दो समुदाय एक साथ त्योहार क्यों नहीं मना सकते?
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार से ये सवाल पूछा है कलकत्ता हाई कोर्ट ने. मामला है मुहर्रम और दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के दिन में टकराव का. दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन दशहरे के अगले दिन यानी 1 अक्तूबर को किया जाना है. मुहर्रम भी 1 अक्तूबर को है. ममता सरकार ने फैसला किया था कि प्रतिमा का विसर्जन मुहर्रम के अगले दिन यानी 2 अक्तूबर को किया जाए लेकिन कोर्ट ने ममता को फटकार लगाते हुए इसे पलट दिया.
अगर भारत उत्सवों की धरती है तो पश्चिम बंगाल, इस देश के सबसे रंग भरे उत्सवों की झांकी बिखेरता है. लेकिन, बीते कुछ सालों में बंगाल की फिजा में उत्सवों के रंग पर मजहब के रंग चढ़ाने की तमाम सियासी कोशिशों ने सिर उठाया है.
बंगाल अगर बार-बार मजहब के नाम पर खिंचती नई लकीरों को लेकर सुर्खियों में जगह बना रहा है तो सूबे की ममता बनर्जी सरकार को चेतना होगा. या कहीं ऐसा तो नहीं कि ये सब ममता सरकार की सरपरस्ती में ही हो रहा है?
ममता सरकार पर उंगली इसलिए उठती है क्योंकि ये मामला सिर्फ मुहर्रम बनाम दुर्गा पूजा तक सीमित नहीं है. ज्यादा वक्त नहीं बीता जब नॉर्थ 24 परगना का बसिरहाट जल रहा था और ममता सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. तृणमूल कांग्रेस के कुछ छुटभैये नेता आए दिन सूबे में सरकार होने का नाजायज फायदा उठाते नजर आते हैं और ममता चुप रहती हैं. जब-जब उन्हें मुख्यमंत्री होना था, वो एक पार्टी की नेता बनकर पेश आती रहीं.
आखिर, विरोधियों को ललकारने वाली सख्त लहजे वाली ममता खास मौकों पर इतनी 'ममतामयी' क्यों हो जाती हैं? इसकी वजह तलाशने के लिए राजनीतिशास्त्र के मोटे पोथे नहीं पलटने. सिर्फ सामान्य ज्ञान से काम चल जाता है. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या करीब 27% है. ये मान कर चला जाता है कि 'लाल' किले को ढहाने में अगर ममता कामयाब हुई हैं तो पीछे खड़े हुए मुस्लिम वोट की बदौलत.
यूं ही नहीं कलकत्ता हाई कोर्ट को कहना पड़ता है-
सरकार के पास अधिकार हैं, लेकिन असीमित नहीं हैं. बिना किसी आधार के ताकत का इस्तेमाल गलत है.
इससे पहले भी, दुर्गा पूजा और मुहर्रम आस-पास पड़े हैं लेकिन ऐसी लकीरें खींचने की कोशिश नहीं हुई. क्या खुद को मुस्लिम आबादी के हक की आवाज बुलंद करने वाली मुख्यमंत्री बताकर वो राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर अपनी बड़ी जगह कायम करना चाहती हैं. अब तक उन्होंने जो फैसले किए हैं, उन्हें देखकर इन सवालों का जवाब हां में लगता है.
कुछ समय पहले ममता सरकार ने कहा था कि राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव है. बेंच टिप्पणी करती है- “जब आप इस बात का दावा कर रही हैं कि राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव है तो फिर आप खुद दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक बंटवारा पैदा करने की कोशिश क्यों कर रही हैं? दुर्गा पूजा और मुहर्रम को लेकर पहले कभी ऐसे हालात नहीं बने. उन्हें सद्भाव के साथ रहने दें. उनके बीच कोई लकीर न खींचें. उन्हें साथ-साथ रहने दें.”
ममता बनर्जी शायद नहीं समझ पा रहीं कि वो एक सरकार चला रही हैं, एक सूबे के करीब 10 करोड़ जनता के भले के लिए वो जिम्मेदार हैं. वो जनता की चुनी हुई सरकार है. जब हाईकोर्ट ये कहता है कि सिर्फ सरकार होने का मतलब ये नहीं कि आप कोई भी ऑर्डर पास कर दें...तो वक्त चेतने का है.
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