ADVERTISEMENTREMOVE AD

Lok Sabha Elections 2024: एग्जिट पोल और बाजार नहीं भांप सके हवा का रुख

कांग्रेस यह मानने को तैयार नहीं है कि अक्षमता के कारण एग्जिट पोल गलत हो गए.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के नतीजे घोषित होने से एक दिन पहले 3 जून 2024 को भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में जोरदार उछाल आया. सट्टेबाजों को अगले दिन शेयर बाजार में होने वाले विस्फोट की आशंका थी तो वे पहले से ही बाजार पर दांव लगाने के लिए बेचैन रहे और बेचैन होंगे ही क्योंकि एग्जिट पोल (Exit Poll 2024) नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते और बीजेपी की प्रचंड जीत की भविष्यवाणी कर बैठा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन 4 जून को क्या हुआ, हम सबने देखा. जब पहले ही पता चल गया था कि बीजेपी बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर रहने वाली है और उसे अब अपने दो सहयोगी दलों के सहारे उम्मीद लगानी होगी. इसी के साथ शेयर बाजार धड़ाम से गिरा. एक दिन पहले जहां सेंसेक्स 3.4% चढ़ा था तो 4 जून को वही बाजार 5.7% गिर गया.

इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है. 2004 के चुनावों में भी जब बीजेपी की करारी हार हुई तो इसके तुरंत बाद, ही बाजार में मंदी आ गई और बाजार में 6.1% की भारी गिरावट आई क्योंकि सरकार में वामपंथियों की भागीदारी की संभावना चरम पर थी और बाद में उन्हीं के कारण सरकार बनी.

उस समय, शेयर बाजार पर नजर रखने वाली संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने गोल्डमैन सैक्स सहित कुछ ब्रोकरेज कंपनियों की जांच की थी - यह देखने के लिए कि क्या गिरावट इनके द्वारा सुनियोजित तो नहीं थी. हालांकि, सेबी की रिपोर्ट में गोल्डमैन को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन चर्चा जारी रही कि कुछ भारतीय निवेशकों ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) के माध्यम से पैसा कमाया है.

20 साल बाद यह सवाल फिर से लौट आया है. सवाल का श्रेय कांग्रेस पार्टी को जाता है. कांग्रेस यह मानने को तैयार नहीं है कि अक्षमता के कारण एग्जिट पोल गलत हो गए. उनका कहना है कि बाजार को ऊपर उठाने के लिए चुनावों में धांधली की गई ताकि कुछ लोग अपने शेयर्स भारी मुनाफे पर बेच सकें और आम निवेशक के पास कुछ न हो.

लेकिन कांग्रेस के पास इसके क्या सबूत हैं? पार्टी का कहना है कि एग्जिट पोल से एक दिन पहले FII ने 'रहस्यमय तरीके से' बड़ी संख्या में शेयर खरीदे. वहीं हो सकता है कि कुछ FII को अंदाजा था कि चुनाव क्या कहेंगे, और उसके बाद जब बाजार खुलेंगे तो उन्हें उम्मीद थी कि वे बड़ी कमाई करेंगे.

कांग्रेस के अनुसार, यह 'दुनिया का पहला एग्जिट पोल घोटाला' है, जिसमें आम निवेशकों को लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ.

अगर आंकड़ों की गहराई में जाएंगे तो बहुत अधिक जटिल तस्वीर सामने आएगी.

पहली बात तो ये है कि 31 मई को FII के लिए बाजार में पैसा लगाने के लिए वास्तव में एक ट्रिगर मौजूद था: MSCI इंडेक्स (इंडेक्स जो भारतीय शेयर बाजार में लार्ज और मिड कैप की परफोर्मेंस बताए) में भारत का वजन उस दिन रिबैलेंस हो गया था. कई FII जो उभरते बाजारों में अपने निवेश को जांचने के लिए इस इंडेक्स को ट्रैक करते हैं, उन्होंने भारतीय इक्विटी खरीदी ही होगी. वास्तव में, बाजार पर नजर रखने वालों को उम्मीद थी कि उस दिन 2.5 बिलियन डॉलर का फ्लो होगा, जो लगभग 21,000 करोड़ रुपये है.

ये भी स्पष्ट है कि उसी दिन इंडेक्स फ्यूचर में 31,000 'शॉर्ट' कॉन्ट्रैक्ट खरीदकर FII अपने दांव की हेजिंग कर रहे थे. ऐसे कॉन्ट्रैक्ट तब खरीदे जाते हैं, जब निवेशकों को बाजार में गिरावट की उम्मीद होती है.

दूसरी बात, ट्रेड डेटा से पता चलता है कि एग्जिट पोल के अगले दिन जब बाजार में उछाल आया और नतीजों के दिन जब बाजार गिरा, तो बाजार के किस सेगमेंट ने शेयर खरीदे और किन लोगों ने शेयर बेचे.

31 मई को, FII ने 2,178 करोड़ रुपये के शेयर्स खरीदे. एग्जिट पोल के अगले दिन जब बाजार ऊपर चढ़ा तो उन्होंने 6,847 करोड़ रुपये की खरीदारी की. यानी उन्हें लग रहा था कि बाजार चढ़ेगा ही. लेकिन FII जब बाजार से निकले तो उन्होंने 12,244 करोड़ रुपये के शेयरों को बेचा. लेकिन नतीजों के दिन बाजार गिर गया और FII अपेक्षा अनुसार पैसा नहीं बना पाए, बल्कि उनका भी नुकसान ही हो गया.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये तो हो गई FII यानी विदेशी निवेशकों की बात लेकिन अगर बात 'रिटेल' निवेशकों की करें तो उन्होंने पैसा बनाया है. जब एग्जिट पोल के नतीजे आए, तब भी और चुनावी नतीजों के दिन भी. 3 जून को जब बाजार आसमान छू रहे थे तब रिटेल निवेशकों ने 8,500 करोड़ रुपये की बिकवाली कर पैसा कमाया. अगले दिन जब बाजार क्रैश हुआ तो उन्होंने 21,000 करोड़ रुपये की खरीददारी की. इससे पता चलता है कि रिटेल निवेशकों ने अच्छी चाल चली.

लेकिन 'रिटेल' निवेशक कौन होते हैं? नाम से ही समझ आता है कि जो छोटे निवेशक हैं, वे रिटेल निवेशक होते हैं, जिनके छोटे पोर्टफोलियो होते हैं.

लेकिन एक अनुमान से पता चलता है कि भारत में एक सामान्य डीमैट खाताधारक के पास केवल तीन स्टॉक होते हैं. यह औसत इस तथ्य को छुपाता है कि बाजार के इस 'रिटेल' सेक्टर में मौजूद ज्यादातर इक्विटी हाई नेट-वर्थ इंजिविजुअल जिन्हें HNI कहते हैं, इनके पास हैं यानी अमीर लोग और बड़े कॉरपोरेट्स के के हाथों में हैं

उदाहरण के लिए, इस साल के पहले चार महीनों के लिए NSE के आंकड़ों से पता चलता है कि 1.35 करोड़ निवेशकों में से, जिन्होंने हर महीने सक्रिय रूप से शेयर खरीदे और बेचे, केवल 24,000 या 0.2% ने ही नकदी बाजार में सभी 76% की खरीदारी की. वहीं इक्विटी ऑप्शन बाजार में, जहां ये 50% ट्रेड करते है इसमें से केवल 30,000 निवेशकों ने 94% का ट्रेड किया.

इसलिए, इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि एग्जिट पोल के बाद और मतगणना के दिन शेयरों की अधिकांश रिटेल बिक्री और खरीदारी बहुत कम संख्या में बड़े खिलाड़ियों द्वारा ही की गई थी. जिस दिन बाजार चढ़ता था, उस दिन वे बेचते थे, और जब गिरता था तो वापस खरीद लेते थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
क्या इसका मतलब ये है कि कुछ बड़े निवेशकों ने अपने खुद के एग्जिट पोल करवाए थे, जो आम जनता को दिखाए गए एग्जिट पोल से ज्यादा सटीक थे?

एक अखबार ने खबर दी है कि एक ही मतदान एजेंसियों ने FII सहित शेयर बाजार के दिग्गजों को अलग-अलग नंबर दिए थे और टीवी पर बिल्कुल विपरीत तस्वीर पेश की थी. यह संभव है कि कुछ बड़े निवेशकों ने अपने मन की सुनी और बाजार में विपरीत खेल खेला. तब एग्जिट पोल केवल अयोग्यता का एक बड़ा मामला होगा. हालांकि, सेबी द्वारा उचित जांच के साथ इसे खारिज करने की आवश्यकता है. फिलहाल तो गड़बड़ी का ही पता चलता है.

(लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के वरिष्ठ प्रबंध संपादक थे. वह अब स्वतंत्र यूट्यूब चैनल 'देसी डेमोक्रेसी' चलाते हैं. वह @Aunindyo2023 हैंडल के नाम से ट्वीट करते हैं. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×