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लोकसभा चुनाव में महिला सशक्तिकरण को लेकर बड़े-बड़े वादे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और...

उज्ज्वला योजना हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना- विज्ञापनों में सभी सफल हैं लेकिन जमीन पर तस्वीर अलग है.

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2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) के बीच, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) दोनों की ओर से महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) और "नारी शक्ति" को लेकर कई वादे किए जा रहे हैं. हालांकि, पिछले एक दशक में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार के प्रयासों की जांच करना और यह समझना जरूरी है कि आगे क्या होने वाला है.

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बीजेपी का 2014 वाला वादा...

2014 में, बीजेपी के घोषणापत्र में 'राष्ट्र निर्माता' के रूप में महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया गया था और कहा गया था कि सामाजिक विकास और राष्ट्रीय विकास में महिलाओं (नारी शक्ति) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. महिलाओं के खिलाफ बढ़ी हुई अपराध दर को कम करने, महिला शिक्षा और रोजगार के स्तर को बढ़ाने और संसदीय और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण के लिए एक संवैधानिक संशोधन पेश करके महिला सशक्तिकरण और कल्याण को उच्च प्राथमिकता देने का संकल्प लिया गया था.

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)

महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित महत्वपूर्ण योजनाओं में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) सबसे आगे है. 2016 में लॉन्च हुई इस योजना का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे- बीपीएल परिवारों की महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन देना था. हालांकि, एलपीजी कनेक्शन को लेकर दावे हैं कि 99% लाभार्थियों को कनेक्शन दिए गए लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बताती है.

PMUY लाभार्थियों के बीच एलपीजी की खपत काफी कम है, हालांकि 2020-21 में कोविड-19 के दौरान खपत में बढ़ोतरी हुई थी क्योंकि तब राहत पैकेज दिया गया था जिसमें मुफ्त में रिफिल करने का विकल्प भी था.

वित्त वर्ष 2021-22 के आंकड़ों में PMUY और गैर-PMUY उपभोक्ताओं के बीच सिलेंडर रिफिल में असमानता का पता चलता है. वहीं सिलेंडरों की डिलीवरी निर्धारित है जो 7 दिनों में होनी चाहिए लेकिन 36.62 लाख एलपीजी रिफिल की डिलीवरी में 10 दिनों से अधिक (664 दिनों तक) की देरी देखी गई, जो सिलेंडर पहुंचाने की चुनौतियों को रेखांकित करती है.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना में कुछ गड़बड़ियां देखने को मिली. वित्ती वर्ष 2017-18 में, इसकी ऑडिट रिपोर्ट में पता चला है कि फंड का कम उपयोग किया गया है और मीडिया में विज्ञापन के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया गया है. फील्ड सर्वेक्षण और स्टेकहोल्डर्स के इंटरव्यू ने जमीनी स्तर के कर्मियों के बीच स्पष्टता की कमी को उजागर किया, जिससे प्रभावी संसाधन आवंटन में बाधा पैदा हुई. स्टेकहोल्डर्स की प्रतिक्रिया और ऑडिट निष्कर्षों के जवाब में, 2022 से शुरू होने वाली योजना की रणनीति में महत्वपूर्ण संशोधन पेश किए गए हैं.

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना

ऐसी ही एक अन्य योजना प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना है, जिसे 2017 में मातृत्व लाभ (मेटर्निटी) देने के मकसद से शुरू किया गया था. आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि 2019 तक योजना ने मामूली प्रगति की लेकिन COVID-19 महामारी के दौरान ये प्रगति काफी कम हो गई थी. योजना से लाभान्वित होने वाली महिलाओं की संख्या 2019-20 में 96 लाख से घटकर 2020-21 में 75 लाख हो गई और 2021-22 में और घटकर 61 लाख हो गई, जो दो सालों की अवधि में लगभग 40% की कमी दर्शाती है.

इस लोकसभा चुनाव के संदर्भ में देखें तो पिछले सितंबर में महिला आरक्षण कानून लागू हुआ लेकिन इसके बावजूद, राजनीतिक दल लोकसभा में महिला प्रतिनिधित्व को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने में अभी भी पीछे हैं. बीजेपी ने हर 6 उम्मीदवारों पर केवल एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने हर 7 उम्मीदवारों में से एक महिला को उतारा है. एक तरफ दोनों पार्टियां अपने घोषणापत्रों में महिला सशक्तिकरण पर भारी जोर दे रही हैं लेकिन जब बात प्रतिनिधित्व की आई तो आंकड़े काफी निराशाजनक हैं.
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घोषणा पत्रों में आशावादी योजनाएं

  • बीजेपी के घोषणापत्र में 'सुभद्रा योजना' का जिक्र है, जो पार्टी के सत्ता में आने पर हर महिला को 50,000 रुपये के नकद वाउचर देने की बात करती है.

  • इसके अलावा, यह ग्रामीण महिलाओं के लिए लखपति दीदी स्वयं सहायता समूह पहल का विस्तार करने की बात है.

  • इमरजेंसी जैसी स्थितियों में पुलिस स्टेशनों को मजबूत करने के लिए शक्ति डेस्क बनाने की बात भी कही गई है.

  • इंफ्रास्ट्रक्चर के महत्व को पहचानते हुए, बीजेपी ने वर्कफोर्स (रोजगार) में महिलाओं की अधिक भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए महिला हॉस्टल और क्रेच (बच्चों की देखभाल करने की जगह) विकसित करने का वादा किया है.

  • इसके अलावा, इसका उद्देश्य महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) को आईटी, हेल्थ केयर, शिक्षा, रिटेल और पर्यटन जैसे प्रमुख सेवा क्षेत्रों में स्किल और उपकरण दे कर सशक्त बनाना है, जिससे उनकी आय और इसके बाजार तक पहुंचने में वृद्धि हो सके.

इसके विपरीत, कांग्रेस के घोषणापत्र में 'महालक्ष्मी गारंटी' का जिक्र है, जिसमें सबसे गरीब परिवार में एक महिला को 1 लाख रुपये देने का वादा किया गया है, यह राशि सीधे घर की सबसे बुजुर्ग महिला के बैंक खाते में भेजी जाएगी.

इसके अलावा, कांग्रेस के घोषणापत्र में कई सेक्टर्स में उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने, लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए कानूनों की समीक्षा और संशोधन करने, समान काम के लिए समान वेतन लागू करने, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के वेतन में केंद्र सरकार के योगदान को दोगुना करने का वादा किया गया है. इससे आशा, आंगनवाड़ी, मिड-डे मील रसोइया, आदि में काम कर रही महिलाओं को फायदा होगा).

वैसे तो राजनीतिक घोषणापत्र महिला सशक्तीकरण और प्रगति के वादों से भरे हुए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अक्सर एक अलग तस्वीर पेश करती है. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से लेकर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पहल और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तक, कई योजनाओं के लागू होने के बाद समस्याएं देखी गईं तो कभी अपर्याप्त संसाधन आवंटन जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा है.

ऊंचे वादों और ठोस परिणामों के बीच अंतर को पाटने के लिए अधिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निरंतर प्रयासों की जरूरत है. जैसा कि देश 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच है ऐसे में पिछले दशक के सबक पर ध्यान देने की जरूरत है और सार्थक कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध होना जरूरी है जो पूरे भारत में महिलाओं के जीवन में ठोस सुधार लाएगा.

(दीपांशु मोहन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, डीन, आईडीईएएस, और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (सीएनईएस) के निदेशक हैं. वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर हैं, और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एशियाई और मध्य पूर्वी अध्ययन फैकल्टी के अकादमिक विजिटर हैं. अदिति देसाई सीएनईएस में एक वरिष्ठ अनुसंधान विश्लेषक और इसकी इन्फोस्फीयर टीम की टीम लीड हैं, लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकों की राय है और क्विंट हिंदी इसका न तो समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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