भारत में बलात्कार की घटनाएं खूब होती हैं. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में पिछले 3 सालों में 35,000 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ही एक रिपोर्ट कहती है कि 2014 में प्रतिदिन औसतन 93 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं घटीं.
ये वे आंकड़े हैं, जो पुलिस ने रिकॉर्ड की, लेकिन पूरे देश में इससे कहीं ज्यादा बलात्कार की घटनाएं होती हैं. भारतीय समाज की मानसिकता ऐसी बन गयी है, जिसमें बलात्कार पीड़िता को ही दोषी माना जाता है, जिसके कारण बलात्कार के हजारों मामले पुलिस थानों तक नहीं पहुंच पाते.
पिछले पांच सालों में बलात्कार की तीन ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने पूरे देश की संवेदना को झकझोर डाला और जो पूरे देश में इस तरह से चर्चित हुईं कि इनके बारे में आम जनता ने भी अपनी प्रतिक्रिया जताई.
डेरा प्रमुख पर 15 साल पहले लगा था आरोप
ताजा मामला डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से जुड़ा है. करीब 15 साल पहले उनके ही आश्रम के दो साध्वियों ने उन पर बलात्कार के आरोप लगाए थे. उन दो गुमनाम साध्वियों ने साल 2002 में हरियाणा की जनता के साथ-साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी थी. इसमें बताया गया था कि आश्रम में उनके साथ रोज बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं.
10 नवम्बर 2003 को हाई कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए और 25 अगस्त 2017 को जब पंचकूला न्यायालय ने राम रहीम को दोषी करार दिया तो पूरे हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के कुछ हिस्सों में उनके समर्थकों ने कोहराम मचा दिया था. जिसमें लगभग 30 लोग मारे गए और अरबों की संपत्ति नष्ट कर दी गयी.
आसाराम और उसके बेटे पर भी लगा आरोप
दूसरी घटना का संबंध स्वयंभू संत आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं से है. 20 अगस्त 2013 को 16 साल की एक बालिका ने आरोप लगाया कि जोधपुर आश्रम में आसाराम ने उसके साथ बलात्कार किया. उसके बाद सूरत की रहने वाली एक महिला ने भी कहा कि 1997 से 2006 के बीच आसाराम ने उसके साथ कई बार बलात्कार किये. इसी तरह के कई आरोप नारायण साईं पर लगे.
निर्भया केस
तीसरी घटना 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में घटी जिसके कारण पूरी दुनिया के सामने देश का सिर शर्म से झुक गया. चलती बस में 'निर्भया' के साथ बलात्कार की यह घटना इतनी वीभत्स थी कि पूरा देश बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग को लेकर सड़कों पर आ गया.
ये तीन घटनाएं पूरे देश में घटने वाली घटनाओं से अलग इसलिए हैं कि इनमें अपराधी सलाखों के पीछे हैं. हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि बलात्कार की घटनाओं में से अधिकांश पुलिस थानों तक नहीं पहुंच पातीं. उनमें से अधिकांश न्याय की आस में न्यायालयों की दीवारों से सिर टकराकर दम तोड़ देती हैं और उनमें से अधिकांश मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पातीं.
तीन घटनाओं में एक ही समानता
इन तीन मामलों में एक सामान्य बात यह है कि इन्हें मीडिया में पर्याप्त जगह मिली. भारतीय मीडिया संस्थान आरोपियों को सजा दिलाने के लिए एक तरह से आन्दोलन करते हुए दिखाई दिए. इधर के कुछ सालों में यह देखा गया कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की जिन घटनाओं को मीडिया में पर्याप्त जगह मिली उनमें पीड़ित महिला को न्याय भी मिली. न्यायालयों में उन्हीं घटनाओं को प्राथमिकता मिली जिन्हें मीडिया में जगह मिली.
जेसिका लाल, प्रियदर्शिनी मट्टू, रुचिका गिरहोत्रा को न्याय मीडिया के कारण ही मिली. जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को जिला अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया था.
मीडिया के अभियान के कारण हाई कोर्ट ने मनु शर्मा को सजा दी. प्रियदर्शिनी मट्टू केस में आरोपी संतोष सिंह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का बेटा था जिसके विरुद्ध पुलिस को जांच में कुछ नहीं मिला और सबूतों के अभाव में जिला अदालत ने उसे भी बरी कर दिया. इस घटना को मीडिया ने मुद्दा बनाया और आरोपी को हाई कोर्ट में सजा मिली.
गुरमीत सिंह राम रहीम और आसाराम को भी सजा दिलाने में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है. राम रहीम को सजा दिलाने की मुहिम सबसे पहले 'पूरा सच' नामक अखबार ने शुरू की. हरियाणा के इस सांध्य दैनिक ने उस चिट्ठी को सबसे पहले 30 मई 2002 को छापा जिसे बलात्कार पीड़िता साध्वियों ने जारी किया था. उसके बाद ही यह मामला चर्चित हुआ और प्रशासन पर दबाव बढ़ा.
हालांकि इसकी कीमत ‘पूरा सच’ अखबार के पत्रकार रामचंदेर छत्रपति को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी जिन्हें 24 अक्टूबर 2002 को उनके घर के बाहर पांच गोली मारकर हत्या कर दी गयी. छत्रपति की हत्या का मुकदमा भी राम रहीम पर चल रहा है.
इसीलिए जब अदालत ने राम रहीम को दोषी करार दिया तो उनके समर्थकों ने मीडिया पर हमले किये जिसमें कई पत्रकारों को चोटें आयीं तो कई ओबी वैन को आग के हवाले कर दिया गया.
11 दिनों बाद हुई थी आसाराम की गिरफ्तारी
आसाराम पर 20 अगस्त 2013 को मुकदमा दर्ज किया गया था लेकिन उनकी गिरफ्तारी 11 दिनों के बाद 31 अगस्त 2013 को हुई. इन 11 दिनों में आसाराम राजस्थान, गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश तक बिना किसी रोक-टोक घूमते रहे, पुलिस-प्रशासन को चुनौती देते रहे. मामले को जब मीडिया का साथ मिला तब जाकर आसाराम गिरफ्तार हुए. उसके बादआसाराम के समर्थकों ने मीडिया पर खूब हमले किये.
आज भी उनके समर्थकों द्वारा मीडिया का पुतला दहन करने की खबरें आती रहती हैं. उन्हें लगता है कि उनके ‘बापू’ को मीडिया ने ही जेल भेजवाया है.
हरियाणा के एक अन्य स्वयंभू संत रामपाल की गिरफ्तारी के मामले में भी मीडिया ने प्रशासन पर दबाव बनाया जिनके आश्रम में चार महिलाओं की लाश मिली थी. निर्भया केस में भी आरोपियों के जल्दी गिरफ्तार होने के पीछे मीडिया की बड़ी भूमिका थी वरना बलात्कार के मामलों की प्राथमिकी दर्ज करने में ही पुलिस महीनों का समय लगा देती है.
मीडिया ने पूरे मामले के साथ-साथ उसके खिलाफ चल रहे आंदोलनों की भी पल-पल की रिपोर्टिंग की जिसके कारण संसद तक में बहसें हुईं और तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार सिंदे तक को बयान देना पड़ा.
मीडिया पर भी लगे कई आरोप
मीडिया पर स्त्री विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं. मीडिया पर यह भी आरोप लगते हैं कि बलात्कार के जिन मामलों में दलित, गरीब और ग्रामीण महिलाएं शिकार होती हैं उनपर वह खतरनाक ढंग की चुप्पी ओढ़ लेती है.
यह भी आरोप लगाया जाता है कि मीडिया बलात्कार से सम्बंधित घटनाओं को मसाला लगाकर एक पोर्न फिल्म की तरह प्रस्तुत करती है. कभी-कभी तो बलात्कार की किसी घटना का नाट्य- रूपांतरण कर मनोरंजक कार्यक्रम के रुप में प्रस्तुत करती है लेकिन इस मामले में उक्त तीनों घटनाएं भाग्यशाली रहीं हैं कि उन्हें मीडिया ने पर्याप्त नियम और संयम के साथ प्रस्तुत किया जिससे अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिली.
(डॉ. अरुण कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेन्ट प्रोफेसर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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