झारखंड अजब है.
सीएम सोरेन के विधायक राज्यपाल से जाकर मिलते हैं कि महामहिम हमारे सीएम के खिलाफ फैसला देना है तो जल्दी दे दो प्लीज.
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस में सोरेन की विधायकी पर चुनाव आयोग ने अपनी राय राज्यपाल को दे दी है, लेकिन राज्यपाल कोई फैसला नहीं ले रहे.
विधायकों के टूटने के डर से सीएम सोरेन अपने विधायकों को झारखंड से दूर रायपुर ले जाते हैं.
अलग-अलग राज्यों में अपने-पराए विधायकों को देशाटन करवा चुकी बीजेपी हमलावर है कि सोरेन अपने विधायकों को रायपुर क्यों ले गए?
कांग्रेस अपने ही विधायकों पर आरोप लगाती है कि ये लोग सोरेन सरकार को गिराने की साजिश रच रहे थे.
अब जरा इन चीजों का मतलब समझते हैं
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने सीएम रहते अपने नाम खनन पट्टा लिया. इस केस में सोरेन की विधायकी जानी चाहिए या नहीं, इस मसले पर सूत्र बताते हैं कि चुनाव आयोग ने अपनी राय राज्यपाल को दे दी है. लेकिन राज्यपाल फैसला ही नहीं कर रहे. पहले गठबंधन ने आरोप लगाया कि राज्यपाल फैसले को लटका कर बीजेपी को विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए समय दे रहे हैं. फिर गठबंधन के विधायक जाकर राज्यपाल से मिले और गुजारिश की कि वो अपना फैसला दे दें. विधायकों ने बाहर आकर कहा कि राज्यपाल ने माना कि उन्हें चुनाव आयोग का पत्र मिला और जल्द ही इसपर फैसला लेंगे. राज्यपाल के रुख को देखकर गठबंधन के विधायकों के आरोपों को बल मिलता है. आखिर वो किस बात का इंतजार कर रहे हैं. राज्य में सुखाड़ है. किसान परेशान हैं, ऐसे में अगर 'सरकार' रायपुर में बैठी है तो यहां काम कैसे होगा?
क्या राज्यपाल का ये सांवैधानिक फर्ज नहीं है कि वो राज्य में सियासी अस्थिरता नहीं आने दें? क्या राज्यपाल अपनी सांवैधानिक ड्यूटी निभा रहे हैं या फिर वो 'बीजेपी सांसद से राज्यपाल भयो टेढ़ो, टेढ़ो जाए' की तर्ज पर बर्ताव कर रहे हैं?
रायपुर क्यों गए विधायक?
जब बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना के बागियों को महाराष्ट्र से गुजरात और फिर वहां से असम ले गई तो समझ में आता था कि उसे सत्ता में बैठे लोगों से डर था कि वो कहीं खेल बिगाड़ न दें. लेकिन यहां तो गजब केस है. सत्ता में है गठबंधन और गठबंधन के नेता सोरेन अपने विधायकों को अपने ही राज्य में नहीं रखना चाहते. क्या उन्हें अपनी पुलिस, अपने ही अधिकारियों पर यकीन नहीं है? सोरेन को अगर बीजेपी से डर भी है तो उन्हें क्यों लगता है कि विधायक रांची से ज्यादा रायपुर में सेफ रहेंगे? क्या उन्हें खुद के शासन से ज्यादा भूपेश सिंह बघेल के प्रशासन पर भरोसा है? आखिर वो क्या संदेश देना चाह रहे हैं?
जब सोरेन बीजेपी पर विधायकों को तोड़ने की कोशिश का आरोप लगा रहे हैं तो क्या वो अपने विधायकों पर भी शक नहीं कर रहे हैं? और अगर ऐसा है तो इसका बैकग्राउंड क्या है? गौर कीजिएगा कि पहले वो अपने विधायकों को लतरातू डैम पर बने रिजॉर्ट में लेकर गए थे. वहां से उसी दिन रांची ले आए, फिर क्या बात हुई कि उन्हें रायपुर ले जाना पड़ा. सूत्र बताते हैं कि जब गठबंधन के विधायक लतरातू में थे तब भी उन्हें विपिरत खेमे से अप्रोच किया गया था. इन विधायकों ने सोरेन को ये सूचना दी और उसी के बाद रायपुर का प्लान बना.
दुश्मन आपके खेमे की कमजोर कड़ी को तलाशता है. तो क्या सोरेन के खेमे में कोई कमजोर कड़ी थी, या है? चर्चा है कि गठबंधन के कई विधायक इस बात से खफा थे कि उनका विधायक फंड रोका गया. मंत्रियों को छोड़कर बाकी को पद नहीं मिले. साइमन मरांडी, सीता सोरेन आदि कई बार सोरेन के खिलाफ खुलकर बोले.
चर्चा है कि बीजेपी की सक्रियता देखकर सोरेन ने वक्त रहते खफा लोगों को समझा लिया है. रायपुर में जब गठबंधन के विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो दीपिका पांडेय पत्रकारों से बात करती नजर आईं. चर्चा है कि झारखंड में मंत्रिमंडल में बदलाव होगा और दीपिका समेत कई नए चेहरों को कैबिनेट में जगह दी जाएगी.
बीजेपी की चाल और सोरेन के दांव
बीजेपी पानी-पी पीकर सोरेन को कोस रही है कि वो अपने विधायकों को रायपुर में बिठाकर मुर्गा-दारू परोस रहे हैं लेकिन यही बीजेपी रिजॉर्ट पॉलिटिक्स की चैंपियन है, ये भूल गई है. इस बार ऐसा लग रहा है कि उसके सारे पैंतरों की पेंच सोरेन वक्त रहते पकड़ ले रहे हैं.और इसीलिए मामला आगे नहीं बढ़ रहा. बीजेपी जहां की तहां अटकी है और सोरेन अपनी जगह डटे हुए हैं. इसी क्रम में सोरेन ने दो करोड़ महीने के किराए पर एक चार्टर्ड प्लेन लिया है. कहा गया है ये राज्य से वीआईपी के राज्य से बाहर आने जाने के लिए है. मतलब उन्होंने इस बात का इंतजाम किया है कि जब जरूरत हो विधायकों को रांची लाएंगे और जब चाहें रायपुर ले जाएंगे. अब सोमवार को विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया है. देखिए सोरेन इस्तीफा देकर फिर से सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं या नहीं?
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