डियर इंडियन पैरेंट्स,
मुझे पूरी उम्मीद है कि आप अपने बच्चों की अच्छी परवरिश और उसे एक नेक इंसान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते होंगे. होना भी यही चाहिए. आखिर एक अच्छे पैरेंट होने की यही तो बुनियादी जरूरत है. लेकिन क्या आपको इस बात पर पूरा यकीन है कि आपका बच्चा उन तमाम बच्चों की जमात में शामिल नहीं है, जो अपने से कमजोर या किसी शारीरिक कमी से जूझ रहे दूसरे बच्चे पर 'बुलिंग' यानी 'दादागिरी' करते है? या फिर, क्या आपको पूरा यकीन है कि आपका बच्चा अपने स्कूल या आस-पड़ोस में 'बुलिंग' का शिकार नहीं होता? अगर आप इन सब से अब तक अनजान हैं, तो वक्त है खुद को टटोलने का और इस बारे में गहराई से सोचने का. यही वजह है कि मैं आपके नाम ये खुला खत लिख रहा हूं.
अपनी ही जान लेना चाहता है मासूम
चंद रोज पहले मैंने सोशल मीडिया पर एक छोटे बच्चे का वीडियो देखा, जिसने मुझे दिलो-दिमाग से झकझोर कर रख दिया. ये वीडियो दुनियाभर में वायरल हो रहा है, और करोड़ों लोग इसे देख चुके हैं. जिस किसी भी संजीदा इंसान ने इसे देखा, उसकी आंखें भी मेरी ही तरह नम हुए बिना नहीं रही होगी. महज 9 साल के इस बच्चे को स्कूल में पढ़ने वाले दूसरे बच्चों ने साल दर साल इस कदर चिढ़ाया और उसका मजाक उड़ाया, कि अब वो इस जिल्लत भरी जिंदगी से तंग आ चुका है. वो अब जिंदा ही नहीं रहना चाहता...वो अपने ही सीने में चाकू घोंपकर अपनी जान लेना चाहता है. इस मासूम का कसूर सिर्फ इतना है कि वो दूसरे बच्चों से थोड़ा अलग है.
इससे पहले कि मैं आगे अपनी बात बोलूं, आप एक बार इस वीडियो को देखिए, और महसूस करने की कोशिश कीजिए इस बच्चे के दर्द को, जिसके आंसू समाज के इस स्याह पहलू को बेशर्म आइना दिखा रहा है.
क्या परवरिश में रह रही है कोई कमी?
जब से मैंने इस वीडियो को देखा है, इस बच्चे की सूरत गाहे-बगाहे मेरे जेहन में उभर आती है और मैं परेशान हो उठता हूं. इस बच्चे के चेहरे में जो हताशा, खीझ और गुस्सा है...इसकी आंखों में जो दर्द है, जिंदगी से नाउम्मीदी है और जुबान पर खुदकुशी की जो ख्वाहिश है, वो मुझे सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हम अपने बच्चों की परवरिश ठीक से कर रहे हैं? हालांकि ये बच्चा ऑस्ट्रेलिया से है, लेकिन भारतीय समाज में भी हमारे आस-पास ऐसे तमाम बच्चे मौजूद हैं, जो हर दिन अपने स्कूल और मोहल्ले में इस तरह के बर्ताव का शिकार होते हैं.
जरा सोचिए क्या बीतती होगी ऐसे मासूमों के उस नाजुक से मन में, जब दूसरे बच्चे उन्हें बार-बार ये एहसास दिलाते होंगे कि 'तुम हमारे साथ मिलने-जुलने लायक नहीं हो, तुम हमारे साथ खेलने-कूदने लायक नहीं हो, तुम हमारे साथ उठने-बैठने लायक नहीं हो'. कैसे ख्यालात आते होंगे इन बच्चों के जेहन में, जब आये दिन उनके अपने ही साथी मजाक उड़ाते हों.
बुलिंग का शिकार हुए ऐसे बच्चे के मन में अपने साथ हुए उपहास और दुत्कार का ऐसा असर पड़ता है, कि वो हर किसी से नफरत करने लगता है...यहां तक कि खुद से भी.
खुदकुशी और गुनाह की राह तक ले जाता है बुलिंग
समाज से मिली उपेक्षा और घृणा से जूझते हुए यही बच्चे जब बड़े होते हैं, तो उनकी जिंदगी सामान्य नहीं रह जाती. ऐसे लोग या तो समाज से बिलकुल कटकर जिंदगी बिताते हैं, या डिप्रेशन में आकर खुदकुशी का रास्ता अपना लेते हैं, या फिर अपराध की राह चुन लेते हैं. आपने पश्चिमी देशों की कभी न कभी ऐसी कोई खबर जरूर सुनी होगी, जब स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले किसी बच्चे ने स्टूडेंट्स की भीड़ में अंधाधुंध गोलीबारी कर कई जिंदगियां छीन ली. ऐसे अपराधों के पीछे अकसर बुलिंग का बहुत बड़ा हाथ होता है.
एक अपील
तो आप सब पैरेंट्स से मेरी हाथ जोड़कर यही विनती है कि अपने बच्चों से बुलिंग और इसके बुरे नतीजों के बारे में खुलकर बात कीजिए. उन्हें समझाइये कि शारीरिक कमी से जूझ रहे किसी भी बच्चे का कभी मजाक न उड़ाएं, और कभी भी ऐसे बच्चों के साथ भेदभाव न करें.अपने बच्चों को ये बताइए कि कितनी मुश्किल होती है बुलिंग का शिकार हुए किसी बच्चे की जिंदगी. उन्हें इस बात पर यकीन दिलाइए कि सबके साथ अच्छा बर्ताव करना ही असल मायनों में इंसानियत है....और इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं.
आपका और आपके बच्चों का एक संजीदा शुभचिंतक,
शौभिक पालित
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