भारत ने मंगलवार, 12 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें गाजा में तत्काल युद्धविराम और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार नागरिकों की सुरक्षा और सभी बंधकों की रिहाई का आह्वान किया गया था.
बता दें कि इससे पहले भारत ने 27 अक्टूबर को इसी तरह के UNGA के प्रस्ताव पर वोटिंग में यह कहते हुए हिस्सा नहीं लिया था कि इसमें हमास द्वारा इजरायल में 7 अक्टूबर के हमलों का उल्लेख नहीं किया गया था.
12 दिसंबर का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हुआ. 153 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. वहीं इजरायल, अमेरिका सहित केवल 10 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया. अन्य 23 देशों ने, मुख्य रूप से यूरोप से, वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
भारत ने ट्रैक कैसे बदला?
भारत और अन्य देशों द्वारा समर्थित अमेरिका और ऑस्ट्रिया ने "हमास द्वारा आतंकवादी हमले" का एक विशिष्ट उल्लेख शामिल करने के लिए मंगलवार के UNGA प्रस्ताव में संशोधन को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन वे समर्थन जुटाने में असफल रहे.
इस बार भी UNGA के प्रस्ताव में हमास के हमलों का नाम लेकर जिक्र नहीं किया गया. लेकिन भारत ने ट्रैक बदल लिया. यह प्रस्ताव 8 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तत्काल युद्धविराम की मांग करने वाले इसी तरह के प्रस्ताव पर अमेरिका के वीटो के मद्देनजर आया है.
यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा जनरल एंटोनियो गुटेरेस के अनुच्छेद 99 के आह्वान का परिणाम था जिसमें UNSC को सूचित किया गया था कि गाजा की स्थिति "अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव को खतरे में डालती है". यह धारा 1989 के बाद पहली बार (लेबनान में युद्ध के दौरान) और गुटेरेस द्वारा पहली बार लागू की गई. 27 अक्टूबर के प्रस्ताव से दूर रहने के बाद भारत ने एक अनौपचारिक नोट जारी कर अपना रुख स्पष्ट किया. सरकार ने कहा कि प्रस्ताव में आतंकवादी हमले और बंधकों की रिहाई की "स्पष्ट निंदा" शामिल नहीं थी.
इस बार वोट के बारे में बताते हुए, स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने भारत के रुख में बदलाव के विशिष्ट कारणों पर चर्चा नहीं की, लेकिन इस बात की प्रशंसा की कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उस स्थिति से निपटने के लिए एक आम आधार खोजने में सक्षम रहा, जहां हमास के हमले के जवाब में 18,000 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और युवा शामिल हैं. वहीं हमास के हमले में 1200 इजरायली मारे गए हैं.
कंबोज ने भारतीय वोट को सूचित करने वाले चार मानदंड रखे, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह कठिन समय में "संतुलन कायम करने" का एक प्रयास है. ये चार मुद्दे हैं:
7 अक्टूबर के हमले में हमास का जिक्र न होना
मानवीय संकट और बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान
हर परिस्थिति में मानवीय कानून का पालन करने की बात
फिलिस्तीन मुद्दे का स्थायी "दो-राज्य" समाधान खोजने की आवश्यकता
भारत के रुख में बदलाव के क्या मायने हैं?
शुरू से ही, नई दिल्ली ने इजरायल पर अपनी नीति को बदलने की कोशिश की. हमास के आतंकी हमले के दिन, प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, "इजरायल पर आतंकवादी हमलों की खबर से चिंतित हूं...इस कठिन घड़ी में हम इजरायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं."
तीन दिन बाद, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात करने के बाद, उन्होंने इन विचारों को दोहराया और कहा कि "भारत आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की दृढ़ता से और स्पष्ट रूप से निंदा करता है." गाजा में फिलिस्तीनियों की स्थिति के संबंध में कोई बात नहीं कही गई थी.
हमलों के पांच दिन बाद विदेश मंत्रालय की ओर से एक तरह का सुधारात्मक बयान आया, जिसमें कहा गया कि "अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करना एक सार्वभौमिक दायित्व है" और आतंकवाद से लड़ने की जिम्मेदारी है. आधिकारिक प्रवक्ता ने इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की आधिकारिक स्थिति स्पष्ट कि, जिसमें "इजरायल के साथ शांति से सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले फिलिस्तीनियों के लिए एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राज्य की दिशा में सीधी बातचीत का आह्वान किया गया."
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस सप्ताह भारत की स्थिति में बदलाव इजरायल द्वारा गाजा पर किए गए असंतुलित रूप से बड़े पैमाने पर विनाश के कारण हुआ है. यह कोई संयोग नहीं है कि यह उस दिन आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अमेरिका यूरोप और दुनिया के अन्य देशों की तरह इजरायल का समर्थन करना जारी रखेगा, "लेकिन अंधाधुंध बमबारी के कारण वे उस समर्थन को खोना शुरू कर रहे हैं."
तेल अवीव को अब तक दी गई खुली छूट को लेकर बाइडेन को अपनी ही डेमोक्रेटिक पार्टी और अपने आधिकारिक पद से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है. निस्संदेह, इससे साउथ ब्लॉक में कुछ सावधानी बरती गई होगी.
स्थिति में बदलाव मोदी सरकार के दृष्टिकोण का परिणाम
वैसे भी, मंगलवार को UNGA में वोटिंग से संकेत दे दिए हैं कि हवा किस तरफ बह रही है. नतीजे के अलग-अलग हिस्सों पर नजर डालें तो, भारत या तो अमेरिका और इजरायल के साथ-साथ आठ अलग-अलग देशों के साथ होता, जिन्होंने इसका विरोध किया होता, या 23 (बड़े पैमाने पर यूरोपीय) देश जो अनुपस्थित रहे. 27 अक्टूबर को पास हुए प्रस्ताव के बाद उन 33 देशों के स्टैंड में बड़े पैमाने पर बदलाव दिखता है, जो या तो तटस्थ थे या इजरायल का समर्थन कर रहे थे.
ग्लोबल साउथ, जिसका नेतृत्व करने का दावा नई दिल्ली करता है, दृढ़तापूर्वक और निर्णायक रूप से युद्धविराम प्रस्ताव के पक्ष में था. जिन अरब देशों ने इस प्रस्ताव की पहल की और इसका समर्थन किया, वे स्वयं असमंजस में हैं. कई उदाहरणों में, उनके नेता उस लोकप्रिय राय के पीछे हैं जो अब पूरी तरह से फिलिस्तीनी मुद्दे के समर्थन में हैं.
इजरायल-हमास युद्ध पर भारत की बदलती स्थिति मोदी सरकार के दृष्टिकोण का परिणाम है जो दृढ़ता से इजरायल समर्थक है और फिलिस्तीनियों के लिए केवल सांकेतिक सहानुभूति रखती है. यह भारत-इजरायल-यूएस-यूएई (I2U2) समूह जैसी संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका और इजरायल के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध से भी जुड़ा हुआ है, और एक प्रमुख समुद्री लिंक के रूप में हाइफा के इजरायली बंदरगाह का उपयोग करके भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) स्थापित करने की नई योजना है.
चूंकि गाजा पर मौत और विनाश की बारिश जारी है, इसलिए इनमें से कई योजनाओं के जल्द सफल होने की संभावना नहीं है. इजराइल की तरह अमेरिका भी तेजी से अलग-थलग होता जा रहा है. भारतीय नीति को अब इस बर्बाद भू-राजनीतिक परिदृश्य से निपटना होगा. गाजा का भविष्य क्या है, यह उतना ही अस्पष्ट है जितना भारत की पश्चिम एशिया नीति.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपीनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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