कर्नाटक के उपचुनाव के नतीजों को यह कहकर टाला नहीं जा सकता है कि ऐसे नतीजों का लोकसभा चुनाव पर कोई असर नहीं होता है. हो सकता है कि अगले साल का आम चुनाव उपचुनाव की कार्बन कॉपी न हो, लेकिन कर्नाटक में कुछ अजूबा हुआ है, जिसका असर जल्दी खत्म नहीं होने वाला है. सबसे बड़ा अजूबा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी जेडीएस के गठबंधन को लोगों ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया.
चुनाव में गठबंधन के उम्मीदवार को करीब उतने ही वोट मिले, जितने दोनों पार्टियों को औसतन मिलते रहे हैं. और दूसरी बात, 5 में से 4 उपचुनाव में गठबंधन के उम्मीदवार को 60 परसेंट और इससे ज्यादा वोट मिले, जो किसी भी चुनाव में अप्रत्याशित होता है. इस हिसाब से कर्नाटक के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है.
अब जानते हैं कि दिल्ली की रेस में इस मिनी चुनाव का क्या असर होगा.
BJP के साउथ इंडिया ड्रीम को झटका
बीजेपी के लिए साउथ ऑफ विंध्याज के सपने के लिए कर्नाटक का खासा महत्व था. लगातार दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्य में बड़ी सफलता पाई थी. 2014 में भी पार्टी को राज्य के 28 में से 17 सीटें मिली थीं. लेकिन उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि उसमें भारी कमी हो सकती है.
अगर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को 60% और ज्यादा वोट मिल सकते हैं, तो इससे लगता है कि राज्य की ज्यादातर सीटों पर इसी गठबंधन का एडवांटेज रहेगा. और ये बीजेपी के लिए काफी बुरी खबर है.
साउथ इंडिया, मतलब लोकसभा की 130 सीटें. इतनी बड़ी टेरिटरी में अगर बीजेपी की मौजूदगी इक्का-दुक्का सीटों पर ही रहती है, तो पार्टी को देश के बाकी इलाकों में क्लीन स्वीप करना होगा. नहीं, तो नंबर में काफी कमी आ सकती है.
दक्षिण में सीटों की कमी की भरपाई कहां से
पिछले चुनाव के आंकड़ों को देखेंगे, तो बीजेपी को पांच राज्यों की 67 लोकसभा सीटों में सारी सीटें मिली थीं. ये राज्य हैं- गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली. इन राज्यों में इस बार सीटें ज्यादा तो आ नहीं सकतीं, कमी भले ही संभव है.
इसके अलावा चार राज्य- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी को 134 में से 122 सीटें मिली थीं. यहां भी ज्यादा की उम्मीद नहीं की जा सकती है. इन राज्यों में भी सीटों में कमी ही संभव है. इसके अलावा बचे महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पूरा नॉर्थ ईस्ट.
पंजाब के मूड से नहीं लगता है कि वहां बीजेपी को कुछ खास मिलने वाला है. पश्चिम बंगाल में वोट तो ज्यादा मिल सकते हैं, लेकिन सीटों में बढ़त होगी, ऐसा फिलहाल नहीं दिख रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में बीजेपी बड़ा तीर नहीं मारने वाली है. महाराष्ट्र और बिहार में 2014 में ही बीजेपी और सहयोगियों का जोरदार प्रदर्शन रहा था और वहां भी 2019 में बीजेपी को फायदा होगा, ऐसा किसी सर्वे में इंडिकेशन नहीं है.
तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि साउथ इंडिया के अलावा 14 राज्य ऐसे हैं, जहां नुकसान तो संभव है, लेकिन बीजेपी की सीटें नहीं बढ़ सकती हैं. सिर्फ नॉर्थ ईस्ट और ओडिशा ऐसे इलाके हैं, जहां बीजेपी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है. लेकिन दिक्कत है कि यहां सिर्फ 40 सीटें हैं.
कुल मिलाकर, देश की 485 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी के लिए 2014 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन मुश्किल लगता है. इसी आंकड़े से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कर्नाटक के झटके का कितना दूरगामी नतीजा हो सकता है.
कांग्रेस अपनी खोई जमीन रिकवर कर रही है
इसकी शुरुआत पंजाब से हुई, जहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की. इसके अलावा गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिखाया कि वो बीजेपी से बराबरी का मुकाबला कर सकती है. इसके साथ हमें यह याद रखना होगा कि 2014 के बाद लोकसभा के जितने चुनाव हुए हैं, उसमें बीजेपी को 10 सीटों पर हार मिली, जिसमें से 5 सीटें कांग्रेस ने ही जीतीं.
जिन तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं, वहां भी सारे सर्वे यही बता रहे हैं कि कांग्रेस और बीजेपी में कड़ा मुकाबला है.
राजस्थान में सारे सर्वे कांग्रेस को आगे दिखा रहे हैं. छत्तीसगढ़ में बीजेपी को आगे बताया जा रहा है, जबकि मध्य प्रदेश में मुकाबला बराबरी का है. इससे बड़ा कन्क्लूजन यही निकाल सकते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी का मुकाबला एकतरफा नहीं रह गया है, जैसा कि 2014 में था. 2014 में दोनों पार्टियों में 189 सीटों पर सीधा मुकाबला था, जिसमें से बीजेपी ने 166 सीटें जीतीं थी. मतलब मुकाबला काफी एकतरफा था. अगर इस बार मुकाबला बराबरी का होता है तो?
इन तीन बड़ी बातों को समझने के बाद सबसे बड़ी बात हम यही कह सकते हैं कि 2019 में दिल्ली का ताज किसे मिलेगा, ये अभी तय नहीं है. दावेदार कई हो सकते हैं.
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