मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जुलाई 09, 2015 को पटना के एसके मैमोरियल हॉल में महिला एक्टिविस्ट्स को संबोधित करने के बाद आकर बैठे ही थे कि 2,000 लोगों की उस भीड़ में से एक महिला ने आकर कहा, “मुख्यमंत्री जी, शराब बंद करइए, घर बरबाद हो रहा है.”
एक ने कहा तो बाकी महिलाओं को भी हिम्मत मिली, सब ने उसके सुर में सुर मिला दिया. सुनकर नीतीश कुर्सी से उठे और घोषणा की कि अगर नवंबर में होने वाले चुनावों में अगर मुझे फिर मुख्यमंत्री चुना गया तो बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.
पांच महीनों के अंदर ही नीतीश ने महिलाओं से किया अपना वादा पूरा कर दिया है. सरकार में लालू के साथ साझेदारी के बावजूद नीतीश को महिलाओं का विश्वास वापस मिलने लगा है.
शराब पर प्रतिबंध के पीछे की प्रेरणा
शराब पर प्रतिबंध की मांग तभी से उठती रही है जब 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद आबकारी नीतियों में बदलाव किए जिससे एक ओर जगह-जगह शराब की दुकानें खुल गईं और दूसरी ओर आबकारी की आय में भी इज़ाफा हुआ.
पर सरकारी आय में यह इज़ाफा, घरेलू हिंसा में होने वाली वृद्धि से सीधे-सीधे संबंधित था. यही वजह थी जिसके चलते चंपारन में कुछ महिला एक्ट्विस्ट्स ने इसका विरोध करने का निर्णय लिया.
यह आंदोलन सबसे पहले बेतिया के पास के एक गांव दोमथ में शुरू हुआ. नियम जह था कि जो भी शराब पीने पर पकड़ा जाएगा उसके गले में जूतों की माला डाल कर गांव भर में उसकी पत्नी के पीछे घुमाया जाएगा. इस आंदोलन का जबरदस्त असर हुआ. गांव में शराब की बिक्री बिलकुल बंद हो गई.
महिलाओं की शिकायतें
नीतीश के ग्रहनगर नालंदा के पास बरबीघा के एक गांव रमज़ानपुर की पंचायत ने फैसला लिया के जो भी शराब बेचता पाया जाएगा उसे 10,000 का जुर्माना देना होगा और जो शराब पीते हुए पाया जाएगा उसे 2,500 का जुर्माना और शारीरिक दंड भी भुगतना होगा.
फैसले के नतीजे सकारात्मक रहे.
चुनावों से पहले हर रैली में महिलाओं ने नीतीश से शराब को लेकर शिकायत की थी. जेडी-यू नेता ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि दोबारा चुने जाने पर वे इस शिकायत को दूर कर देंगे.
आय पर असर
शराब पर प्रतिबंध लगाने से पहले, नीतीश को राज्य की आय पर इसके असर की पूरी जानकारी थी. आखिर आबकारी विभाग की आय में 2005 के बाद जबरदस्त उछाल आया था. वर्ष 2005-06 में जहां आबकारी विभाग की आय 295 करोड़ थी, वहीं 2014-15 में यह 3220 करोड़ हो गई. मैजूदा आर्थिक वर्ष में (मार्च 31, 2016 तक) भी 4,000 करोड़ की आय होने का अनुमान है.
मैं जानता हूं कि बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए यह एक बड़ा नुकसान होगा. पर इस नुकसान को दूसरे तरीकों से पूरा किया जाएगा. शराब की बिक्री ने ग्रामीण क्षेत्र के सबसे गरीब तबके के घरों को नुकसान पहुंचाया है. इसे रोकना जरूरी है. बिहार में अप्रेल 01, 2016 से शराब को प्रतिबंधित करने को लेकर मेरा इरादा पक्का है.नीतीश, बिहार में फिर एक बार सीएम बनने के मात्र 6 दिन बाद
यह दूसरी बार है जब बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगा है, वर्ष 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी शराब पर प्रतिबंध लगाया था. पर उसका असर न होने से उसे 18 महीने बाद ही वापस ले लिया गया था. पर नीतीश को इतनी आसानी से अपनी बात से पीछे हट जाने वालों में नहीं गिना जाता.
(लेखिका बिहार में पत्रकार हैं)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)