बिहार में नीतीश सरकार के एक प्लान को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. शराबबंदी के समर्थन में एकजुटता दिखाने के लिए 21 जनवरी को करीब 11 हजार किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाई जानी है. दावा किया जा रहा है कि इसमें 2 करोड़ से ज्यादा लोग शिरकत करेंगे, जो एक वर्ल्ड रेकॉर्ड होगा. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इस बारे में प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है.
अदालत में पहुंचा मामला
नीतीश सरकार का यह अनोखा प्लान जमीन पर उतरने से पहले अदालत में पहुंच चुका है. एक एनजीओ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से इस बारे में उठाए गए सवालों के जवाब मांगे हैं.
याचिका में पूछा गया है कि आखिर किस प्रावधान के तहत स्कूली बच्चों को मानव श्रृंखला में शामिल किया जा रहा है? दूसरा, किस प्रावधान के तहत चेन बनाए जाने के दौरान नेशनल हाइवे और राज्य की मुख्य सड़कों पर यातायात रोका जा रहा है?
इन बातों पर चर्चा से पहले इस पूरे प्लान पर एक नजर डालना जरूरी है.
मानव श्रृंखला: एक नजर में
- 21 जनवरी को दोपहर 12.15 से एक बजे तक 45 मिनट तक मानव श्रृंखला बनाई जानी है.
- इसका उद्देश्य शराबबंदी की नीति के पक्ष में एकजुटता दिखाना है.
- पूरे बिहार में ह्यूमन चेन की कुल लंबाई 11,292 किलोमीटर से ज्यादा होने का अनुमान है.
- श्रृंखला में करीब दो करोड़ लोगों के शामिल होने की संभावना है.
- 5 सैटेलाइट, ड्रोन और हेलिकॉप्टर के जरिए इसकी वीडियोग्राफी कराई जाएगी.
- अगर योजना कामयाब होती है, तो सबसे लंबी मानव श्रृंखला का वर्ल्ड रेकॉर्ड कायम हो जाएगा.
- प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में इसके आयोजन के लिए 10 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है, इससे इतना तो जाहिर है कि याचिका में उठाए गए सवाल गंभीर हैं. दरअसल, भले ही चेन 45 मिनट के लिए बननी हो, लेकिन इस पूरी कसरत में स्कूली बच्चों को भी करीब 5 घंटे सड़क पर ही गुजारने होंगे. प्रदेशभर के स्कूलों में इस श्रृंखला के लिए 15 जनवरी से ही रिहर्सल चल रही है.
साथ ही रेकॉर्ड बनाने की बेताबी में उस दिन कई घंटों तक मुख्य सड़कों पर ट्रैफिक ठप रखा जाएगा. प्लान के मुताबिक, इमरजेंसी में कुछ गाड़ियों को आने-जाने की इजाजत होगी. लेकिन इसके बावजूद, घनी आबादी वाले इलाकों में लोगों को भारी परेशानी होने की आशंका है.
क्या यह मशीनरी के दुरुपयोग का मामला लगता है?
बिहार चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू ने शराबबंदी को मुद्दा बनाया था. जनता का साथ पाकर जब वे सत्ता में लौटे, तो उन्होंने प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की. इसके विरोध में छिटपुट आवाजें उठती रही हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह योजना अपना मकसद हासिल करती दिख रही है.
ऐसे में इसके समर्थन में मानव श्रृंखला बनवाकर इस पर फिर से पब्लिक की मुहर लगवाने की जरूरत क्या है? प्रदेश सरकार के लिए इस पर 10 करोड़ खर्च करना शायद बहुत छोटी रकम हो, लेकिन इसके पीछे पूरे सिस्टम को झोंक देना क्या सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग नहीं है?
यह भी गौर करने वाली बात है कि इस कड़ी का हिस्सा बनने के लिए वैसे बच्चों को भी तैयार किया जा रहा है, जिन्हें न तो शराब के बारे में ज्यादा पता होगा, न शराबबंदी के बारे में.
याचिका में इस ओर भी अदालत का ध्यान दिलाया गया है कि क्या हम चेन बनाकर अभी से मासूमों को शराब के बारे में पूरी जानकारी देना चाह रहे हैं?
इस कवायद का सियासी मतलब क्या हो सकता है?
5 राज्यों में विधानसभा चुनाव सामने है. नीतीश कुमार पहले ही यह सवाल उठा चुके हैं कि जब बिहार में शराबबंदी लागू हो गई है, तो फिर वे राज्य इसे लागू क्यों नहीं कर रहे, जहां बीजेपी सत्ता में है. कुछ दिनों पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में भी शराबबंदी लागू किए जाने की वकालत की थी, लेकिन सीएम अखिलेश यादव ने उनके इस विचार को खारिज कर दिया था.
इन बातों से इतना तो तय है कि बिहार सीएम के लिए शराबबंदी केवल सामाजिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मुद्दा भी है, जिसे वे आने वाले दिनों में अपने पक्ष में जरूर भुनाना चाहेंगे.
यह वैसा ‘तीर’ है, जिसे वे बीजेपी शासित राज्य सरकारों के खिलाफ अपनी सुविधा के हिसाब से कभी भी चला सकते हैं.
अब इन सारी बातों को ह्यूमन चेन की कवायद से जोड़कर देखिए. क्या लगता है? यह शराबबंदी के बहाने बिहार की कीर्ति पूरी दुनिया में फैलाने की चाह है या अपने विरोधियों पर हावी होने की एक और सियासी चाल?
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