ऐसा कहते हैं कि अपने अतीत के बिना कोई शहर ऐसा ही है, जैसे याददाश्त के बिना कोई इंसान. बदकिस्मती से हैदराबाद (Hyderabad) में हम अपनी साझा स्मृतियों को मिटाने में माहिर हैं– और ऐतिहासिक इमारतों (heritage buildings) को बचाने की हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति काफी कमजोर है.
हैदराबाद में मुसी नदी के उत्तरी किनारे पर बना उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल (Osmania General Hospital OGH) ऐसी ही एक हेरिटेज बिल्डिंग है, जो इस समय ऐसे हालात का सामना कर रही है. तेलंगाना सरकार 35.76 लाख वर्ग फुट में एक नया हॉस्पिटल बनाने के लिए इस 114 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत को तोड़ने की योजना बना रही है.
दमदार और शानदार, एक खास मकसद से बनाए गए हॉस्पिटल ने खामोशी से हैदराबाद के हर तबके के लोगों की सेवा की है, और करीब एक सदी बाद भी यह तेलंगाना का सबसे बड़ा एलोपैथिक हॉस्पिटल है.
लेकिन कुछ समय से यह हॉस्पिटल अखबारों में सिर्फ शिकायतों, खात्मे और तोड़ने के लिए ही जगह पा रहा है. विडंबना है कि यह बीमारों के इलाज की जगह है.
जन्म
मौजूदा हॉस्पिटल की कहानी 1908 में भारी तबाही लाने वाली बाढ़ के बाद शहर को फिर से बसाने से जुड़ी है.
OGH का निर्माण अफजल गार्डन के पास किया गया ताकि, “हॉस्पिटल को एक निश्चित फायदा यह हो कि हॉस्पिटल से अच्छा नजारा दिखे और मरीजों को ताजगी भरा माहौल मिले.”
निजाम (Nizam) नवाब सर मीर उस्मान अली खान ने काम शुरू करने के लिए 18 सितंबर 1917 को एक फरमान जारी किया. ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर विंसेंट एस. एश को हॉस्पिटल का डिजाइन तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया, और उन्होंने निजाम के मेडिकल डिपार्टमेंट के तत्कालीन निदेशक डॉ. ए लैंकास्टर के साथ अच्छे तालमेल से काम किया.
OGH पांच साल में 1925 में बनकर पूरा हुआ.
आर्किटेक्ट एश ने हिंदू शैली को इस्लामी शैली के साथ मिलाया और एक शाहकार तैयार किया जिसे हैदराबाद की उस्मान शाही शैली का नाम दिया गया.
बुलंद इमारत
एक ठोस मजबूत इमारत की नींव में पत्थर के साथ चूने की चिनाई की गई थी. ठोस जमीन तक पहुंचने के लिए नींव को अलग-अलग गहराई तक खोदा गया. नींव पर सुरक्षित भार का आकलन 2.5 टन/वर्ग फुट किया गया था.
यह आज के समय में इस आकार की इमारत के लिए तय किए गए सुरक्षित भार से काफी ज्यादा है– मगर यह अजीब और इस तर्क के उलट है कि इमारत को अब असुरक्षित माना जा रहा है.
एक बड़े हॉस्पिटल के हिसाब से योजना से बनाई गई इस इमारत में एक केंद्रीय ब्लॉक है जिसमें ग्राउंड फ्लोर पर प्रशासनिक कार्यालय और पहली और दूसरी मंजिल पर ऑपरेशन थिएटर हैं, जिनके साथ जुड़ी इमारत में अच्छे हवादार वार्ड बने हैं.
एक सदी बाद भी यह हॉस्पिटल हैदराबाद की अचंभित कर देने वाली और शानदार इमारत है.
पतन
हॉस्पिटल ने हैदराबाद के नागरिकों की जिम्मेदारी से सेवा की, लेकिन जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने हॉस्पिटल और इसके रखरखाव की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, खासकर पिछले कुछ दशकों में. इसकी समस्याएं काफी हद तक गैरजरूरी दखलअंदाजी और खराब रखरखाव से पैदा हुई हैं.
सड़क और भवन विभाग के सिविल और स्ट्रक्चरल इंजीनियर जो पत्थर के साथ चूने की चिनाई से बनी इमारतों की भार वहन क्षमता के बारे में नहीं जानते हैं, इसके रखरखाव का जिम्मा संभाल रहे हैं.
न सिर्फ सीमेंट जैसी बेमेल मरम्मत सामग्री का लापरवाही से इस्तेमाल किया गया, बल्कि रीइन्फोर्स्ड कंक्रीट सीमेंट (RCC) से बनी इमारतों की मजबूती को नापने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिद्धांतों को पूरी तरह अलग तरीके और सामग्री से बनी इमारतों पर गलत तरीके से लागू किया गया.
हॉस्पिटल के लिए आंतरिक योजना का अभाव, बेतरतीब विकास और सुविधाओं की कमी बड़ी चिंता के विषय हैं. सालों की उपेक्षा के चलते निश्चित रूप से कमजोरी आई है, लेकिन इमारत अपने आप में अच्छी, मजबूत और टिकाऊ है, और इसे तोड़ने की कतई जरूरत नहीं है.
भविष्य
हैदराबाद शहर के बीच में बने इस हॉस्पिटल और एक ऐतिहासिक इमारत को तोड़ने के लगातार दबाव को दो नजरिए से देखा जा सकता है, एक जो अतीत को देखता है और दूसरा जो भविष्य को देखता है.
हैदराबाद विरासत के हिफाजत के लिए गाइडलाइंस बनाने वाले पहले भारतीय शहरों में से एक है, इसके बावजूद ऐतिहासिक स्ट्रक्चर खतरे में हैं. सिविल सोसायटी के दखल के चलते हाल के सालों में, ऐसी कुछ इमारतों को तोड़ने से बचाया गया है. सबसे हालिया मामला बहुप्रचारित इरम मंजिल (Irrum Manzil) का है.
शहर के आर्किटेक्चरल ताने-बाने को बचाने की जिम्मेदारी लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हर सरकार पर है, और किसी को हैदराबाद की कीमती और तेजी से बर्बाद होती विरासत को खत्म नहीं करना चाहिए और इसे खत्म किया भी नहीं जा सकता.
भविष्य की तरफ देखें तो दुनिया क्लाइमेट इमरजेंसी की हालत में है. हमारे सामने मौजूद संसाधनों की कमी तोड़फोड़ के किसी भी काम को शायद ही सही ठहराती है. तोड़फोड़ में खर्च की गई ऊर्जा, बड़ी मात्रा में पैदा होने वाला मलबा और ऐसी चीजों का इस्तेमाल कर पुनर्निर्माण करना जिसकी तुलनात्मक रूप से लंबी उम्र नहीं है, यह बातें भी इसे कोई टिकाऊ विकल्प (sustainable option) नहीं बनाती हैं.
एक सरकारी इमारत जिसे मरम्मत कर सुधारा जा सकता है और इस्तेमाल किया जा सकता है, उसको तोड़ना सही नहीं ठहराया जा सकता है.
दूसरे देशों के उदाहरण
दुनिया भर में ऐतिहासिक इमारतों को अत्याधुनिक मेडिकल सुविधाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने की अनगिनत मिसालें हैं.
लगातार इस्तेमाल में आने वाला शायद सबसे पुराना हॉस्पिटल लंदन का सेंट बार्थोलोम्यू हॉस्पिटल (St Bartholomew Hospital) है. यह 1123 में शुरुआत के बाद से उसी जगह पर मौजूद है और इसकी सबसे पुरानी इमारत जो अभी भी हॉस्पिटल के तौर पर इस्तेमाल की जा रही है, 1546 ईस्वी की है.
मेडिकल सेंटर्स का एक और खास श्रृंखला दुनिया की मशहूर हर्ले स्ट्रीट (Harley Street) भी लंदन में ही है. आज लगभग 5,000 मेडिकल प्रोफेशनल हर्ले स्ट्रीट मेडिकल एरिया में काम करते हैं. प्रॉपर्टी डायरेक्टर साइमन बेन्हम लिखते हैं, “यह अजीब विरोधाभासों की जगह है– आधुनिक मेडिसिन और सदियों पुराना आर्किटेक्चर– और दोनों का मिलन असल चुनौती बना हुआ है. हालांकि हमने हमेशा साबित किया है कि यह ऐसी चुनौती है जिसका आसानी से सामना किया जा सकता है.”
हार्वर्ड में 1818 में बनी मैसाचुसेट्स हॉस्पिटल (Massachusetts Hospital) की इमारत हार्वर्ड मेडिकल फेसिलिटी का केंद्र है और बेथ इजराइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर से संबद्ध बोस्टन वीमेंस एंड चिल्ड्रेन हॉस्पिट.
दुनिया भर में ऐतिहासिक इमारतों में शानदार मेडिकल सेंटर चल रहे हैं और वे मॉडर्न मेडिसिन के पावरहाउस के रूप में काम कर रहे हैं, और जो बात उनमें से हर एक को बेजोड़ बनाती है वह उनके अतीत के लिए निर्विवाद सम्मान और उन लोगों के प्रति श्रद्धा, जिन्होंने मेडिकल साइंस की दुनिया में अमिट छाप छोड़ी और कभी न भूलने वाला योगदान दिया है.
उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल किसी भी पैमाने पर दुनिया के महान मेडिकल संस्थानों से अलग नहीं है, और एक समय यह आधुनिक मेडिसिन की दुनिया में ऊंचा दर्जा रखता था.
उस्मानिया हॉस्पिटल की मेडिकल और रिसर्च हिस्ट्री इसके आर्किटेक्चर जैसी ही शानदार है. भारत की पहली महिला डॉक्टर और दुनिया की पहली प्रशिक्षित महिला एनेस्थेटिस्ट डॉ. रूपा बाई फरदूनजी ने उस्मानिया में पढ़ाई की थी. इसके अलावा मेजर एडवर्ड लॉरी, जिन्होंने मेडिकल जर्नल लैंसेट में 25 सितंबर 1915 को छपे अपने एक ऐतिहासिक अध्ययन में बताया था कि क्लोरोफॉर्म का बेहोशी की दवा के रूप में इस्तेमाल सुरक्षित है, ने भी यहीं पढ़ाई की थी.
उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल का ऐतिहासिक महत्व और प्रासंगिकता आज मुख्यधारा से ओझल है क्योंकि सत्ता में बैठे लोग अब निजी क्षेत्र की मेडिकल सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं.
सुधारी न जा सकने वाली अक्षम्य गलती
1925 में निर्माण पूरा होने के बाद से OGH राज्य का सबसे बड़ा हॉस्पिटल बना हुआ है, और 1948 के बाद से किसी भी सरकार ने, चाहे आंध्र प्रदेश हो या तेलंगाना, ने इस दर्जे या प्रासंगिकता का अस्पताल नहीं बनाया है. यह पुराने शहर के लोगों के लिए उपलब्ध सबसे बड़ा हॉस्पिटल है– और इसको तोड़ना अक्षम्य गलती होगी.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि यह पुराने शहर हैदराबाद के लोगों के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट का केंद्र है, जो उन लोगों को शानदार मुफ्त मेडिकल केयर उपलब्ध कराता है, जो प्राइवेट सेक्टर के भारी खर्च का बोझ नहीं उठा सकते हैं.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि सबसे प्रतिभाशाली और बेहतरीन काबिल डॉक्टर अभी भी यहां काम करते हैं और पढ़ाते हैं और कॉरपोरेट मेडिकल संसार के ज्यादातर डॉक्टरों को यहीं ट्रेनिंग मिली है.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि इसे शहर के लोगों के लिए एक हॉस्पिटल के तौर पर बनाया गया था और इसकी सुविचारित डिजाइन एक सदी से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी मरीजों की देखभाल के मानकों और गाइड-लाइंस को पूरा करती है.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि संरक्षण के लिए सारे कानून होने के बावजूद इन कानूनों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि हम जलवायु संकट से गुजर रहे हैं और इसे तोड़ने और फिर से बनाने से प्रदूषण होगा.
अक्षम्य इसलिए क्योंकि कंक्रीट और कांच की आधुनिक निर्माण सामग्री आधी सदी तक भी नहीं चल सकती है, जबकि मौजूदा इमारत का जीवन ज्यादा नहीं तो कम से कम एक सदी तक और बढ़ाया जा सकता है.
अक्षम्य क्योंकि यह हैदराबाद शहर के नजारों का एक अटूट हिस्सा है.
अक्षम्य क्योंकि इसका आर्किटेक्चरल ताना-बाना शान से शहर की समन्वयवादी परंपराओं की नुमाइंदगी करता है.
और सबसे ज्यादा अक्षम्य इस बात के लिए क्योंकि यह हैदराबाद है, और इसे खोकर, हम सब अपनी विरासत का बेहतरीन हिस्सा खो देंगे.
(अनुराधा एस. नाइक UNESCO पुरस्कार विजेता कंजर्वेशन आर्किटेक्ट, डिजाइनर और लेखिका हैं, जो खासतौर से डेक्कन में कंजर्वेशन और क्राफ्ट रिवाइवल पर काम करती हैं. यह लेखिका के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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