बड़बोली बातें और राजनीति हमेशा साथ-साथ चलती हैं.
दूसरी तरफ हर बार चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद विश्लेषकों की नतीजों को बढ़ा-चढ़ाकर व्याख्या करने और भविष्य का आकलन करने की एक अजीब आदत होती है.
लेखक 1977 में स्कूल में था, लेकिन इसे अच्छी तरह याद है कि इमरजेंसी विरोधी लहर के दौरान इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी दोनों अपनी लोकसभा सीटें हार गए थे. विश्लेषकों ने कांग्रेस पार्टी के लिए श्रद्धांजलि लिखना शुरू कर दिया था.
साल 1984 में लेखक अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था जब BJP (भारतीय जनता पार्टी) ने आम चुनाव में सिर्फ दो सीटें जीतीं और अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर में माधव राव सिंधिया के हाथों अपमानजनक चुनावी हार मिली. कई ज्ञानियों ने BJP के लिए मर्सिया लिख दिया.
जब वाजपेयी के नेतृत्व वाले NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस) ने 1999 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की और कांग्रेस 114 सीटों के रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर सिमट गई, तो कहा गया कि नेहरू-गांधी खानदान के दिन लद गए.
कोई भी दो चुनाव कभी एक जैसे नहीं होते
यह गौरवशाली परंपरा मौजूदा भारत में भी जारी है.
कुछ महीने पहले जब कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में शानदार बहुमत हासिल किया, तो जननेता राहुल गांधी की “वापसी” की जोरदार चर्चा शुरू हो गई, साथ ही यह भी कहा जाने लगा कि जब विधानसभा चुनाव की बात आती है तो नरेंद्र मोदी फैक्टर नाकाम है.
इस नवंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले, जब BJP ने कोई मुख्यमंत्री पद का चेहरा पेश नहीं किया, तो BJP की तरफ से की गई गलती के इर्द-गिर्द बातें चलती रहीं.
कई जनमत सर्वे में कांग्रेस की 4-1 से जीत का इशारा दिया गया तो यह रोजमर्रा की चर्चा बन गई. ग्रैंड ओल्ड पार्टी 2024 के फाइनल के लिए तैयार थी, मगर हुआ क्या. 3 दिसंबर का दिन आया और चर्चाएं एक बार फिर पूरी तरह पलट गईं. विधानसभा चुनावों में भी मोदी फैक्टर जादू की तरह काम करता है, यह पहली गुलाटी थी. एक और गुलाटी भरा “निष्कर्ष” सामने आया कि नरेंद्र मोदी 2024 पहले ही जीत चुके हैं.
बड़बोली बातों से परे हकीकत क्या है?
तथ्य यह है कि BJP बेशक 2024 की लोकसभा दौड़ में सबसे मजबूत स्थिति में है, मगर इसलिए नहीं कि उसने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में शानदार जीत हासिल की है. इसकी वजह चुनावी आंकड़े हैं.
2014 और 2019 में कर्नाटक, पश्चिमी भारत और हिंदी बेल्ट में कांग्रेस और उसके सहयोगियों (Congress+) की तुलना में BJP और उसके सहयोगियों (BJP+) के बीच वोट शेयर का अंतर 10 फीसद से 35 फीसद के बीच रहा था.
हिमाचल का मामला लेते हैं जहां कांग्रेस ने दिसंबर 2022 में जीत हासिल की. दोनों के बीच वोट शेयर में 35 फीसद का भारी अंतर रहा. यह देखते हुए कि किसी भी सर्वे में मोदी की लोकप्रियता रेटिंग में गिरावट नहीं देखी गई, सामान्य ज्ञान कहता है कि 2024 की कहानी तब तक अलग नहीं होगी जब तक कि अगले चार महीनों में सच में कुछ नाटकीय न हो जाए.
इन आंकड़ों को देखते हुए, किसी का भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि BJP ने दौड़ में फिनिश लाइन पार कर ली है. फिर भी सच्चाई यह है कि कोई भी दो चुनाव कभी एक जैसे नहीं होते. और BJP को जीता हुआ घोषित करने की जल्दबाजी में विश्लेषक कुछ जमीनी हकीकतों की अनदेखी कर रहे हैं
बिहार और महाराष्ट्र में पॉलिटिकल केमिस्ट्री बदल गई है
चार राज्यों में 2024 में BJP का खेल बिगाड़ने की ताकत है. ये मिलकर लोकसभा में 158 महत्वपूर्ण सदस्य भेजते हैं. BJP+ ने 2019 में इनमें से 125 सीटें जीती थीं. इनमें से 83 सीटें अकेले BJP ने जीतीं.
लेकिन 2019 के बाद से हालात काफी बदल गए हैं और किसी तरह विश्लेषक 2024 की भविष्यवाणी करते समय बदलावों की अनदेखी कर रहे हैं. ये चार राज्य हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक.
किसी और के मुकाबले खुद BJP के आला नेता इस बात से अच्छी तरह वाकिफ होंगे कि 2019 में महाराष्ट्र और बिहार में पकड़ बनाए रखना काफी मुश्किल होगा.
बिहार का मामला लेते हैं. 2019 में, BJP, JD(U) [जनता दल (यूनाइटेड)] और LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) ने चुनाव के लिए गठबंधन किया था. साझेदारी और तालमेल दोनों इतना जबरदस्त था कि NDA ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीत लीं. लेकिन हर कोई जानता है कि हालात बदल चुके हैं.’
JD(U) का अब RJD (राष्ट्रीय जनता दल) के साथ गठबंधन है और वामपंथियों और कांग्रेस के साथ मिलकर बने महागठबंधन (MGB) को 2019 की तरह हराना आसान नहीं होगा. अगर मोदी फैक्टर और चेहरा हावी नहीं हुआ होता तो कोई भी 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में MGB की भारी जीत की भविष्यवाणी कर सकता था.
लेकिन मोदी का जादू अभी बरकरार है, हालांकि अभी अंदाजा लगाना नामुमकिन है कि यह MGB की संभावनाओं पर कितना असर डालेगा. फिर भी यह देखते हुए कि LJP दोफाड़ हो चुकी है, 2019 में मिली 39 सीटों में बड़ी गिरावट की संभावना ज्यादा है.
फिर महाराष्ट्र भी है जिसके बारे में कोई पूर्वानुमान लगाने से पहले कोई मूर्ख भी दो बार सोचेगा. साल 2019 में शिवसेना और BJP ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. एक निर्दलीय को मिलाकर उन्होंने 48 में से 42 सीटें जीतीं; चार NCP (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), एक कांग्रेस और एक AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) को मिली थीं.
इसके बाद से शिवसेना और बीजेपी की राहें जुदा हो गई हैं. लेकिन इसमें भी एक पेच है.
शिवसेना में बंटवारा हो गया है और एक गुट NDA गठबंठन के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ेगा, जबकि दूसरा गुट, जिसकी अगुवाई उद्धव ठाकरे कर रहे है, I.N.D.I.A (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस ) के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ेगा. साथ ही NCP में भी फूट पड़ गई है. अजित पवार की अगुवाई वाला एक गुट NDA पार्टनर के रूप में चुनाव लड़ेगा जबकि शरद पवार की अगुवाई वाला दूसरा गुट I.N.D.I.A के साथ है.
सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि BJP शायद अपना 28 फीसद वोट शेयर बरकरार रखेगी. लेकिन यह अंदाजा लगाना नामुमकिन है कि पार्टियों से टूटे गुट कितना वोट शेयर हासिल करने में कामयाब होंगे. फिर भी ऐसे नतीजे की कल्पना करना जिसमें 2024 में BJP+ को 42 सीटें मिलेंगी, दूर की कौड़ी लगती है.
कर्नाटक और पश्चिम बंगाल
2019 में कर्नाटक में BJP ने JD(S)-कांग्रेस गठबंधन के 41 फीसद की तुलना में 51.4 फीसद वोट शेयर हासिल कर सभी को चौंका दिया था. एक निर्दलीय को मिलाकर उसने 28 में से 26 सीटें जीतीं और मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अपनी सीट हार गए थे.
लेकिन हिंदी बेल्ट के उलट कांग्रेस कर्नाटक में चुनावी मैदान में बहुत मजबूत है. ऐसे में कोई अचंभा नहीं अगर वह 9 सीटें जीतकर 2014 के अपने प्रदर्शन को दोहराए.
पश्चिम बंगाल की अनोखी स्थिति है. BJP ने 42 में से 18 सीटें जीतकर विश्लेषकों और TMC (ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस) को चौंका दिया. उसका 40.7 फीसदी वोट शेयर TMC के 43.3 फीसदी वोट शेयर से ज्यादा पीछे नहीं था. लेकिन इसके बाद TMC ने 2021 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की है.
अपुष्ट बयानों में यह भी बताया जाता है कि विधानसभा चुनावों के बाद BJP कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ हुई अभूतपूर्व हिंसा ने उन्हें डरा दिया है और वह अब भी डरे हुए हैं.
लेखक की घरेलू नौकरानी 2021 में “मोदी को वोट देने” के लिए पश्चिम बंगाल गई थी. उसने बताया कि उसका पूरा गांव जला दिया गया है. उसका और उसके जैसे बहुत से लोगों का 2024 में जाकर वोट डालने का कोई इरादा नहीं है.
मौजूदा हालात में BJP अभी भी सबसे फेवरेट पार्टी है. लेकिन ये चार राज्य पार्टी का मजा खराब करने की ताकत रखते हैं.
(सुतानु गुरु CVoter फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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