पूर्वी लद्दाख में तनाव कम करने को लेकर जारी बातचीत में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के वार्ताकारों की ओर से लगातार अड़ंगा लगाने से परेशान भारत ने लगता है कि एक नई रणनीति अपनाने का फैसला किया है, जिसमें जैसे को तैसा की एक झलक भी शामिल है. पिछले शनिवार 29 अगस्त 2020 की रात को हुई घटना के बारे में जो बातें सामने आई हैं उनसे ये स्पष्ट है.
रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि भारतीय सुरक्षा बलों ने पैंगॉन्ग सो लेक के दक्षिणी किनारे पर यथास्थिति बदलने की पीएलए की गतिविधि को “पहले ही रोक दिया”.“सहमति के उल्लंघन” और “उकसाने वाली सैन्य गतिविधियां” जो भी कहा जाए “पहले ही रोक दिया” का मतलब साफ है.
सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारतीय सेना ने लेक के दक्षिणी किनारे पर कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया जिसके बारे में उनका कहना था कि चीन भी वही करना चाह रहा था.
ये सबकुछ अप्रैल-मई 2020 में विवाद बढ़ने के बाद दोनों देशों की सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच पांच दौर की बातचीत के बाद हुआ, बड़ी विडंबना ये है कि 29 अगस्त की घटना उसी के आस पास हुई, जहां बातचीत हो रही है.
हालांकि विश्लेषक अजय शुक्ला ने मंगलवार के बिजनेस स्टैन्डर्ड में लिखा था कि 29/30 अगस्त की रात पीएलए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) को पार कर भारतीय सीमा की तरफ दाखिल हुई और चुशूल इलाके में भारतीय सेनाओं पर नजर रखने में सक्षम दो महत्वपूर्ण जगहों हेलमेट टॉप और ब्लैक टॉप पर कब्जा कर लिया.
सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारतीय सेना ने लेक के दक्षिणी किनारे पर कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया जिसके बारे में उनका कहना था कि चीन भी वही करना चाह रहा था.
ये सबकुछ अप्रैल-मई 2020 में विवाद बढ़ने के बाद दोनों देशों की सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच पांच दौर की बातचीत के बाद हुआ
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में रजत पंडिता लिखते हैं कि 29/30 अगस्त की रात ऑपरेशन में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कमांडो शामिल थे.
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में अन्य लोगों के साथ निर्वासित तिब्बती शामिल हैं और ये सेना की इकाई नहीं है
इस तरह के बल का इस्तेमाल सामान्य सैन्य ऑपरेशन के लिए नहीं बल्कि गुप्त ऑपरेशन के लिए किया जाता है.
आप इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि रविवार की रात जो कुछ भी हुआ वो एक सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया काउंटर ऑक्यूपेशन था
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का इस्तेमाल: एक स्पष्ट संकेत
लेकिन द टाइम्स ऑफ इंडिया में रजत पंडित लिखते हैं कि भारत ने “ पैंगॉन्स सो लेक के दक्षिणी किनारे के पास कुछ चोटियों पर कब्जा करने की चीनी सेना की कोशिश को विफल कर दिया. ” एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से वो कहते हैं कि पास के ठाकुंग और दूसरी चौकियों पर मौजूद सेना के जवानों की “पहले की गई कार्रवाई” ने मई की शुरुआत में हुई घटना को दोबारा होने से रोक दिया जब पीएलए के जवानों ने लेक के उत्तरी किनारे पर फिंगर 4 के इलाकों पर कब्जा कर लिया था.
वो अधिकारी के बयान का हवाला देते हैं जिसमें अधिकारी कह रहे हैं कि हमारी सेनाओं ने “रविवार की सुबह तक सभी आवश्यक उपकरणों के साथ पर्याप्त संख्या में उन सभी अहम चोटियों पर कब्जा कर लिया जो काफी उंचाई पर हैं और जो हमारे मुताबिक एलएसी के भारतीय ओर है.
अगर ये बयान एक संकेत नहीं है तो इस रिपोर्ट में जो खुलासा किया गया है उसके मुताबिक इस ऑपरेशन में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कमांडो शामिल थे.
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में अन्य लोगों के साथ निर्वासित तिब्बती शामिल हैं और ये सेना की इकाई नहीं है. ये भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RA&W) की तहत आती है और इसका मुख्यालय सहारनपुर के करीब सरसावा में है. लेकिन इसकी एक मजबूत इकाई लेह में भी मौजूद है. इस तरह के बल का इस्तेमाल सामान्य सैन्य ऑपरेशन के लिए नहीं, बल्कि गुप्त ऑपरेशन के लिए किया जाता है.
आप इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि रविवार की रात जो कुछ भी हुआ वो एक सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया काउंटर ऑक्यूपेशन यानी चीन से पहले कब्जा करने का ऑपरेशन था. चीन से जो बयान आ रहे हैं उससे भी ये साफ जाहिर होता है.
इस बार चीन का गुस्सा साफ दिख रहा है
अब, हमारे अनुभव में, आधिकारिक बयान, खासकर चीन से आने वाले बयानों पर सीधे-सीधे भरोसा नहीं करना चाहिए. बयान में कितनी सच्चाई है ये पता लगाना आसान नहीं है और यहीं पर सूझ-बूझ काम आती है.
29/30 अगस्त की घटना के मामले में चीन का गुस्सा साफ दिख रहा है. सोमवार को चीन वेस्टर्न थिएटर कमांड सीनियर झांग शुइली के प्रवक्ता ने कहा कि “ भारतीय सेना ने भारत और चीन के बीच कई स्तरों पर हुई बातचीत में बनी सहमति को तोड़ा है, और सोमवार को फिर से सीमा पर लाइन ऑफ एक्चुल कंट्रोल को पार किया और जान बूझकर उकसावे की शुरुआत की है. ” चीन पूरी तरह से भारतीय पक्ष से अनुरोध करता है कि “ वो अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करे और स्थिति को और बिगड़ने से रोके.”
इससे पहले चीन के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता झाओ लिजियन ने अपने नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में कहा था कि
चीनी सेना लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का सख्ती से पालन कर रही है और कभी भी उसे पार नहीं किया. ” अपने संपादकीय में कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने जमकर भड़ास निकाली लेकिन साथ ही काफी सटीकता से लिखा कि: “भारत बातचीत में सौदेबाजी के लिए इसे (दक्षिणी किनारे वाले इलाके को) एक नया विवादित इलाका बनाना चाहता है.”
‘उकसावे’ के बाद भी भारत सैन्य संघर्ष का खतरा क्यों नहीं उठा सकता
दिलचस्प बात ये है कि उत्तरी किनारे पर चीनी सेना 1960 के अपने आधिकारिक दावे से पांच किलोमीटर पश्चिम की तरफ चली गई है, जबकि इस मामले में वो करीब डेढ़ किलोमीटर पीछे रह गई है. 1960 में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बातचीत में उन्होंने जो दावा किया था उसके मुताबिक उनकी एलएसी पैंगॉन्ग सो के दक्षिणी किनारे पर 78°43’E, 33°40’N से गुजरती है जो वास्तव में ठाकुंग से 1.5 किलोमीटर पश्चिम में है.
लेकिन शायद ये अब मुद्दा नहीं है क्योंकि चीन अपने हिसाब से एलएसी तय करना चाहता है.
पिछले 30 सालों में एलएसी को तय करने और सीमा विवाद को खत्म करने की कोशिशें अब हवा में उड़ गई हैं. अपनी कार्रवाई से उसने न सिर्फ पूर्वी लद्दाख बल्कि पूरे एलएसी को सैन्य गतिविधियों के लिए सक्रिय कर दिया है. और चूंकि यहां सीमा को लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं और सेना तैनात है इसलिए यहां अस्थिरता की संभावना बनी रहती है.
किसी देश के साथ सैन्य संघर्ष में शामिल होने का ये भारत के लिए अच्छा समय नहीं है.
कोरोना के बढ़ते मामलों और अर्थव्यवस्था में आई तेज गिरावट से लोगों का ध्यान हटाने के लिए राजनीतिक वर्ग के बीच ये एक प्रलोभन हो सकता है. लेकिन न केवल राजनीतिक-सैन्य नेतृत्व में गुणवत्ता की कमी है बल्कि विशेष तौर पर सेना की स्थिति भी- पांच साल से लगातार बजट में कमी के कारण-अच्छी नहीं है.
(लेखक Observer Research Foundation, New Delhi में एक Distinguished Fellow हैं. आर्टिकल में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनसे द क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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