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सचिन महान हैं, क्रिकेट के भगवान हैं, पर विराट उन पर भारी हैं

क्या विराट कोहली सचिन तेंदुलकर से बेहतर हैं?

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सचिन तेंदुलकर को अगर क्रिकेट का भगवान कहा जाता है तो विराट कोहली को निस्संदेह क्रिकेट का ‘चक्रवर्ती सम्राट’ कहा जा सकता है. भगवान के बारे में मौजूदा युग में कुछ भी कहना वैसे तो खतरे से खाली नहीं है. लेकिन विराट कोहली ने हाल में जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसने एक नई बहस को जन्म दिया है. क्या विराट सचिन से बेहतर है ?

हालांकि क्रिकेट को शास्त्रीय अंदाज में देखने और समझने वाले विशेषज्ञ इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि अलग-अलग युग के खिलाड़ियों की कोई तुलना हो सकती है. समय बदलने के साथ बहुत कुछ बदल जाता है. खेलने का अंदाज बदलता है. खिलाड़ियों की गुणवत्ता में तब्दीली आती है. पिच का मिजाज अलग हो जाता हैं. दर्शकों की उम्मीदें बदलती है. पूरी की पूरी टीम में सोच का तरीका बदल जाता है.

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ब्रैडमैन के जमाने में जो क्रिकेट खेली जाती थी आज वैसी क्रिकेट नहीं खेली जाती. जो क्रिकेट सुनील गावस्कर के समय खेली गई, सचिन के समय में उसमे काफी बदलाव आ गया. और ऐसी ही तब्दीली विराट और सचिन के युग में भी देखी जाती है. पर जो चीज नहीं बदलती वो है बल्ले और गेंद का संघर्ष और इसी संघर्ष से जन्म होता है खिलाड़ियों की तुलना का.

मौजूदा दौर भारतीय क्रिकेट का स्वर्ण काल

ये सच है कि गावस्कर एक ऐसी टीम में खेलते थे, जिसको जीत का चस्का नहीं लगा था. सचिन के आगमन के साथ ही टीम ने जीतना शुरू कर दिया था. विराट के वक्त टीम को जीत का ऐसा जुनून सवार हुआ है कि वो हारना बर्दाश्त नहीं कर पाती. ये कह सकते है कि मौजूदा दौर भारतीय क्रिकेट का स्वर्ण काल है. ये वो समय है जब भारतीय टीम ने विपक्षी टीमों के दिलों में दहशत भर दी है.

बिल्कुल वैसे ही जैसे कभी ब्रैडमैन की टीम का खौफ था या फिर क्लाइव लॉयड की टीम से लोग दहशत खाते थे. स्टीव वॉ और रिकी पाॉन्टिंग की टीम भी अपने समय में अजेय थी. भारतीय टीम को इस मुकाम तक पंहुचाने में विराट की बल्लेबाजी और कप्तानी का बड़ा हाथ हैं. विराट आज वैसे बल्लेबाजी कर रहे हैं जैसे कभी विवियन रिचर्डस बल्लेबाजी किया करते थे. उनकी मौजूदगी गेंदबाजों की टांगें कंपा देती है. उनके रिकॉर्ड की बराबरी किसी भी भारतीय बल्लेबाज के लिये करना नामुमकिन सा लगता है.

वो निर्विवाद रूप से आज के युग के सबसे बड़े बल्लेबाज हैं. एबी डी विलियर्स, जो रूट और केन विलियम्सन आज के बेहतरीन बल्लेबाज हैं पर विराट का जो असर टीम पर है वो उनकी टीमों में नहीं दिखता. यही वजह है कि विराट की तुलना सचिन तेंदुलकर से की जाने लगी है. क्योंकि सचिन की मौजूदगी ने सौरव गांगुली और धोनी की टीम पर चमत्कारी प्रभाव डाला था.

सचिन भारतीय क्रिकेट के ‘रेनेसां मैन’ थे. 90 के दशक में सचिन के बल्ले ने जैसे -जैसे करिश्मे दिखाये वैसे-वैसे भारतीय टीम बदलती चली गई. वो विश्व विजेता बन गई.

सचिन से विराट की तुलना

सचिन को महामानव कहा जाने लगा. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 200 टेस्ट खेलना, 100 शतक बनाना, किसी चमत्कार से कम नहीं था. उनकी तुलना डान ब्रैडमैन से होने लगी. विज्डन ने उन्हे ब्रैडमैन के बाद का सबसे बड़ा खिलाड़ी भी कहा. ऐसे में अगर आज ये कहा जाये कि सचिन से बेहतर विराट कोहली हैं तो लोगों को थोड़ा अटपटा लग सकता है.

मेरा मानना है कि अब वो वक्त आ गया है कि इस विश्लेषण को आगे बढ़ाना चाहिये. विराट ने तुलना लायक क्रिकेट खेल ली है. सचिन ने अगर 463 एकदिवसीय मैच खेले थे, तो विराट भी 202 मैच खेल चुका है. सचिन ने 100 शतक मारे तो विराट भी पचास लगा चुके हैं. ये सच है कि बाद के दिनों में सचिन को सहवाग, सौरव, राहुल और लक्ष्मण जैसे गजब के बल्लेबाजों का साथ मिला.

इस टीम की बल्लेबाजी को भारत की अब तक की सबसे बेहतरीन बल्लेबाजी वाली टीम कह सकते हैं. विराट के साथ शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे, पुजारा है जो सचिन के साथियों की तुलना में कहीं से भी कमजोर नहीं लगते. ऐसे में बल्लेबाजी का जो दबाव गावस्कर को झेलना पड़ता था कम से कम सचिन, विराट को वैसे तनाव का सामना नहीं करना पड़ा. गावस्कर को हमेशा ये डर सताता था कि उनके आउट होने के बाद पूरी टीम भरभरा जाएगी सचिन, विराट के साथ ये दिक्कत नहीं थी. इस लिहाज से सचिन, विराट लगभग एक समान हैं.

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सचिन में थीं दो खामियां

ये सच है कि सचिन का करियर खत्म हो चुका है और विराट का अभी चल रहा है. काफी उतार-चढाव आ सकते है. ऐसे में सचिन के बारे मे ज्यादा निश्चिंत होकर आंकलन लगाया जा सकता है. सचिन के महान बल्लेबाज होने के बावजूद उनमें दो खामियां थी, जो कभी भी उनका पीछा नहीं छोड़ेंगी. सचिन के बारे में ये कहा जाता है कि वो दबाव में वैसी बल्लेबाजी नहीं कर पाते थे, जैसे वो बिना दबाव में करते थे. सचिन ने 463 एकदिवसीय मैचों में 45 की औसत से रन बनाये. लेकिन विपक्षी टीमों के रनों का पीछा करते हुये बल्लेबाजी में उनका रन औसत गिर जाता है. सचिन ने पीछा करते हुये 232 मैचों में बैटिंग की. उनका औसत 42 ही रहा.

यानी पहली पारी में जब दबाव कम होता है तो उन्होंने ज्यादा अच्छी बल्लेबाजी की. दिलचस्प बात ये है कि विराट के साथ उल्टा है. उन्होंने कुल 202 एकदिवसीय मैचों में लगभग 56 की औसत से रन बनाये जो सचिन से 10 रन प्रति पारी ज्यादा का औसत है. पर विराट का असली जादू दूसरी पारी में दिंखता है. पहली पारी में अगर वो थोड़ा केयरफ्री दिखते हैं तो दूसरी में दबाव में उनकी बल्लेबाजी सचिन की तुलना कहीं अधिक निखरती है.

विराट ने विपक्षी टीम का पीछा करते हुये 232 में से 102 मैचों में बैटिंग की. उनका रनों का औसत घटने की बजाय बढ़ गया. ये औसत हुआ लगभग 61. जो आश्चर्यजनक रिकॉर्ड है. ये रिकॉर्ड पीछा करते हुये भारतीय टीम की जीत में और शानदार हो जाता है. सचिन जीत में अगर 55 का औसत रखते हैं तो विराट का रिकॉर्ड 84 का है. सचिन कहीं पीछे छूट जाते हैं.

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इसी तरह पीछा करते हुये विराट का शतकों का रिकॉर्ड सचिन पर काफी भारी पड़ता है . पीछा करते हुये सचिन ने 232 पारियों में 17 शतक जड़े, तो विराट ने महज 102 पारियों में ही 17 शतक ठोक दिये. (वैसे वो पीछा करते हुये बल्लेबाजी में 19 शतक बना चुके है.) यानी यहां भी ये साबित होता है कि विराट दबाव में सचिन से कहीं बेहतर बल्लेबाजी करते हैं. वो पूरी टीम को अपने कंधों पर उठा अकेले जीत का माद्दा सचिन से ज्यादा रखते हैं. पीछा करते हुये टीम की जीत में अगर सचिन ने 14 शतक लगाये तो विराट ने 17. विराट जिस गति से खेल रहे हैं उसको देखते हुये वो सचिन को इस मामले में काफी पीछे छोड़ देंगे.

सचिन की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी रही है उनकी कप्तानी. सचिन ने अपनी जीवनी में लिखा है कि कप्तानी उन्हें रास नहीं आयी और टीम की लगातार हार से वो इतने दुखी हो गये थे कि अपनी पत्नी से वो बोल बैठे कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वो क्या करें ? और इसी निराशा में उन्होंने कप्तानी छोड़ दी.

सचिन पर भारी पड़ते हैं विराट

सचिन ने 25 टेस्ट और 73 वनडे मे कप्तानी की. टेस्ट में उनका बल्लेबाजी का आंकड़ा लगभग 51 रनों का था. जिसे काफी अच्छा माना जा सकता है. पर विराट यहां भी बल्लेबाजी के लिहाज से काफी भारी पड़ते हैं. विराट का कप्तानी के समय बल्लेबाजी का औसत लगभग 61 का है. सचिन से दस अंक आगे. इसी तरह वनडे में भी सचिन, विराट से मीलों पीछे हैं.

सचिन ने 73 पारी में लगभग 38 की औसत से रन बनाये है. वनडे में विराट को कप्तानी देर से मिली. वो अब तक 40 पारी खेल चुके हैं. जिसमें उनकी रनों का औसत लगभग 75 है. ये आंकड़ा ऐतिहासिक है. चमत्कारिक है. ये दर्शाता है कि विराट जिम्मेदारी मिलने के बाद और बेहतरीन हुये है. ज्यादा विस्फोटक और विध्वंसकारी बने है. सचिन जिम्मेदारी में बिखर गये ऐसा आंकड़े कहते हैं. सचिन पर जब दबाव नहीं रहता था या कम जिम्मेदारी के समय उनके खेल का कोई सानी नहीं था.

टेस्ट मैचों में किसी भी मैच में पहले बल्लेबाजी करते समय यानी ये वो समय होता है जब बल्लेबाज पर दूसरी टीम के रनों का मनोवैज्ञानिक दबाव नहीं रहता तब सचिन ने लगभग 72 की औसत से रन बनाये हैं. पहली टीम की बल्लेबाजी करने के बाद जब भारतीय टीम ने पहली पारी खेली तो सचिन का औसत 63 का है जो भारतीय टीम की दूसरी पारी में अचानक गिर कर 43 हो जाता है. चौथी पारी में तो ये रिकॉर्ड और भी खराब है. महज 37 रनों का.

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सचिन पर रहता था 120 करोड़ लोगों का दबाव

यहां ये तर्क दिया जा सकता है कि सचिन के कंधों पर 120 करोड़ भारतीयों का दबाव हमेशा रहता था. बल्लेबाजी करते समय ये दबाव झेलना आसान नहीं होता पर अगर ये दबाव सचिन पर था तो ये दबाव अब विराट पर भी है. वो तो अब कप्तान भी है. यानी सचिन से अधिक तनाव उस पर होगा. सचिन के वक्त वीवीएस लक्ष्मण के बारे में कहा जाता था कि टीम जब-जब संकट में होती थी, वो लय में आते जाते थे. खेल और खूबसूरत होता जाता था. इसी तरह गुंडप्पा विश्वनाथ भी विख्यात थे.

ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ तो कठिन मौकों पर अपराजेय हो जाते थे. जावेद मियांदाद भी ऐसे ही बल्लेबाज थे. ऐसे में ये तर्क सही नहीं है कि सचिन पर दबाव ज्यादा होता था. दबाव सचिन पर नहीं होगा तो क्या किसी मामूली बल्लेबाज पर होगा ? ऐसे में मेरा मानना है कि सचिन महान हैं, क्रिकेट के भगवान हैं पर विराट उनपर भारी हैं. आंकड़े ये कहानी कहते हैं.

सचिन के प्रशंसकों को ये बात थोड़ी बुरी लग सकती है. उन्हें इस बात की खुशी होनी चाहिये कि विराट उनकी ही विरासत को बेहतर तरीके से आगे बढ़ा रहा है. वैसे भी रिकॉर्ड तो टूटने के लिये ही बनते है. ऐसे में, दोनों महानतम खिलाड़ियों की तुलना में मेरी पहली पसंद विराट हैं. सचिन दूसरे पर ही रहेंगे.

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