OBOR का सिर्फ भारत ने खुले तौर पर विरोध किया और ये भारत के लिए ठीक नहीं है. भारत सहित दुनियाभर के मीडिया में जानकारों को पढ़कर पहली नजर में ऐसा ही लगता है. लेकिन चीन की इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर उसमें शामिल हो रहे देशों की राय भी अच्छी नहीं है. पाकिस्तान के अलावा दूसरे देशों में इस योजना को लेकर काफी संदेह है.
दिल्ली में जर्मनी के राजदूत मार्टिन ने कहा, “OBOR पुराने सिल्क रूट से बहुत अलग है. ये मुक्त व्यापार का रास्ता नहीं है. ये कारोबार बढ़ाने के लिए चीन की रणनीति है.”
सिर्फ जर्मनी ही नहीं, दुनिया के कई देश अब OBOR पर संदेह जता रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस परियोजना के जरिए देशों पर लदने वाले कर्ज को लेकर चिन्तित है. पाकिस्तान में भी एक बड़ा वर्ग है, जो इस बात को लेकर आशंकित है कि चीन पाकिस्तान को अपने आर्थिक उपनिवेश के तौर पर गुलाम बना रहा है.
OBOR के तहत बना रहा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (CPEC) दरअसल पाकिस्तान की गुलामी की पक्की बुनियाद साबित होगा.
सांसद और पाकिस्तानी संसद की प्लानिंग और डेवलपमेंट पर बनी संसदीय स्थाई समिति के चेयरमैन ताहिर मशादी कह रहे हैं:
दूसरी ईस्ट इंडिया कम्पनी तैयार हो रही है. राष्ट्रीय हितों को दरकिनार किया जा रहा है. हमें पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर फख्र है, लेकिन देश का हित सबसे पहले देखा जाना चाहिए.
चीन की सबसे बड़ी चिंता तेजी से उभरता भारत
चीन अपने संसाधनों का क्षमता से ज्यादा इस्तेमाल करके लम्बे समय तक 10% की तरक्की हासिल कर चुका है. अब लगातार चीन की तरक्की की रफ्तार नीचे जाती दिख रही है. चीन की सबसे बड़ी चिन्ता तेजी से उभरता भारत है, इसीलिए पाकिस्तान में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाकर भारत को सन्तुलित रखने की कोशिश चीन के नजरिए से जरूरी दिखती है.
दुनिया की ज्यादातर एजेंसियां अब ये मान रही हैं कि चीन भले ही भारत से 5 गुना बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन जिस तेजी से भारत तरक्की कर रहा है, उसमें चीन के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए बाजार खोजना कठिन हो जाएगा.
इसलिए चीन अब अपनी सीमा से बाहर जाकर अपनी आर्थिक तरक्की बनाए रखने के रास्ते खोज रहा है. इसमें सबसे अच्छा और रणनीतिक रास्ता CPEC है. CPEC उस OBOR का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें रूस सहित दुनिया के करीब 60 देशों के छोटे-बड़े हित जुड़े हुए हैं.
इसीलिए जब भारत ने इसकी शुरुआत के मौके पर इसका विरोध किया, तो ये सवाल उठा कि क्या भारत एक बड़ा मौका खो रहा है? क्या भारत इसका विरोध करके अकेला पड़ रहा है?
चीन के $ 56 बिलियन के निवेश वाले इस अति महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को दुनिया बीजिंग की उस योजना के तौर पर ही देख रही है, जिसमें चीन आर्थिक तौर पर कई देशों को कर्ज देकर उनसे मनचाही छूट हासिल करेगा. साथ ही ऐसे देश सामरिक तौर पर भी चीन के लिए दूसरे देशों की जासूसी का बड़ा अड्डा बन सकेंगे. चीन पाकिस्तान जैसे इन देशों के जरिए मीडिया मैनेजमेंट का भी काम करेगा.
लीक हो चुकी है योजना
CPEC के जरिए पाकिस्तान पर धीरे-धीरे काबिज होने की योजना लीक हो गई है. इसके मुताबिक, चीन कश्मीर से सटी सीमा पर कंट्रोल सिस्टम लगाएगा और इसके जरिए इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग करेगा. साथ ही सेफ सिटीज प्रोग्राम के तहत पाकिस्तान के बड़े शहरों की 24 घंटे लाइव मॉनिटरिंग की भी योजना है. इसकी शुरुआत पेशावर से होगी और बाद में इस्लामाबाद, लाहौर और कराची में भी इसे लागू किया जाएगा.
साथ ही चीन को इस बात का भी अधिकार होगा कि वो संदेह के आधार पर किसी इमारत में छापा मार सके और किसी गाड़ी को जब्त कर सके. चीन के टीवी मीडिया को पाकिस्तान में प्रसारण की इजाजत मिल जाएगी.
पाकिस्तान में लोग इसे अपनी संस्कृति पर चीनी संस्कृति के दुष्प्रभाव के हावी होने के तौर पर देख रहे हैं. इस लीक डॉक्यूमेंट से पता चलता है, “चीन, पाकिस्तान की आर्थिक मदद अपनी राजनयिक रणनीति के तहत कर रहा है.”
डॉन अखबार ने इस बारे में विस्तार से लिखा है. इस प्रोजेक्ट की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. पाकिस्तान की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी की समीना टिप्पू ‘CPEC Conspiracy Theories of Success and Failure’ में लिखती हैं कि क्या आज के समय में इतना बड़ा प्रोजेक्ट इतने अपारदर्शी तरीके से पूरा किया जा सकता है? जबरदस्त भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और अंडर टेबल होने वाले भुगतान से पाकिस्तान की सम्प्रभुता बुरी तरह से खतरे में है.
हर ओर संदेह के बादल
जकार्ता पोस्ट अपने सम्पादकीय में लिखता है, “हमें बुनियादी क्षेत्रों में चीन के निवेश की जबरदस्त दरकार है. लेकिन, जरूरत इस बात की है कि चीन अपने इरादे और दृष्टिकोण को सही तरीके से समझाए, जिससे उसकी भूराजनीतिक महत्वाकांक्षा पर सन्देह न हो.”
कुछ ऐसा ही संदेह सिंगापुर के स्ट्रेट्स टाइम्स में भी पढ़ने को मिला. स्ट्रेट्स टाइम्स लिखता है, “चीन ने हाल ही में अपनी आर्थिक ताकत के जरिए दक्षिण कोरिया पर दबाव बनाने की असफल कोशिश की है. चीन चाहता था कि दक्षिण कोरिया अमेरिकी एंटी मिसाइल तंत्र को तैनात न करे. इसके लिए चीन ने अपने नागरिकों को दक्षिण कोरिया जाने से रोका और कोरियाई म्यूजिक वीडियो की स्ट्रीमिंग भी रोक दी.”
श्रीलंका, म्यांमार और कजाकिस्तान में भी OBOR को लेकर संदेह बढ़ रहा है. इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का आरोप ऐसे ही खारिज करना मुश्किल हो जाता है.
जरदारी ने आरोप लगाया है, “शरीफ भाई ये सड़क सिर्फ इसलिए बनाना चाहते हैं, जिससे उनको अच्छा कमीशन मिल जाए.”
कुल मिलाकर, भले ही बड़े जानकार इतनी बड़ी आर्थिक गतिविधि से भारत के बाहर रहने को गलत फैसले के तौर पर देख रहे हों, सच्चाई यही है कि खुद पाकिस्तान में भी CPEC के जरिए चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर बड़ी चिन्ता और विरोध है.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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