गुजरात में नए कैबिनेट का गठन सिर्फ एक एजेंडे को ध्यान में रखकर किया गया है और वो है बीजेपी को फिर से गुजरात में सत्ता हासिल कराना.
कैबिनेट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के स्टाइल की छाप दिखती है. बिना किसी अंदर-बाहर के दवाब में आए हुए फैसले लिए गए.
आनंदीबेन कैबिनेट से जिन 9 मंत्रियों को निकाला गया है उनमें सौरभ पटेल भी हैं. और उन्हें बाहर किया जाना हैरान करता है. सौरभ पटेल उस खेमे से हैं जिसने नितिन पटेल को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने के लिए आनंदीबेन का साथ दिया था.
मोदी और शाह की जोड़ी के पास और भी प्लान थे. गुजरात में बीजेपी लीडरशिप ये सुनिश्चित करना चाहती है कि मुख्यमंत्री विजय रूपानी को पार्टी के अंदरुनी कलह से न जूझना पड़े. और नए कैबिनेट को बिल्कुल इसी मुद्दे को ध्यान में रखकर गठित किया गया है.
मोदी के गृहराज्य में गड़बड़ की गुंजाइश नहीं
सौरभ पटेल को कैबिनेट से बाहर करने का फैसला वाकई चौंकाने वाला है क्योंकि ये माना जाता रहा है कि वो पीएम मोदी के गुड बुक्स में हैं. लेकिन ये भी सच है कि चुनावों के मद्देनजर सौरभ पटेल की जरुरत पार्टी को नहीं. पिछले चुनावों में उन्हें जीतने के लिए अपना चुनावी क्षेत्र बदलना पड़ा था.
पटेल अंबानी परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ये बात मोदी को कारोबारियों का पीएम कहने वालों के लिए चर्चा का विषय भी रह चुकी है.
मोदी नहीं चाहते कि ऐसा कोई भी मुद्दे गुजरात के चुनावों में उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए. उनके लिए गुजरात चुनाव में जीत बेहद जरुरी है. उनकी एक छोटी सी भी कमजोरी पार्टी में उनके सर्वोपरि होने की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है.
आम आदमी पार्टी भी गुजरात में चुनाव लड़ रही है और मोदी की छवि खराब करने के लिए सौरभ पटेल को यकीनन निशाना बनाया जाता.
सौरभ पटेल बाहर हुए लेकिन आउट नहीं
राजनीतिक समीक्षक कहते हैं कि पटेल भले ही हाशिए पर चल रहे हों लेकिन वो चुनावी खेल से बाहर नहीं हुए हैं. पटेल को उनकी संगठन और रसूख क्षमता के लिए जाना जाता है. वो वाइब्रैंट गुजरात के अहम संयोजकों में से एक रह चुके हैं.
मोदी चाहते हैं कि वाइब्रैंट गुजरात मॉडल को नेशनल लेवल पर लाया जाए. पटेल जीएसटी को लेकर राज्यों से बातचीत में भी अहम भूमिका में रहे हैं. ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि जीएसटी लागू कराने में सौरभ पटेल को अहम रोल मिल जाए.
द पटेल फैक्टर
कैबिनेट गठन में पटेल फैक्टर को ध्यान में नहीं रखा गया. हालांकि पटेलों की मांगों को नजरअंदाज भी नहीं किया गया है. नए मुख्यमंत्री के कैबिनेट में 8 पटेल समाज से 8 मंत्रियों को जगह मिली है.
मोदी और शाह की जोड़ी दरअसल इस बात पर भरोसा कर रही है कि पाटीदार समाज के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और वो आखिरकार बीजेपी को ही वोट देंगे. पटेल समाज कट्टर हिंदुत्व की वकालत करता है और हो सकता है वो बीजेपी का साथ न छोड़ें, जबतक उन्हें कोई और चुनावी झुनझुना न थमा जाए.
इन सबके बीच दलितों के बीच बढ़ता आक्रोश गुजरात चुनावों पर ही नहीं दूसरे राज्यों पर भी असर डालेगा. मोदी और शाह की जोड़ी के सामने इस मुद्दे को संभालना एक चुनौती है.
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