रष्टाचार के चलते 90 बच्चों की मौतें सुशासन के दावे को झुठला देती हैं.
  • प्रधानमंत्री युवाओं को  “भाग्य विधाता” कहकर उनकी सराहना कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए रोजगार के मौके लगातार घट रहे हैं. नोटबंदी के नकारात्मक प्रभाव से नौकरियों में रिकॉर्ड कमी के बाद सरकार कह रही है कि युवा नौकरी मांगने के बजाय नौकरी देने वाले बन रहे हैं. यह उस नौजवान के साथ भद्दा मजाक है, जिसके दोनों हाथ खाली हैं. पीएम दो करोड़ नौकरियां पैदा करने का दावा कर इतरा रहे हैं, लेकिन उनकी खुद की सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि एक साल में सिर्फ एक लाख जॉब पैदा हुए, जो कि लक्ष्य का महज आधा फीसदी है.
  • पीएम दावा करते हैं कि बिना बिजली वाले 14,000 गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, लेकिन इन गांवों में बिजली पाने वाले घर कितने हैं? खबरें बताती हैं कि तथाकथित विद्युतीकृत गांवों में 90 फीसदी से ज्यादा घरों तक बिजली की कनेक्टिविटी नहीं है, जिसकी पीएम शेखी बघारते हैं. इन इलेक्ट्रिफाइड गांवों के सिर्फ 8 फीसदी घरों में बिजली कनेक्शन है.
  • पीएम दावा करते हैं कि किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी हो जाएगी, लेकिन हकीकत में उनकी आंखों के सामने किसानों की आमदनी घट रही है और किसानों की खुदकुशी के मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है.
  • प्रधानमंत्री ने दावा किया कि तीन सालों में (2014-17) 1.25 लाख करोड़ रुपये का काला धन बाहर आया है, लेकिन इससे पहले के दो सालों में (2012-14) UPA सरकार ने 1.31 लाख करोड़ काला धन बाहर निकाला था. क्या उनकी कोशिशें अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर रही हैं, जिसमें नोटबंदी ने और इजाफा किया?
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पीएम किन लोगों को ‘एक साथ’ लाना चाहते हैं?

अंत में, प्रधानमंत्री ने ‘भारत जोड़ो’ की बात की, लेकिन वह किसको ‘जोड़ना’, या कहें कि साथ लाना चाहते हैं?

जाहिर है कि यह अल्पसंख्यक हैं, जिन्हें हाशिये पर धकेला जा रहा है और इतना असुरक्षित महसूस कर रहे हैं जितना पहले कभी नहीं था, जैसा कि निवर्तमान उपराष्ट्रपति ने भी चेतावनी दी.

देश का धार्मिक ताना बाना महफूज नहीं रहेगा, अगर इसकी वकालत करने वालों का छिपा हुआ फायदा देश के अलगाव और इसके राजनीतिक दोहन में होगा. स्वतंत्रता दिवस का भाषण हमारे राष्ट्रीय नेता के लिए एक बड़ा मौका हो सकता था, अपनी बेजोड़ भाषण कला से देश को बेहतर करने के लिए प्रेरित करने और उन जख्मों पर मरहम लगाने के लिए जो उनके साथ के ही लोगों ने दिए हैं.

अफसोस कि उन्होंने चुनावी भाषण दिया. जाहिर तौर पर देश के स्वास्थ्य का सुधारना उनकी प्राथमिकताओं में नहीं था और हकीकत में कभी हो भी नहीं सकता.

(UN के पूर्व अंडर सेक्रेटरी जनरल, शशि थरूर लेखक और कांग्रेस के सांसद हैं. उनसे  @ShashiTharoor पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक विचारात्मक लेख है और यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट ना तो इसका समर्थन करता है, ना ही इसके लिए जिम्मेदार है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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