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महाराष्ट्र: महाविकास अघाड़ी के बीच सीट शेयरिंग पर बात तो बनी लेकिन राह आसान नहीं

Maharashtra: सीट-बंटवारे का समझौता महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के भीतर सत्ता की गतिशीलता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है.

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पिछले हफ्ते की शुरुआत में, महीनों की लगातार बातचीत के बाद त्रिकोणिय विपक्षी गठबंधन - महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) ने सीट-बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप दिया. शिवसेना (यूबीटी) 21 सीटों पर जबकि कांग्रेस 17 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) [एनसीपी] 10 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी.

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कागज पर, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के नेतृत्व वाले संगठनों में सीधे बंटवारे के बावजूद, महाराष्ट्र विकास अघाड़ी अब तक का सबसे दुर्जेय गठबंधन यानी कि जिससे जीतना कठिन हो, वैसा गठबंधन नजर आता है, जो इस चुनाव में (भारतीय जनता पार्टी) बीजेपी के खिलाफ एक साथ बना हुआ है.

ये भी सच है कि उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 48 सीटें हैं, इसलिए ये समझौता बहुत महत्वपूर्ण है. यह गैर-बीजेपी विपक्षी ताकतों को अपने मतभेदों को दूर करने और भगवा पार्टी के खिलाफ एकजुट होने के लिए एक नमूना भी प्रदान करता है.

MVA की सीट शेयरिंग से उसकी इंटरनल पावर डायनामिक्स के बारे में क्या पता चलता है?

21-17-10 सीट-बंटवारे का समझौता महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के भीतर सत्ता की गतिशीलता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है. शिवसेना (यूबीटी) 21 सीटें पर अपना उम्मीदवार उतारकर गठबंधन की निर्विवाद नेता के रूप में उभरी है. 2019 में, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में अविभाजित शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन में 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

यह सिर्फ नंबर नहीं हैं जो एमवीए में शिवसेना (यूबीटी) की प्रमुख स्थिति का संकेत देती हैं. शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस से सांगली और मुंबई साउथ सेंट्रल जैसी सीटें छीनने में भी सफल रही है. सीट-बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप देने से पहले ही, शिवसेना (यूबीटी) ने दो सीटों के लिए एकतरफा अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी, जिससे पार्टी और कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया था.

सांगली का मामला तो खास दिलचस्प है. पश्चिमी महाराष्ट्र में स्थित सांगली कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ रहा है - पार्टी ने 2019 तक हर बार सीट जीती थी. लेकिन शिवसेना (यूबीटी), जिसकी सांगली और पश्चिमी महाराष्ट्र में बहुत सीमित उपस्थिति है, ने कांग्रेस के साथ लंबे विवाद के बाद सीट पर कब्जा कर लिया और पहलवान चंद्रहार पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया.

सांगली की तरह कांग्रेस को भिवंडी सीट भी छोड़नी पड़ी, जहां सीट-बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप देने से पहले ही एनसीपी (एसपी) ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था. इन सीटों पर स्थानीय कैडर और महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के नेता, जो दो सीटों पर अपने सहयोगियों के कामों से नाराज थे, इन सीटों पर फ्रेंडली फाइट के इच्छुक थे. लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद फ्रेंडली फाइट की संभावना से इनकार कर दिया गया है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष को शांत करना एक बड़ी चुनौती होगी. सिर्फ सांगली या भिवंडी में ही नहीं, पार्टी को सीट-बंटवारे के समझौते में अपने साथ वालों की तुलना में बहुत कुछ छोड़ना पड़ा है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महाराष्ट्र में 17 सीटों पर अपने अब तक के सबसे कम उम्मीदवार उतारेगी. यहां तक ​​कि मुंबई में भी सबसे पुरानी पार्टी केवल दो सीटों - मुंबई उत्तर और मुंबई उत्तर मध्य - तक ही लड़ने तक सीमित है.
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दूसरे राज्यों के उलट जहां पिछले दशक में कांग्रेस के वोट शेयर में लगातार गिरावट देखी गई है, महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ने अपना वोट शेयर बरकरार रखा है. शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) के उलट, जिनकी महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में सीमित उपस्थिति है, कांग्रेस एक अखिल महाराष्ट्र पार्टी है जिसकी राज्य के लगभग सभी हिस्सों में मौजूदगी है. इस तरह पार्टी ने गठबंधन के लिए अधिक समझौते किए हैं और व्यक्तिगत रूप से भारी नुकसान उठाया है.

कागज पर ऐसा लग सकता है कि एनसीपी (एसपी) को समझौते का मामूली फायदा मिला है क्योंकि वह सिर्फ दस सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो कि पिछले लोकसभा चुनावों में शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी द्वारा लड़ी गई सीटों की लगभग आधी संख्या है. लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति से परिचित किसी भी व्यक्ति के लिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि एनसीपी (एसपी) जितनी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वह इस बात का संकेतक नहीं है कि पार्टी और उसके सुप्रीमो के पास एमवीए पर कितनी शक्ति है.

83 साल की उम्र में पुराने योद्धा शरद पवार अभी भी मजबूत हैं और 2019 में महाराष्ट्र में गठबंधन की स्थापना के बाद से सबसे प्रभावशाली व्यक्ति रहे हैं. सीट-बंटवारे के समझौते पर शरद पवार की छाप है. इसलिए सीट-बंटवारे की संख्या को देखते हुए एमवीए के भीतर शरद पवार और उनकी पार्टी की स्थिति को कम आंकना मूर्खता होगी.
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एनसीपी (एसपी) भले ही केवल 10 सीटों पर मैदान में है, लेकिन जिन सीटों को वह सुरक्षित करने में कामयाब रही है वे विपक्षी गठबंधन के लिए अपेक्षाकृत बेहतर संभावनाओं वाली सीटें हैं. केवल 10 सीटों पर चुनाव लड़ने का एनसीपी (एसपी) का तर्क समझ में आता है. ग्रामीण इलाकों में पार्टी कैडर के साथ मजबूत संबंध रखने वाले अजीत पवार द्वारा किए गए विभाजन के बाद पार्टी को पुनर्निर्माण करने और बेहतर संभावनाओं वाली कम सीटों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है और अपने संसाधनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना उस दिशा में एक कदम है.

कांग्रेस: ​​एमवीए में तीसरा पहिया

जबकि उद्धव ठाकरे एमवीए का सबसे लोकप्रिय चेहरा रहे हैं, शरद पवार गठबंधन के पीछे के दिमाग, योजना और एमवीए की चाल बताने वाले है. ठाकरे की लोकप्रियता, पवार की निपुणता और उनकी वरिष्ठता ने मिलकर पिछले दो वर्षों में बड़े झटके के बावजूद महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन को बचाए रखा है.

बातचीत की मेज पर, ठाकरे और पवार की मौजूदगी ने उनकी पार्टियों को बेहतर डील हासिल करने में मदद की, जबकि समान कद के नेता की गैरमौजूदगी का कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा.

जिस तरह से सीट-बंटवारे की बातचीत हुई, उससे एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला कि एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) एक-दूसरे के बहुत करीब हैं, जबकि कांग्रेस इनमें से किसी भी दल के उतना करीब नहीं है.

लंबे समय तक, कांग्रेस और एनसीपी (अपने अविभाजित अवतार में) को स्वाभाविक सहयोगी माना जाता था लेकिन अब खेल के नियम स्पष्ट रूप से बदल गए हैं. एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) अब स्वाभाविक सहयोगी हैं और वे कभी-कभी कांग्रेस को तीसरे पहिये की तरह महसूस करा सकते हैं.

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कांग्रेस को नुकसान, महाराष्ट्र विकास अघाड़ी को फायदा?

सीट बंटवारे को लेकर पिछले कुछ महीनों में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के नेताओं द्वारा की गई जुबानी जंग के बावजूद, विपक्षी गठबंधन सत्तारूढ़ एनडीए (महायुति) पर शुरुआती बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा है. भले ही महाराष्ट्र विकास अघाड़ी ने अपनी सीट-बंटवारे की व्यवस्था को अंतिम रूप दे दिया है, लेकिन सत्तारूढ़ एनडीए के घटक अभी भी सीट-बंटवारे पर आम सहमति पर नहीं पहुंच पाए हैं.

जब जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने विद्रोह किया तो शिंदे और उनके खेमे ने एनसीपी विधायकों को संसाधन और धन आवंटित करने में तत्कालीन वित्त मंत्री अजीत पवार के पूर्वाग्रह का हवाला दिया. आरोप लगाया गया कि अजित पवार ने शिवसेना विधायकों को फंड से वंचित रखा. इसके अलावा, शिंदे ने उन सीटों पर एनसीपी द्वारा शिवसेना को होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए अलग होने के अपने कदम का बचाव किया था, जहां 2019 में एमवीए के गठन से पहले दोनों पार्टियां सीधे प्रतिस्पर्धा में थीं.

एक साल बाद, न केवल शिंदे की सेना ने अजित पवार के गुट एनसीपी के साथ एक और गठबंधन किया बल्कि पवार को वित्त विभाग भी वापस मिल गया.

महायुति में बीजेपी निर्विवाद रूप से बड़ा भाई है और अब यह लगभग तय है कि अजित पवार की एनसीपी और शिंदे की सेना को बहुत कम सीटों पर संतोष करना पड़ेगा. सीट बंटवारे को लेकर महायुति गतिरोध और अजित पवार और एकनाथ शिंदे के अपनी पार्टियों के लिए अच्छी संख्या में सीटें पाने के संघर्ष ने एमवीए के घटकों, विशेष रूप से शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) को धारणा की लड़ाई जीतने में मदद की है. इस तरह कांग्रेस पार्टी का नुकसान एमवीए का लाभ हो सकता है. कांग्रेस को कम सीटों पर समझौता करने के बावजूद, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) को बेहतर डील मिलने से उन्हें "नकली" होने के बजाय "असली" पार्टी होने का दावा करने में मदद कर सकती है.
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जबकि कांग्रेस की मुंबई इकाई शहर की केवल दो सीटें दिए जाने से नाराज है, यह एक ऐसा कदम है जो संभावित रूप से गठबंधन के पक्ष में काम कर सकता है. मुंबई कांग्रेस से हाल ही में हाई-प्रोफाइल नेताओं के छोड़ने की घटना को अलग रखते हुए, शिवसेना (यूबीटी) तटीय शहर में महायुति गठबंधन को चुनौती देने के लिए बेहतर स्थिति में दिख रही है. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले संगठन के लिए सहानुभूति लहर राज्य के शहरी इलाकों में सबसे मजबूत लगती है, मुंबई में तो और भी ज्यादा. इसे जोड़ने के लिए, उद्धव और आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना को जो उदार बदलाव मिला है, उससे उसे शहर में अपना वोटर बेस बढ़ाने में मदद मिलने की संभावना है.

देश के कुछ और हिस्सों के उलट, जहां मोदी लहर अभी भी कई चीजों की दिशा तय कर सकती है, महाराष्ट्र में 2014 या 2019 जैसा मोदी लहर वाला चुनाव देखने की ज्यादा संभावना नहीं है. इस लहर रहित चुनाव में जहां राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में अभूतपूर्व बदलाव आया है, पिछले चुनाव में गठबंधन और पार्टियां पहले की तरह बन और टूट रही थीं, ऐसे में निर्वाचन-क्षेत्र के लोकल फैक्टर ज्यादा महत्व रख सकते हैं.

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हालांकि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी ने सीट-बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप दे दिया है, लेकिन इसकी असली चुनौती यह सुनिश्चित करने की होगी कि असंतुष्ट स्थानीय नेताओं और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को शांत किया जाए और उन सीटों पर भी गठबंधन के लिए काम किया जाए जो गठबंधन सहयोगी के हिस्से में गई है.

एमवीए के राज्य-स्तरीय नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सीट-बंटवारे के सभी मुद्दे अब हल हो गए हैं लेकिन इसके बावजूद ग्राउंड से पहले ही चिंताजनक संकेत मिल रहे हैं, यहां तक ​​कि सांगली सीट कांग्रेस द्वारा शिवसेना (यूबीटी) को दिए जाने के बाद, पूर्व सीएम वसंतदादा पाटिल के पोते विशाल पाटिल, जिन्हें इस सीट से कांग्रेस का टिकट मिलने की उम्मीद थी, ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का संकेत दिया है.

मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ ने भी समान और बेहतर सीट-बंटवारे समझौते को आगे बढ़ाने में असमर्थता पर पार्टी के राज्य नेतृत्व पर सवाल उठाया. स्थानीय कैडरों के बीच इस तरह के असंतोष को शांत करना, बागी उम्मीदवारों को आगे बढ़ने से रोकना और जमीन पर वोट ट्रांस्फर सुनिश्चित करना महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के घटक दलों के लिए असल चुनौती होगी.

बागी उम्मीदवार, वीबीए और छोटे दल एमवीए की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं

2009 के बाद से महाराष्ट्र में पिछले तीन लोकसभा चुनावों में, दो मुख्य गठबंधनों के अलावा निर्दलीय और छोटे, गैर-गठबंधन दलों ने 15 प्रतिशत से लेकर 25 प्रतिशत तक वोट शेयर हासिल किए हैं.

इस प्रकार, छोटे दल और निर्दलीय - अक्सर बागी उम्मीदवार यानी प्रमुख दलों द्वारा टिकट से इनकार किए जाने के बाद निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार - महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में एक महत्वपूर्ण फैक्टर रहे हैं.

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अक्सर इन कथित छोटे खिलाड़ियों द्वारा किसी विशेष पार्टी या उम्मीदवार के वोट काटकर सीटें जीती या हारी गई हैं. उदाहरण के लिए, 2019 के चुनावों में, वंचित बहुजन अघाड़ी, जो कांग्रेस-एनसीपी के साथ समझौते पर पहुंचने में विफल रही, को लगभग 8 प्रतिशत वोट मिले और कम से कम 5 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी उम्मीदवारों की जीत की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा.

इस बार भी, एमवीए के साथ सीट-बंटवारे का समझौता करने में विफल रहने के बाद वीबीए ने अब तक 36 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे हैं. वीबीए को बोर्ड पर लाने में विफलता महाराष्ट्र विकास अघाड़ी को नुकसान पहुंचा सकती है. महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के लिए यह सुनिश्चित करना और भी आवश्यक है कि बागी उम्मीदवार, असंतुष्ट जमीनी स्तर के कार्यकर्ता या स्थानीय नेता वोटों का विभाजन करके इसकी संभावनाओं को और नुकसान न पहुंचाएं.

2019 के बाद से बीजेपी ने विभिन्न माध्यमों और तरीकों - दलबदल, पार्टियों को तोड़ना, केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल के जरिए से महाराष्ट्र को मोदी-शाह युग में अपनी राजनीति का एक पाठ्यपुस्तक मामला बना दिया है. लेकिन अगर महाराष्ट्र विकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव और फिर अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी पकड़ बनाने में सक्षम है तो महाराष्ट्र विपक्षी दलों के लिए सभी बाधाओं के बावजूद अस्तित्व और सफलता हासिल करने का एक पाठ्यपुस्तक मामला बन सकता है.

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(मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के पूर्व छात्र, ओंकार वर्तमान में साइंसेज पीओ, पेरिस में राजनीति में रिसर्च मास्टर की डिग्री हासिल कर रहे हैं. उनका रिसर्च एरिया और प्रकाशन भारत में पार्टियों की राजनीति और चुनावी प्रतिस्पर्धा, लोकलुभावनवाद, द्रविड़ राजनीति, मतदान व्यवहार, और भारत के कानून बनाने वाले निकायों में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व जैसे मुद्दों और विषयों पर केंद्रित है. वर्तमान में, वह बाल ठाकरे के बाद के युग में शिव सेना के वैचारिक परिवर्तन पर काम कर रहे हैं. यह आर्टिकल एक ओपीनियन है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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