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CAA पर बहस से पहले आप महात्मा गांधी के इस भाषण को जरूर पढ़ें

भारतवासियों को महात्मा गांधी के उस भाषण को पढ़ना चाहिए

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नागरिकता कानून को लेकर उत्तर-पूर्वी राज्य उबल रहे हैं. सरकार को शांति और ‘ऑर्डर’ कायम रखने के लिए सेना को बुलाने का आखिर तरीका अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. हालांकि, यही वो सबसे मुफीद वक्त है, जब भारतवासियों को महात्मा गांधी के उस भाषण को पढ़ना चाहिए जो उन्होंने 15 नवंबर 1947 को दिल्ली में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में बोला था. यहां पेश है उसी भाषण के अंश, जिसे ‘सम्पूर्ण गांधी वांगमय के 10वें खंड के पृष्ठ 35-38’ से लिया गया है.

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महात्मा गांधी का भाषण-

...मैंने करने या मरने की प्रतिज्ञा की थी. अवसर आने पर सचमुच मैं करूंगा या मर जाऊंगा. मैंने जो कुछ देखा है उससे इतना समझ गया हूं कि हम सब तो पागल नहीं हुए हैं लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी है जिनका दिमाग फिर गया है. पागलपन की इस लहर के लिए क्या चीज जिम्मेदार है? कारण कुछ भी हो लेकिन यह बात स्पष्ट है कि अगर हमने इस पागलपन से छुटकारा नहीं पाया तो जो आजादी हमें मिली है, उससे हम हाथ धो बैठेंगे. आज हम जिस संकट की स्थिति में है उसकी गंभीरता आपको समझनी और स्वीकार करनी चाहिए. आपको अत्यंत गंभीर समस्याओं का सामना करना है और उसका समाधान ढूंढने का प्रयत्न करना है.

...मैं चाहता हूं कि आप कांग्रेस के बुनियादी सिद्धान्तों के प्रति सच्चे रहें और हिन्दुओं-मुसलमानों में एकता स्थापित करें. यह एकता वह आदर्श है जिसकी प्राप्ति के लिए कांग्रेस 60 सालों से भी ज्यादा समय से काम करती रही है. यह आदर्श अभी भी कायम है. कांग्रेस ने कभी ऐसा नहीं कहा है कि वह केवल हिन्दुओं के हितों के लिए ही कार्य करती है. जब से कांग्रेस का जन्म हुआ है तब से ही वह जिस चीज का दावा करती रही है, क्या उसे छोड़ दें और नया सुर अलापने लगे?

कांग्रेस भारतवासियों का संगठन है, उन सबका अपना संगठन है जो इस देश में निवास करते हैं, चाहे वे हिन्दू हों, या मुसलमान, ईसाई, सिख या पारसी. मुसलमान, ईसाई और पारसी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं. लेकिन आज हम एक दूसरा ही नारा सुनते हैं. मैं आपको बता दूं कि आज हम जो सुनते हैं वह कांग्रेस की आवाज नहीं है.

...आज जो कुछ हो रहा है उससे मैं लज्जित हूं. भारत में ऐसी चीजें कभी नहीं होनी चाहिए. हमें यह बात समझानी होगी कि भारत केवल हिन्दुओं का नहीं है और न पाकिस्तान केवल मुसलमानों का. मैंने हमेशा माना है कि यदि पाकिस्तान केवल मुसलमानों का ही देश बन गया तो यह ऐसा पाप होगा जो इस्लाम को ही नष्ट कर देगा. इस्लाम ने ऐसी शिक्षा कभी नहीं दी है. अगर हिन्दू, हिन्दुओं की हैसियत से भारत के एक पृथक राष्ट्र होने का दावा करें और मुसलमान पाकिस्तान में ऐसा दावा करें तो यह कभी चल नहीं सकता. सिखों ने भी कभी-कभी सिक्खिस्तान की बात की है. यदि हम ऐसे दावे करेंगे तो भारत और पाकिस्तान दोनों नष्ट हो जाएंगे, कांग्रेस नष्ट हो जाएगी और हम सब नष्ट हो जाएंगे.

मैं मानता हूं कि भारत हिन्दू और मुसलमान, दोनों का है. जो कुछ हुआ उसके लिए आप मुस्लिम लीग को दोषी ठहरा सकते हैं और कह सकते हैं कि दो-राष्ट्र का सिद्धान्त इस बुराई की जड़ है, और मुस्लिम लीग ने ही यह विष-बीज बोया था. फिर भी मेरा कहना है कि दूसरों ने बुराई की, केवल इसी कारण हम भी बुराई करें तो हम हिन्दू धर्म के साथ घात करते हैं.

अपने बचपन से ही यह मैं जानता हूं कि हिन्दू धर्म हमें बुराई के बदले भलाई करने की शिक्षा देता है. पापी को उसका पाप ही ले डूबता है. क्या उनके साथ हम भी डूब मरें? हिन्दू धर्म ने मुझे जो सिखाया है, 60 सालों के मेरे अनुभव से उसकी पुष्टि हुई है. इस्लाम भी यही बात कहता है. कांग्रेस का यह बुनियादी सिद्धांत है कि भारत जितना हिन्दुओं का है, उतना ही मुसलमानों का भी है. मैं यह भी जानता हूं कि जो कुछ भी हुआ है उसमें कांग्रेस का कोई हाथ नहीं था....

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कुछ लोगों का कहना है कि पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों पर जो अत्याचार किए गए हैं, उनसे ज्यादा नृशंस अत्याचार हम यहां मुसलमानों पर करें तो इससे पाकिस्तान के मुसलमानों को एक अच्छा सबक मिलेगा. बेशक उन्हें सबक तो मिल जाएगा, लेकिन इस बीच आपका क्या होगा?

आप कहते हैं कि आप भारत में मुसलमानों को नहीं रहने देंगे, लेकिन मेरी मानना है कि साढ़े तीन करोड़ मुसलमानों को यहां से भगाकर पाकिस्तान पहुंचा देना असंभव है. उन्होंने क्या अपराध किया है? बेशक मुसलिम लीग अपराधी है, लेकिन हर मुसलमान तो दोषी नहीं है. अगर आप समझते हैं कि वे सभी देशद्रोही हैं और पाकिस्तान के पांचवें दस्ते का कार्य करते हैं, तो बेशक उन्हें गोली मार दीजिए, लेकिन यह सोचना कि वे मुसलमान हैं, इसलिए अपराधी हैं, गलत है.

यदि आप उन्हें मारते पीटते हैं, धमकाते हैं, तो वे पाकिस्तान भाग जाने के अलावा क्या कर सकते हैं? आखिरकार जीवन तो उन्हें प्यारा है ही. लेकिन आपके लिए ऐसा करना उचित नहीं है. इस तरह आप कांग्रेस को बदनाम करेंगे, अपने धर्म को बदनाम करेंगे और राष्ट्र को बदनाम करेंगे.
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यदि आप इस बात को समझते हैं कि जिन मुसलमानों को मजबूरन पाकिस्तान जाना पड़ा है, उन्हें वापस बुलाना आपका कर्तव्य है. हां, जो मुसलमान पाकिस्तान में विश्वास रखते हैं, और वहीं अपनी खुशी हासिल करना चाहते हैं, वे शौक से जाएं. उनके लिए कोई रोक टोक नहीं है. उन्हें वहां जाने के लिए सैनिक बलों की सुरक्षा की जरूरत नहीं होगी. वे अपनी खुशी से और अपने खर्च से वहां जाएंगे. लेकिन जो लोग आज वहां जा रहे हैं, उनके लिए विशेष परिवहन व्यवस्था और विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है.

इस प्रकार का अस्वाभाविक देशत्याग, और वह भी कृत्रिम परिस्थितियों में, हमारे लिए शर्म की चीज है. आपको घोषणा कर देना चाहिए कि जिन मुसलमानों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़े हैं, और जो लौटना चाहते हैं, उनका आपके बीच स्वागत है. आप उन्हें आश्वासन दें कि भारत में वे और उनका धर्म सुरक्षित रहेंगे. ये आपका कर्तव्य है, आपका धर्म है. पाकिस्तान कुछ भी करे. आपको मानवीयता और सभ्यता कायम रखनी है. यदि आप वही काम करेंगे जो उचित है , तो देर-सबेर पाकिस्तान को भी आपका अनुसरण करना पड़ेगा.

आज जो स्थिति है, उसमें हम दुनिया के सामने अपना मस्तक ऊंचा नहीं रख सकते और हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि हम पाकिस्तान के कुकर्मों की नकल करने पर मजबूर हुए हैं. और ऐसा करके हमने उसके तौर-तरीकों को उचित ठहराया है. हम इस तरह कैसे चलते रह सकते हैं? जो कुछ हो रहा है, वह युद्ध के लिए दोनों को भड़काने वाली बात है, और इसका निश्चित परिणाम युद्ध ही होगा. और आपको जवाहरलाल का साथ छोड़ना होगा. यह उन्हीं के कारण है कि आज संसार में हमारी इतनी इज्जत है.

भारत से बाहर उनका सम्मान विश्व के एक अत्यंत महान राजनेता के रूप में किया जाता है. अनेक यूरोपीय लोगों ने मुझे बताया है कि संसार ने उन जैसे ऊंचे दिमाग का राजनेता नहीं देखा है. मैं ऐसे अमेरिकियों को जानता हूं जो जवाहरलाल की इज्जत राष्ट्रपति ट्रूमैन से ज्यादा करते हैं. वे लोग भी जवाहरलाल के नेतृत्व के नैतिक मूल्यों की इज्जत करते हैं. जिनके पास अथाह धन है, बड़ी-बड़ी फौजें हैं और अणु बम है. हम हिन्दुस्तानियों को इस बात की सही कद्र करनी चाहिए.

[सम्पूर्ण गांधी वांगमय के 10वें खंड के पृष्ठ 35-38 से साभार]

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