100 दिन बाद, 90 परसेंट छोटे कारोबारियों को हर महीने रिटर्न से राहत देते हुए जीएसटी को सिंपल टैक्स करने का दावा सरकार ने किया है. लेकिन सच तो यही है कि भारत में बड़े सुधार चुनाव का डर ही कराता है. यही वजह है कि लागू होने के करीब साढ़े तीन माह बाद कारोबारियों और एक्सपोर्टर्स की भारी नाराजगी और गुजरात में विधानसभा चुनाव का असर है कि जीएसटी में कई बड़े बदलाव हो गए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर दावा किया है कि जीएसटी और सिंपल हो गई है और इससे पूरे देश के छोटे कारोबारियों को फायदा होगा. साफ दिखाई दे रहा है कि ज्यादातर बदलाव गुजरात को ध्यान में रखकर किए गए हैं, क्योंकि वहां अगले 2 माह में विधानसभा चुनाव होने हैं. कारोबारियों के सबसे ज्यादा गुस्से की खबरें वहीं से आ रहीं थी.
छोटे कारोबारियों को सबसे बड़ी राहत हर महीने रिटर्न फाइलिंग की शर्त हटाने से मिलेगी. 1.5 करोड़ तक कारोबार करने वाले अब तिमाही रिटर्न दाखिल करेंगे. कॉम्पोजीशन स्कीम की लिमिट 75 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ कर दी गई है. 27 आइटम पर रेट घटा दिए गए हैं. एक्सपोर्टरों को रिफंड मिलना शुरू हो जाएगा.
लेकिन क्या इस सबसे कारोबारियों का कष्ट कम हो जाएगा?
जीएसटी- कितना सिंपल हुआ?
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 100 दिन के अनुभव के बाद जान लिया है कि जीएसटी नेटवर्क में 90 परसेंट तो छोटे कारोबारी हैं. वो कुल जीएसटी कलेक्शन में मुश्किल से 8 परसेंट योगदान दे रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना उन्हें ही करना पड़ रहा है. इसकी वजह से नेटवर्क में भी बहुत बोझ पड़ रहा है. जीएसटी के मौजूदा सिस्टम से सबसे ज्यादा शिकायतें छोटे कारोबारियों और एक्सपोर्टर्स की तरफ से थी. उनको हर महीने रिटर्न भरने में पसीने छूट रहे थे.
नेटवर्क का बोझ भी कम होगा
इस तरीके से छोटे कारोबारी ही नहीं जीएसटी नेटवर्क का भी बड़ा सिरदर्द दूर होगा. दरअसल हर महीने रिटर्न भरने के चक्कर में जीएसटी नेटवर्क में ट्रैफिक इतना ज्यादा बढ़ जाता था कि पूरा सिस्टम अक्सर बैठ जाता था. वित्तमंत्री ने भी माना कि हर महीने रिटर्न भरने की अंतिम तारीख के आसपास 90 परसेंट से ज्यादा छोटे कारोबारी के भारी ट्रैफिक से नेटवर्क को जाम हो जा रहा था. जबकि इनसे टैक्स कलेक्शन बहुत मामूली हो रहा था.
जीएसटी कलेक्शन में 92 परसेंट से ज्यादा टैक्स बड़ी इंडस्ट्री ही देती है. अब छोटे कारोबारी महीने के रिटर्न से बाहर हो जाएंगे तो बड़ी इंडस्ट्री के लिए भी बड़ी राहत होगी.
टैक्स का दायरा बढ़ाने के दावों का क्या होगा?
जीएसटी में राहत के सबसे बड़े फैसले पर कई सवाल भी उठने लगे हैं. जानकारों के मुताबिक सरकार ने दावा किया था कि जीएसटी से टैक्स का दायरा बढ़ेगा, लेकिन अगर 90 परसेंट से ज्यादा छोटे कारोबारी (1.5 करोड़ टर्नओवर) को हर महीने रिटर्न से छूट मिलने के बाद क्या टैक्स का दायरा बढ़ाने का दावा कमजोर नहीं पड़ जाएगा?
टैक्स एक्सपर्ट ध्रुव अग्रवाल कहते हैं कि छोटे कारोबारियों को सिर्फ हर महीने के रिटर्न के झंझट से छूट मिली है, उन्हें तिमाही रिटर्न तो भरना ही होगा.
लेकिन दूसरे जानकारों का मानना है कि इससे टैक्स में वसूली कम होने का खतरा है क्योंकि होल सेलर से रिटेलर तक की जो पूरी चेन बनी हुई है उसपर खासा असर होगा. छोटी इंडस्ट्री के लिए सिर्फ इतना ही नहीं हुआ है. सरकार ने मंत्रियों का एक समूह बनाया है जो छोटी इंडस्ट्री की दूसरी दिक्कतों जैसे इनपुट क्रेडिट सिस्टम, कॉम्पोजीशन स्कीम में टर्नओवर कैलकुलेट करने के तरीकों पर भी विचार करेगा. यह समूह दो हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगा.
टैक्स का रोना है पर 40% बिजनेस ने दिया जीरो जीएसटी
- छोटे कारोबारियों के बारे में शुरुआती आंकड़े बड़े रोचक हैं, जिसके मुताबिक जुलाई में जिन 54 लाख बिजनेस ने जीएसटी रिटर्न भरे हैं उनमें से 40 परसेंट से ज्यादा ने यानी 22 लाख ने एक रुपया भी जीएसटी नहीं दिया है.
- सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जीरो जीएसटी देने वालों के अलावा जिन 32 लाख लोगों ने जीएसटी दिया है उनमें से 70 परसेंट ने एक रुपए से 33 हजार रुपए टैक्स दिया है. यानी सरकार ने जुलाई में 94 हजार करोड़ रुपए जीएसटी जुटाया था उसमें ज्यादातर बड़ी कंपनियों का हिस्सा है छोटे कारोबारियों का बहुत कम योगदान है.
- जीएसटी में करीब 1 करोड़ बिजनेस और सर्विस प्रोवाइडरों ने रजिस्ट्रेशन कराया है. अधिकारियों ने मुताबिक सभी कारोबारी छूट चाहते हैं, पर हकीकत यही है कि इनमें ज्यादातर टैक्स नहीं देते.
सबसे बड़ा तोहफा एक्सपोर्टर्स को मिला
जीएसटी काउंसिल के फैसले से सबसे बड़ा फायदा एक्सपोर्टर्स के हिस्से में आया है. सबसे ज्यादा शिकायतें भी उन्हें हीं थीं.
- एक्सपोर्टर के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक की दो स्कीम मार्च 2018 तक दोबारा लागू रहेंगी. जीएसटी आने के बाद ये स्कीम बंद कर दी गई थीं. इसका मकसद है कि एक्सपोर्टर को नकदी की कमी ना हो.
- सभी एक्सपोर्टर्स को जुलाई से 10 अक्टूबर तक जमा किए गए सभी टैक्स रिफंड कर दिए जाएंगे. एक्सपोर्टर्स इस बात की शिकायत कर रहे थे कि रिफंड ना मिलने की वजह से उनके पास नकद की भारी दिक्कत हो गई है.
- अप्रैल 2018 से ई-वॉलेट स्कीम लागू की जाएगी. ई-वॉलेट एक तरह का सॉफ्टवेयर होगा जिसमें एक्सपोर्टर्स को मिलने वाली सभी स्कीम रहेगी. इसके जरिए एक्सपोर्टर्स को मिलने वाली टैक्स छूट का ब्यौरा भी होगा.
- स्कीम के लागू होने से एक्सपोर्टर्स को बार बार टैक्स छूट लेने की प्रक्रिया से छुटकारा मिल जाएगा. इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक ई-वॉलेट स्कीम एक्सपोर्टर्स की दिक्कतों का स्थायी हल होगी.
गुजरात को ध्यान में रखकर बदलाव
वैसे तो 27 प्रोडक्ट के टैक्स रेट बदल दिए गए हैं. पर जरा ध्यान दीजिए तो साफ लगता है कि बहुत कुछ परिवर्तन गुजरात को ध्यान में रखकर किए गए हैं.
- सूखे कटे आमों में दर 12 परसेंट से घटाकर 5 परसेंट
- अनब्रांडेड नमकीन में 12 परसेंट से 5 परसेंट
- यार्न पर दर 18 परसेंट से घटाकर 12 परसेंट
- कई जॉब वर्क जैसे जरी, इमीटेशन ज्वैलरी, फूड आइटम और प्रिंटिंग आइटम के जॉब वर्क में टैक्स 12 से घटाकर 5 परसेंट किया गया
छोटी इंडस्ट्री मांगे मोर
छोटी इंडस्ट्री सरकार के फैसलों से खुश तो है, लेकिन वो कह रहे हैं कि अब प्रैक्टिकल अनुभव के बाद इस पता लगेगा कि उन्हें कितनी राहत मिली है. खास तौर पर छोटे शहरों के कारोबारियों को संदेह बरकरार है. मध्यप्रदेश में महाकौशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स के ट्रेजरार युवराज जैन के मुताबिक यार्न पर टैक्स की दरें कम होने से टैक्सटाइल के मैन्यूफैक्चरर को सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि उनकी लागत कम हो जाएगी. उनकी बड़ी रकम जो टैक्स में फंस जा रही थी. लेकिन उनका मानना है कि कारोबारियों को असली दिक्कत प्रक्रिया और पोर्टल से थी, इसलिए अगर इन फैसलों से प्रक्रिया तेज होती है तो इसका स्वागत है.
लेकिन कई चार्टर्ड अकाउंटेंट इस बदलाव पर अभी भी संदेह उठा रहे हैं.
नोएडा चार्टर्ड एसोसिएशन के ध्रुव अग्रवाल के मुताबिक इतनी तेजी से बदलाव हो रहे हैं कि इन्हें समझने में बहुत परेशानी हो रही है. अग्रवाल के मुताबिक जीएसटी की एक बैठक में हुए फैसलों को जब तक समझते हैं, तब तक कई और बदलाव सामने आ जाते हैं.
अग्रवाल के मुताबिक जीएसटी काउंसिल को कई असल मुद्दों पर गौर करना चाहिए जैसे-
- श्रेणी आसान की जाए, जैसे सारे मशीनी कलपुर्जों पर टैक्स की दर एक हो. अभी टैक्टर के लिए अलग, बस और ट्रक के लिए अलग है.
- खाने-पीने की सभी चीजों के लिए टैक्स की दर एक समान रखी जाए ये नहीं कि पिज्जा के लिए अलग, बिस्किट अलग और पनीर के लिए अलग.
- ई-वे बिल को लेकर स्थिति अभी से स्पष्ट कर दी जाए. छोटे कारोबारियों से चर्चा की जाए. उनके मुताबिक दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में ई-वे बिल को लेकर प्रैक्टिकल दिक्कत आने का खतरा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली और राजस्थान एक दूसरे से सटे हैं.
जीएसटी सुविधा प्रोवाइडर मास्टर्स इंडिया के सीईओ निशंक गोयल का मानना है कि मौजूदा फैसलों से जीएसटी बहुत ही आसान हो जाएगा. उनके मुताबिक कारोबारियों को असली दिक्कत जीएसटी के बारे जानकारी को लेकर है. इसके अलावा उन्हें नकदी औप पूंजी की वजह से मुश्किल हो रही थी. लेकिन अब कारोबारियों का बड़ा सिरदर्द कम हो जाएगा.
सबसे असरदार राजनीतिक दबाव
अक्सर ये कहा जाता है कि भारत में हर मामले में राजनीति घुसने से दिक्कतें होती हैं. लेकिन जीएसटी में बदलाव से साफ है कि अंत में सबसे असरदार राजनीतिक दबाव ही होता है. सरकार को गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर ही सही कारोबारियों की दिक्कत का अहसास तो हुआ. लेकिन असली तस्वीर तो इन फैसलों पर अमल के बाद ही नजर आएगी.
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