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नेपाल में कम्युनिस्टों की जीत के पीछे नोटबंदी का हाथ!

के पी ओली शर्मा हो सकते हैं प्रधानमंत्री. कम्यूनिस्ट गठबंधन ने जीतीं 165 में से 116 सीटें

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भारत में हुई नोटबंदी के भूत ने नेपाल के लोगों का पीछा अभी तक नहीं छोड़ा है, और इसने नेपाली वोटरों को इस हद तक प्रभावित किया कि उन्होंने भारत-समर्थक राजनेताओं और नेपाली कांग्रेस को हराकर चीन-समर्थक नेपाली कम्युनिस्ट पार्टियों को जीत दिला दी. अब के. पी. शर्मा ओली और प्रचंड नेपाल की सत्ता संभालेंगे जिससे नई दिल्ली को राजनीतिक झटका लगा है.

ओली-प्रचंड की जोड़ी को जीत की उम्मीद थी

सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के कई “राष्ट्रवादी” नेताओं ने नेपाल के लोगों की भारतीय मुद्रा में कमाई (जो नोटबंदी के बाद बेकार हो गई थी) से जुड़ी भावना को जमकर भुनाया और नेपाली कांग्रेस के भारत-समर्थक नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

सीपीएन-यूएमएल के चीन-समर्थक नेता के.पी.शर्मा ओली, जो नेपाल के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं, ने अपने सहयोगी पुष्प कमल दहल प्रचंड के साथ मिलकर संसद की 165 में से 116 सीटें जीत ली हैं.

नेपाली कांग्रेस को सिर्फ 23 सीटें मिली हैं, जबकि राष्ट्रीय जनता पार्टी को 11 और फेडरल सोशलिस्ट फोरम नेपाल को 10 सीटें मिलीं.

सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी गठबंधन ने 7 प्रांतीय विधानसभाओं में से 6 में भी जीत हासिल की है.

ओली-प्रचंड की जोड़ी को संसद में दो-तिहाई बहुमत मिलने की उम्मीद है जिसके बाद वो नेपाल को आसानी से चीन की गोद में बिठा सकते हैं.

नोटबंदी नेपाल में एक चुनावी मुद्दा था

नेपाल के लोग अभी भी भारतीय रुपए की नोटबंदी का दंश झेल रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने नोटबंदी के साल भर बाद भी पुरानी भारतीय मुद्रा को नए से बदला नहीं है. आरबीआई नेपाल के सेंट्रल बैंक, नेपाल राष्ट्र बैंक के साथ 7.85 करोड़ रुपए के विमुद्रीकृत भारतीय रुपए को बदलने से अभी तक इनकार करता रहा है.

अंदाजा है कि नेपाल के लोगों के पास अभी भी 20 अरब रुपए के पुराने भारतीय नोट हैं. 2.9 करोड़ की आबादी वाले इस देश की प्रति व्यक्ति आय सालाना 2,500 अमेरिकी डॉलर है.

हमने इस मुद्दे को भारत सरकार—विदेश मंत्रालय और रिजर्व बैंक- के साथ हर स्तर पर कई बार उठाया है, लेकिन उनका जवाब नहीं आ रहा. भारत से दो टीमें नेपाल का दौरा कर चुकी हैं. नेपाल के लोगों का भारत और भारतीय मुद्रा से भरोसा उठ रहा है.
चिंतामणि शिवकोटि, डेप्युटी गवर्नर, नेपाल राष्ट्र बैंक
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पुराने नोट बदले जाने का आश्वासन पूरा नहीं हुआ

नेपाल सरकार में उच्च स्तरीय सूत्र ने कहा:

प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और नेपाल के राष्ट्रपति ने भारत दौरे में इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उठाया था लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला.

नाम गुप्त रखने की शर्त पर नेपाल के एक अधिकारी ने कहा, “वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी नोट बदले जाने का आश्वासन दिया जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है.”

काठमांडू में भारतीय दूतावास ने भावी संकट का अंदाजा लगाकर नई दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व को कई संदेश भेजे हैं, जिनमें कहा गया है कि इस उदासीनता से नेपाल के लोग भारत के खिलाफ हो रहे हैं जिसका नतीजा होगा इलाके में चीन का बढ़ता दखल.

नोटबंदी से छोटे किसान और मजदूर प्रभावित हुए

भारत में 1 करोड़ से ज्यादा नेपाली नागरिक काम करते हैं. नेपाल के दूर-दराज के इलाकों तक में भारतीय नोट स्वीकार किए जाते हैं.

नेपाल राष्ट्र बैंक के एक उच्चस्तरीय सूत्र ने बताया. “नेपाल का दो-तिहाई से ज्यादा कारोबार भारत के साथ होता है, और नेपाल में इस्तेमाल होने वाली मुद्रा का कम से कम एक-चौथाई हिस्सा भारतीय रुपए का होता है.”

बड़े कारोबारियों और व्यापारियों ने विमुद्रीकृत भारतीय नोट को भारत में काले बाजार में बदल लिया, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लाखों गरीब और छोटे किसानों-मजदूरों के पास अभी भी विमुद्रीकृत भारतीय नोट पड़े हैं.

आरबीआई के नियम के मुताबिक नेपाल और भूटान के नागरिक भारत से बाहर 25,000 भारतीय रुपए तक रख सकते हैं, और नेपाल भारत से आग्रह कर रहा है कि वो नेपाल के हर नागरिक के लिए इतनी रकम बदल दे.

नेपाल राष्ट्र बैंक के फॉरेक्स विभाग के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर भीष्म राज धुंगना ने बताया: हमने मार्च 2017 में शुरुआती तौर पर आरबीआई का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था कि हर नागरिक के लिए 4,500 रुपए बदले जाएंगे. लेकिन जब तक मामला सुलझ नहीं जाता, 500 और 2000 रुपए के नए भारतीय नोट नेपाल में नहीं चलेंगे.

आरबीआई ने इस बारे में ना तो किसी ईमेल का जवाब दिया और ना ही गवर्नर उर्जित पटेल और कम्युनिकेशंस डिपार्टमेंट के चीफ जनरल मैनेजर जोस जे. कत्तूर को किए फोन कॉल्स का.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और नई दिल्ली में रहते हैं. इस लेख में उनके विचार हैं और उनसे क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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