ADVERTISEMENTREMOVE AD

गुरुग्राम इमारत हादसा: ऐसे कांड होते रहेंगे जब तक ये बेसिक कमियां दूर नहीं होंगी

Gurugram Building collapse के पीछे की मूल वजहों को समझिए एक बड़े एक्सपर्ट से

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

्टाफगुरुग्राम (Gurugram) में छह मंजिला हाई-एंड रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स का एक हिस्सा ढहने (collapse of six floors in a high-end residential complex) से राजधानी दिल्ली समेत आसपास के इलाकों में हड़कंप मच गया. जहां एक ओर शहर में बढ़ती आबादी और विकास की वजह से इमारतें ऊंची होती जा रही हैं वहीं दूसरी ओर इनके निर्माण की गुणवत्ता की जांच करने के लिए कोई उपयुक्त प्रणाली नहीं है.

हाल के वर्षों में जैसे-जैसे शहरी क्षेत्रों में तेजी से विस्तार होता जा रहा है, वैसे-वैसे उन्नत स्ट्रक्चरल डिजाइन सिस्टम का उपयोग करके अधिक से अधिक ऊंची इमारतों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले कंस्ट्रक्शन मटेरियल का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से करना होता है. इस तरह के निर्माण के लिए डिजाइन कैलकुलेशन की बारीकी से जांच की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्ट्रक्चरल इंजीनियर द्वारा बताई गई सामग्री और दिशा निर्देश का कड़ाई से पालन किया जा रहा है. लेकिन दुर्भाग्य से कई खामियां हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सस्ते मटेरियल को रीब्रांड करके हाई-ग्रेड का बताया जा रहा है

स्ट्रक्चरल इंजीनियर की ड्राइंग्स और उसके द्वारा बताई गई स्पेसीफिकेशन को सही ढंग से समझने और उन्हें लागू करने के लिए साइट स्टाफ और बिल्डिंग फोरमैन की अक्षमता सबसे आम समस्याओं में से एक है.

सभी ऊंची या गगनचुंबी इमारतों के निर्माण लिए सबसे ज्यादा मजबूती वाले हाई-ग्रेड स्टील के उपयोग की मांग होती है, लेकिन देश में इस तरह के मटेरियल का इस्तेमाल करने वाले कुछ ही निर्माता या कंस्ट्रक्शन कंपनी हैं.

यह मटेरियल काफी महंगा होता है इसलिए लागत (Cost) में बचत करने के लिए ज्यादातर बिल्डर सस्ता स्टील इस्तेमाल करते हैं, जिसे चीन से आयात किया जाता है और यहां लोकल स्तर पर सस्ते स्टील को उच्च ग्रेड (high-grade) में रीब्रांड करके प्रस्तुत किया जाता है.

कंक्रीट को भी कुछ न्यूनतम स्ट्रेंथ की आवश्यकता होती है. कंक्रीट की मजबूती पानी की मात्रा, आसपास के तापमान और उचित तराई जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है.

कंक्रीट के हर बैच से एक सैंपल क्यूब निकालकर उसे सहेजा जाता है और 7 व 28 दिन के बाद उनकी मजूबती का परीक्षण किया जाता है लेकिन इस समय तक कंक्रीट वर्क पहले ही कर लिया गया होता है. वहीं यदि सैंपल के परीक्षण के दौरान यह पता चलता है कि कंक्रीट को मरम्मत और उसे ज्यादा मजबूती की जरूरत है तो बिल्डर की साइट टीम ऐसी खामियों की अनदेखी कर देती है. यह अनदेखी कभी-कभी गंभीर हो सकती है.

0

कंस्ट्रक्शन सेक्टर में स्किल्ड कर्मियों की कमी है

सभी बिल्डर्स निर्माण लागत में कटौती करना चाहते हैं, इसलिए वे स्ट्रक्चरल इंजीनियरों पर बिल्डिंग स्ट्रक्चर की डिजाइन में इस्तेमाल होने वाले स्टील और कंक्रीट की मात्रा को कम करने का दबाव डालते हैं. स्ट्रक्चरल इंजीनियर के कॉन्ट्रैक्ट में एक क्लॉज अक्सर शामिल होता है, जिसमें तैयार होने स्ट्रक्चर के लिए प्रति वर्ग फुट स्टील और कंक्रीट की अधिकतम मात्रा को दर्शाया जाता है. इसके परिणाम स्वरूप स्ट्रक्चरल इंजीनियर को सुरक्षा के मार्जिन को कम करना पड़ता है, जो त्रुटियों के साथ मिलने पर स्ट्रक्चर के ध्वस्त होने का कारण बनता है.

कंस्ट्रक्शन सेक्टर से संबंधित विभिन्न कौशल (Skills) के लिए पर्याप्त मैनपावर को प्रशिक्षित करने के लिए कोई सिस्टम नहीं तैयार किया गया है. आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों) द्वारा प्रशिक्षित लोगों की संख्या जरूरत के हिसाब से बहुत कम है. सरकार को देश के सभी हिस्सों में निर्माण श्रमिकों के लिए एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करने करने की जरूरत है.

चूंकि अधिकांश बिल्डर काम की जांच और उसकी देखरेख के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित फोरमैन को नहीं रखते हैं, इस वजह से कई त्रुटियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. फिलहाल, न तो बड़े और न ही छोटे कॉन्टैक्टर (ठेकेदार) अपने स्टाफ की सुरक्षा, स्वास्थ्य या कल्याण की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं. कॉन्टैक्टर अक्सर निर्माण स्थल पर ही अस्थायी बस्तियां बनाते हैं, जैसा कि सेंट्रल विस्टा साइट पर किया गया था. मीडिया द्वारा जो फोटो दिखाए गए उससे वहां अस्थायी तौर पर रहने वाले प्रोजेक्टर वर्कर्स की निराशाजनक परिस्थियों का खुलासा हुआ था. तस्वीरों में वहां साफ-सफाई की कमी थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत में कोई निगरानी नहीं

अधिकांश निर्माण परियोजनाओं (construction projects) में उसके कार्यान्वयन की उचित मॉनीटरिंग और उसके नियंत्रण के लिए प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सिस्टम पूरी तरह से गायब है.

पाक्षिक और मासिक प्रोग्रेस रिपोर्ट का रिकॉर्ड बनाने वाले सिस्टम के जरिए प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन, मटेरियल और श्रमिकों के उचित उपयोग पर सावधानीपूर्वक नजर रखना या उसकी मॉनीटरिंग करना संभव है.

विश्व के अधिकांश देशों में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इसे व्यापक रूप से सुनिश्चित किया जाता है, लेकिन भारत में यह स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है.

सैंक्शन और कंप्लीशन (sanction and completion) सर्टिफिकेट जारी करने के अलावा संबंधित अधिकारी या अथॉरिटी प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन में किसी प्रकार से कोई सक्रिय या वास्तविक भूमिका नहीं निभाते हैं.

स्वीकृति प्लान के अनुसार प्रोजेक्ट में काम हो रहा है यह सुनिश्चित करने के लिए उनके पास निर्माण की गुणवत्ता जांचने के लिए कोई सिस्टम नहीं है.

भवन उप-नियमों के अनुपालन की जांच करने और स्ट्रक्चरल इंजीनियरों के सर्टिफिकेट्स को पढ़ने के अलावा, उनके पास यह आकलन करने के लिए आवश्यक दक्षताओं का अभाव है कि क्या डिजाइन की गई बिल्डिंग संरचनात्मक रूप से सुरक्षित होगी या नहीं? यह 80 वर्ग मीटर साइट पर ढह गए सामान्यत: चार मंजिला स्ट्रक्चर्स के साथ-साथ नई जटिल बहुमंजिला इमारतों से भी संबंधित है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

परमिशन और कंप्लीशन सर्टिफिकेट से परे देखने की जरूरत

हाल के महीनों में दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा में कई आवासीय प्रोजेक्ट्स ध्वस्त (collapse) हो गए हैं, जिसमें कई लोगों की जान चली गई. फ्लैट मालिकों द्वारा निर्माण की खराब गुणवत्ता को लेकर शिकायत करने बावजूद भी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और न ही दिया जा रहा है. इसके अलावा मकान मालिकों को समय पर फ्लैट न देना आम बात है, अक्सर लोगों को दो से पांच साल की देरी में फ्लैट मिलते हैं.

छोटे बिल्डर और बड़ी डेवलवमेंट फर्म्स के साथ-साथ केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD), राज्यों के पीडब्ल्यूडी, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA), और राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (NBCC) जैसी सरकारी एजेंसियों के प्रोजेक्ट्स में भी त्रासदियां देखने को मिली हैं.

हाल ही में गुरुग्राम के चिंटेल्स पैराडीसो कॉम्प्लेक्स में 12 मंजिला अपार्टमेंट ब्लॉक के 6 फ्लोर ढहने की घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. इस दुघर्टना में दो लोगों की मौत भी हुई है.

इस घटना के बाद टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग की नींद खुली और वह एक्शन में आया इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने स्ट्रक्चरल इंजीनियर, आर्किटेक्ट और ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात कही.

संबंधित अधिकारियों ने सभी जिम्मेदारी से खुद का पीछा छुड़ाने के लिए कहा कि चूंकि IIT इंजीनियर का सर्टिफिकेट और स्ट्रक्चरल ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, इसलिए यह मान लिया गया था कि निर्माण उचित पर्यवेक्षण के तहत और राष्ट्रीय भवन संहिता की स्पेसीफिकेशन के अनुसार पूरा किया गया था.

हालांकि इमारत के ढहने के साथ ही इन सभी सब्मिशन यानी प्रस्तुतियों को फ्रॉड या धोखाधड़ी माना जाता है. जैसा कि देखा जा सकता है, संबंधित अधिकारियों का मानना ​​है कि संबंधित डॉक्यूमेंट्स का निरीक्षण करने के बाद बिल्डिंग परमिशन और कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी करने के अलावा, वे किसी भी तरह से निर्माण की गुणवत्ता (कंस्ट्रक्शन क्वॉलिटी) और स्ट्रक्चरल विफलताओं (structural failures) के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राष्ट्रीय योजनाओं में शामिल नहीं है देश का कंस्ट्रक्शन सेक्टर

घटिया निर्माण कार्याें या खराब निर्माण कार्यों की वास्तविकता के बारे में अधिकारियों की आंखें तभी खुलती हैं जब गंभीर रूप से कोई स्ट्रक्चरल फेल्योर होता है या किसी इमारत का एक हिस्सा ढह जाता है.

5 फरवरी को गुरुग्राम की DTCP टीम ने NBCC ग्रीन्स में एक बहु-मंजिला अपार्टमेंट का निरीक्षण किया. 18 एकड़ में फैले इस प्रोजेक्ट में फ्लैटों को 2015 में देने का वादा किया गया था लेकिन इसके फ्लैटों को अगस्त 2017 में सौंपा गया.

फ्लैट सौंपने के बाद से ही कई बिल्डिंग्स में दरारे दिखने लगी थीं. काम में खराबी के साथ ही अन्य कमियां भी दिखने लगी थीं. जिसमें बेसमेंट में इलेक्ट्रिक सब स्टेशन का निर्माण था, जहां पानी भरा रहता था. इसके अलावा वहां का फायर-फाइटिंग सिस्टम निष्क्रिय था और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स काम नहीं कर रहा था.

ये ऐसे मुद्दे थे जोकि डिजाइन और कार्यान्वयन के मामले में गंभीर कमियों को दर्शाते हैं. यहां के रहवासियों ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद डायरेक्टर स्तर के तीन अधिकारियों को चार्जशीट जारी की गई. तब निवासियों को इमारतों को खाली करने के लिए कहा गया ताकि उसकी मरम्मत की जा सके.

NBCC एक सरकारी संगठन है जिसे हजारों करोड़ की सरकारी परियोजनाओं का जिम्मा सौंपा गया है. वे प्रत्येक परियोजना के लिए 15% सेवा शुल्क लेते हैं, जो सक्षम विशेषज्ञ डिजाइन इनपुट प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है. इसी वजह से योग्य और अनुभवी आर्किटेक्ट्स, स्ट्रक्चरल इंजीनियरों, सर्विस कंसल्टेंट और सुपरवाइजरी स्टाफ द्वारा समय पर उचित जांच और लागत नियंत्रण के साथ निर्माण की उच्च गुणवत्ता की अपेक्षा की जाएगी. लेकिन अन्य सरकारी संगठनों की तरह NBCC में भी कर्मचारियों की कमी है और प्रोफेशनल एक्सपर्टीज का अभाव है.

इस तथ्य के बावजूद कि निर्माण उद्योग (construction industry) काफी संख्या में लोगों को रोजगार देता है, यह राष्ट्रीय विकास योजनाओं में शामिल नहीं है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर के महत्व को पहचानने और इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है.

(लेखक, रंजीत सबिखी आर्किटेक्ट्स के प्रिंसिपल हैं. ये 970 के दशक में नई दिल्ली में स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में शहरी डिजाइन विभाग के प्रमुख थे, इन्होंने भारत की शहरी स्थिति पर विस्तार से लिखा है, और 60 वर्षों से इमारतों को से डिजाइन कर रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×