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भारत के लिए OBOR बेकार, EWHW पर ध्यान दो सरकार!

भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है

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भारत सरकार के लिए ये फैसला लेना इतना आसान नहीं था. लेकिन, सरकार की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि भारत ने चीन की अति महत्वाकांक्षी OBOR योजना से खुद को पूरी तरह बाहर ही रखा है.

कठिन फैसला इसलिए भी, क्योंकि भारत के 2 संवेदनशील पड़ोसी देशों पर OBOR के जरिए चीन का बढ़ता प्रभाव जल्दी ही दिखने लगेगा. वन बेल्ट वन रोड की इस योजना के जरिए चीन भले ही दुनिया के 60 देशों को जोड़ने का दावा कर रहा हो. लेकिन सच्चाई यही है कि इसके जरिए वो अपनी टूटती अर्थव्यवस्था को मजबूती से जोड़ने की कोशिश कर रहा है.

साथ ही चीन इसके जरिए कमजोर देशों को कर्ज देकर और सामरिक तौर पर निर्भर बनाकर उन्हें अपने उपनिवेश के तौर पर भी इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है. ये बात अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन खुलकर सामने आ रही है.

विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि ये बड़ा मुद्दा है कि देशों को जोड़ने वाला रास्ता बनाने का काम आम सहमति से होगा या फिर किसी एक पक्ष के तय फैसले के आधार पर.

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भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है
एस जयशंकर, विदेश सचिव (फोटो: PTI)  
चीन अपनी सम्प्रभुता का लेकर बेहद संवेदनशील है. हम उम्मीद करते हैं कि चीन को भी दूसरों की संवेदना का खयाल होगा. CPEC ऐसे इलाके से गुजर रहा है, जो पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है. ये इलाका भारत का है, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध तौर पर कब्जा कर रखा है.
एस जयशंकर, विदेश सचिव

हालांकि, चीन ने भारत की आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया और बीजिंग में OBOR की शुरुआत के मौके को भव्य बनाने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित 29 देशों के मुखिया मौजूद थे.

OBOR को हर देश कितने बड़े मौके के तौर पर देख रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के प्रतिनिधि भी इस मौके पर मौजूद थे. इसके बावजूद भारत का इस पूरे आयोजन का बहिष्कार करना बड़ी बात थी. इतना ही नहीं भारत में भी बड़े जानकार इस मसले पर भारत के अकेले पड़ने को लेकर चिन्तित हैं.

विदेशी मामलों के जानकार कांति बाजपेई लिखते हैं, “चीन ने 1963 से भारत की जमीन पर कब्जा जमा रखा है. भारत ने चीन के साथ कारोबार बंद तो नहीं कर दिया.”

तार्किक लिहाज से देखें, तो कांति बाजपेई की बात सही लगती है. लेकिन, मुझे लगता है कि भारत की सम्प्रभुता और सामरिक लिहाज के अलावा आर्थिक नजरिए या मौके के लिहाज से भी भारत का OBOR में शामिल नहीं होना बेहतर फैसला है.


भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है
(फोटो: Reuters)  
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भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है. भारत सरकार को OBOR की बजाए EWHW पर ध्यान देना चाहिए. OBOR में सुरक्षा के लिहाज से खतरे की आशंका इतनी ज्यादा है कि चीन की 71% कंपनियां शी जिनपिंग की इस अति महत्वाकांक्षी योजना में खतरे देख रही हैं.

बीजिंग के शोध संस्थान सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के सर्वे में 300 कम्पनियां शामिल हुई थीं. इसीलिए भारत और भारतीय कम्पनियों के लिए OBOR की बजाए EWHW ही काम का है. EWHW मतलब एवरीवेयर हाइवे.

भारत में पहली बार अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने हाइवे के महत्व को समझा और स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिए देश को जोड़ा. दिल्ली-कोलकाता, कोलकाता-चेन्नई, चेन्नई-मुंबई और मुंबई-दिल्ली को जोड़कर बने 5846 किलोमीटर के हाइवे से लगभग देश का हर बड़ा शहर जुड़ गया था. यही वो सड़क परियोजना थी, जिसके बाद आम भारतीय सड़क के जरिए एक शहर से दूसरे शहर फर्राटा भरने लगा था. इसके पहले तक मौर्य वंश के राज में चंद्रगुप्त मौर्य की बनवाई और मुगल शासक शेरशाह सूरी की ठीक कराई गई 2 लेन और कहीं-कहीं तो सिंगल लेन वाली ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) से ही भारत यात्रा धीरे-धीरे खिसकता रहा.

स्वर्णिम चतुर्भुज ने हिन्दुस्तानियों को 4-6 लेन की सड़क पर झूमते हुए मस्ती से यात्रा का आनन्द लेना सिखाया. दुनिया की कार कम्पनियों के लिए सबसे पसंदीदा ठिकाना भी भारत इन्हीं हाइवे की वजह से बना. लेकिन, इसके बाद EWHW की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश की कुल सड़कों में हाइवे की हिस्सेदारी 2% से भी कम की है, जबकि, इन्हीं 2% सड़कों पर देश के 40% यातायात का दबाव है.
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भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (फोटो: द क्विंट)

संसद में सरकार की ओर से बताया गया है कि 2013-14 में 4,260 किलोमीटर, 2014-15 में 4,410 किलोमीटर और 2015-16 में 6,061 किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया. इस लिहाज से सड़कों के बढ़ने का आंकड़ा देखा जाए, तो 1951 से लेकर 2015 तक सालाना 4.2% की रफ्तार से सड़कें बढ़ी हैं. लेकिन एवरीवे हाइवे का मतलब सिर्फ और सिर्फ सड़कें बनाना नहीं है. इसका मतलब जहां, जिस रास्ते से कोई जाना चाहे, उसकी यात्रा सुगम, सुखद होनी चाहिए. फिर वो सड़क मार्ग हो, रेल मार्ग हो या फिर जल मार्ग.

अच्छी बात ये है कि सड़क परिवहन, हाइवे और पोत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की गिनती मोदी सरकार के सबसे अच्छा काम करने वाले मंत्रियों में होती है. मोदी सरकार में प्रतिदिन 22 किलोमीटर हाइवे बन रहा है और गडकरी इसे 30 किलोमीटर प्रतिदिन तक ले जाना चाहते हैं.

स्वर्णिम चतुर्भुज की ही तर्ज पर मोदी सरकार की भारतमाला परियोजना 20,000 किलोमीटर हाइवे बनाने की है. इस परियोजना की अनुमानित लागत 10 लाख करोड़ रुपये है. भारतमाला परियोजना की सबसे बड़ी बात ये है कि ये हाइवे देश के किनारे-किनारे बनेंगे और कई जगहों पर अंतरराष्‍ट्रीय सीमा से सटे होंगे.

नितिन गडकरी का कहना है, “हम सभी जिला मुख्यालयों को हाइवे से जोड़ेंगे.“ सड़क परिवहन मंत्रालय की एक और महत्वाकांक्षी परियोजना है चारधाम हाइवे विकास की, जिसकी बुनियाद प्रधानमंत्री रख चुके हैं.

चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के तहत 900 किलोमीटर हाइवे बनेगा. इसकी अनुमानित लागत 12000 करोड़ रुपये की है. इसमें से 3000 करोड़ रुपये की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है. इनलैंड वॉटर बिल 2016 को मंजूरी मिलने के बाद जल परिवहन में भी तेजी आने की उम्मीद की जा सकती है.
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इस नए कानून की मंजूरी के समय नितिन गडकरी ने बताया कि देश में 111 नदियां ऐसी हैं, जिनमें जल परिवहन की सम्भावना है. अगर सम्भावित नदियों में से दसवें हिस्से पर भी जल परिवहन शुरू किया जा सका, तो भारतीय परिवहन की तस्वीर तेजी से बदल सकती है.

रेलमंत्री सुरेश प्रभु भी मोदी सरकार के अच्छे मंत्रियों में गिने जा रहे हैं. तेज रफ्तार ट्रेनें चलाने के लिए पटरियों को बदलने के साथ रेलवे स्टेशनों के भी कायाकल्प की बड़ी योजना तैयार की गई है.

रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने देश के 400 रेलवे स्टेशनों को रीडेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए चुना है. पहले चरण में 23 रेलवे स्टेशनों का काम शुरू हो चुका है. तेज रफ्तार वाली तेजस ट्रेन शुरू हो चुकी है. इसलिए सरकार को देश की आर्थिक तरक्की, रोजगार देने के लिहाज से सरकार को देश के लिहाज से बेकार OBOR छोड़कर EWHW पर ही मिशन मोड में लग जाना चाहिए.

इस आर्टिकल का पहला भाग पढ़ें:

चीन के OBOR का विरोध करने वालों में पाकिस्तानी भी, ये रही वजह

(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्‍ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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