जम्मू-कश्मीर के उरी में ब्रिगेड मुख्यालय में रविवार सुबह हुए आतंकी हमले में 17 जवान शहीद हो गए और कई घायल हुए. लोगों के भीतर इस हमले को लेकर काफी गुस्सा है और वो जायज भी है. हालांकि इस हमले में मारे गए चारों आतंकियों की पहचान अभी तक नहीं हो सकी है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वो सीमा पार से आए थे.
इस हमले की टाइमिंग से ये साफ है कि ये पाकिस्तानी एजेंसियों का काम है. संयुक्त राष्ट्र महासभा का 71वां सत्र शुरू होने वाला है और पाकिस्तानी अधिकारियों ने जान-बूझकर ये हमला ऐसे वक्त करवाया है. वो चाहते हैं कि इस हमले से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान कश्मीर के मुद्दे की तरफ जाए.
इस हमले से पाकिस्तान को ये फायदा हुआ कि किसी कश्मीरी नागरिक के मारे जाने का इल्जाम भी उनके सिर नहीं आया और उनका काम भी हो गया. हर सत्र की शुरुआत से पहले दुनियाभर के नेता न्यूयॉर्क में इकट्ठा होते हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने देश के प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं और न्यूयॉर्क पहुंच चुके हैं. पाकिस्तान पहले ही कह चुका है कि वो संयुक्त राष्ट्र की महासभा और अपनी द्विपक्षीय वार्ताओं के दौरान कश्मीर के मुद्दे को उठाएगा.
पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को उठाते हुए ये भी दावा करेगा कि वहां मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. साथ ही वो ये भी बताएगा कि भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते कितने खतरनाक होते जा रहे हैं. उसे उम्मीद है कि इस हमले के बाद उसकी इन सभी बातों को गंभीरता से लिया जाएगा.
- इस हमले को जानबूझकर संयुक्त राष्ट्र की 71वीं महासभा के आसपास कराया गया.
- कश्मीर के हालात की तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए ये हमला किया गया. इस हमले से उन पर वहां रह रहे आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप नहीं लगेगा.
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर की असलियत को समझता है और वो ये भी जानता है कि किस तरह से पाकिस्तान वहां आतंकवाद को समर्थन दे रहा है.
- भारतीय अधिकारियों को चाहिए कि वो तीखा और तेज नहीं, बल्कि शांत और नपा-तुला जवाब दें, इससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत इस पर अपनी पसंद की जगह और समय पर कार्रवाई करेगा.
बुरहान वानी के लिए हो रहे प्रदर्शन के आगे की कार्रवाई?
हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की हत्या को 10 सप्ताह बीत चुके हैं. इतने दिनों में कश्मीर के युवाओं ने खूब पत्थरबाजी की और दो महीने से ज्यादा तक कर्फ्यू लगा रहा. पाकिस्तान ने कश्मीर की इस स्थिति को ऐसे दर्शाया, जैसे कश्मीर के लोग भारत से अलग होना चाहते हैं. पाकिस्तानी प्रचार मशीनरी दिखाना चाहती है कि कश्मीर में तो शांतिपूर्वक तरीके से प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन भारत बहुत ही सख्ती से इससे निपट रहा है.
नवाज शरीफ ने इस पर संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के नेताओं को लिखा, दुनिया के ताकतवर देशों में अपने प्रतिनिधि भेजे. यहां तक कि इस बार की ईद भी कश्मीरियों के नाम कर दी. ये सब इसलिए किया, जिससे कि तथाकथित कश्मीर का मुद्दा रोशनी में आ सके. लेकिन इन सबके बावजूद पाकिस्तान को जिस प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, वैसा कुछ भी नहीं हुआ.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर की असलियत को समझता है और वो ये भी जानता है कि किस तरह से पाकिस्तान वहां आतंकवाद को समर्थन दे रहा है.
वो ये भी जानते हैं कि शुरुआत में भारतीय सेना ने पत्थरबाजी कर रही भीड़ से शांति से ही निपटने की कोशिश की. लेकिन इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान नहीं खींच पाने की नाकामी को पाकिस्तनी विश्लेषक, राजदूत और टिप्पणीकार सभी समझ रहे हैं.
पाक्स्तिान के एक नामी अखबार में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रह चुके अशरफ जहांगीर काजी ने पाकिस्तान की भारत के प्रति विफल नीतियों पर दुख जताया. उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आज के समय में कश्मीर के मुद्दे पर कोई भी पाकिस्तान की बात मानने को तैयार नहीं है.’ साथ ही उन्होंने कहा कि कश्मीर में मानवाधिकारों के जो हालात हैं, उससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कोई लेना-देना नहीं है.
इन सबसे पाकिस्तान की उन सभी कोशिशों को जबरदस्त धक्का लगा, जिनमें नवाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की थी. एक जाने-माने पाकिस्तानी पत्रकार ने हाल ही के अपने लेख में कश्मीरियों से पाकिस्तानी झंडे नहीं लहराने की अपील तक कर डाली. उन्होंने कहा,
आप लोगों को ऐसा इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब भी पाकिस्तान का मुद्दा उठता है, तो दुनिया मुंह फेर लेती है.
क्या उरी का दांव सफल होगा?
क्या इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर के मुद्दे पर अधिक ध्यान देगा? क्या कश्मीर में मानवाधिकारों की समीक्षा की नवाज शरीफ ने जो मांग उठाई है, उसे गंभीरता से लिया जाएगा? हालांकि ऐसा होने की बहुत की कम संभावना है कि कोई भी ताकतवर देश इस मुद्दे पर भारत का साथ छोड़ेगा. ये हो सकता है कि कुछ देश भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता की सलाह दें, जिससे दोनों के बीच तनाव कम हो सके. जो भी हो, लेकिन अगले कुछ सप्ताह भारत को होशियारी से कूटनीति करनी होगी.
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इस हमले के मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करने में हम सख्ती न दिखाए. इस बात का कोई भी खंडन नहीं कर सकता कि भारत की सुरक्षा हितों की रक्षा में कोई कोताही नहीं होगी. इसमें हम केवल वार्ता और कूटनीति तक ही सीमित नहीं रहेंगे.
इसका मतलब ये है कि इस मुद्दे पर अन्य कूटनीतिक कदमों की साथ भारतीय अधिकारियों का जवाब तीखा नहीं, बल्कि नपा-तुला और शांत होना चाहिए. इसी से पाकिस्तान पर दबाव बनेगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विश्वसनीयता दांव पर लगाई!
इस मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा था, ‘मैं देश को विश्वास दिलाता हूं कि इस हमले के पीछे जो भी है, वो बचेगा नहीं.’ उनका ये बयान बहुत ही महत्वपूर्ण है. उनका मतलब था कि भारत इस पर कार्रवाई करेगा, लेकिन अपनी मर्जी के स्थान और समय पर.
मोदी ने ये बयान देकर अपनी विश्वसनीयता दांव पर लगा दी है, क्योंकि इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने इस तरह का मुखर बयान नहीं दिया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात पर गौर करेगा और अमरीका जैसे देश भारत को समझाने की कोशिश करेंगे कि वो धैर्य से काम लें. साथ ही वो इसका जिम्मा पाकिस्तान पर डालेंगे और उनसे आतंकवादियों पर लगाम लगाने को कहेंगे.
एक आखिरी विचार: भारतीय सेना ने कश्मीर में कठिन परिस्थितियों में समर्पण और वीरता के साथ काम किया है. उन्होंने ऐसा करते हुए देश के लोगों का सम्मान हासिल किया है. उरी में जिन सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, उन्होंने भारतीय सेना की परंपरा को निभाया.
लेकिन यहां सेना के नेतृत्व से एक सवाल पूछा जाना चाहिए: आखिर आतंकी कैंप तक घुसे कैसे? क्या ये किसी की ढिलाई की वजह से हुआ? लोगों को इन सवालों का जवाब दिया जाना चाहिए.
(लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं)
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