द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि शनि मंदिर में औरतों के प्रवेश से बलात्कार जैसे अपराध बढ़ेंगे, क्योंकि शनि ‘पापों वाला ग्रह’ है.
अब हम आपमें से तमाम लोग कहेंगे कि ये शंकराचार्य हैं या बाबा चुटकुलेश्वर. लेकिन आज भले ही हम आप जैसे बहुत सारे लोग इनकी ऐसी बातों पर ध्यान न दें, लेकिन करोड़ों लोग इनकी बातों पर पूरी आस्था रखते हैं. ऐसी ही ऊपर से बकवास दिखने वाली बातों की मदद से ही सदियों से धर्म के ठेकदारों ने महिलाओं की ठेकेदारी ले रखी है.
चूंकि ऐसी बातें गलत साबित करने का कोई साइंटिफिक तरीका तो है नहीं, इसलिए भूत-भविष्य, ग्रह-नक्षत्रों में यकीन करने वाले ऐसी बातों को सच मान बैठते हैं. दूसरे, हम सभी जानते हैं कि आने वाले वर्षों में बलात्कार की घटनाएं (अधिक रिपोर्टिंग, मीडिया तक लोगों की अधिक पहुंच, महिलाओं में जागरुकता इत्यादि के कारण) स्वाभाविक रूप से अधिक होंगी.
एक तो रिपोर्टिंग साल दर साल बढ़ रही है, महिलाओं में भी बलात्कार रिपोर्ट करवाने की हिम्मत धीरे-धीरे आ रही है. सोशल मीडिया जैसे माध्यमों से अब बलात्कार जैसी घटनाएं पहले से अधिक स्पेस पा रही हैं और शायद बलात्कार वास्तव में बढ़ भी रहे हैं हर साल. इसी दुर्योग का फायदा उठाकर ऐसी बातें करते हैं ये धर्म के ठेकेदार.
महिलाओं की स्थिति कमजोर करने की कोशिश
शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सबसे बड़े धर्माचार्य होते हैं. अब सोचिए कि शंकारचार्य जैसे लोग ऐसी बातें कहें, तो उसके निहितार्थ क्या हैं. दरअसल जो डिस्कोर्स ऐसे धर्माचार्य खड़ा करते हैं, असल में वो समाज में पहले से स्थापित पॉवर स्ट्रक्चर का ही डिस्कोर्स है. यानी धर्म की ऐसी व्याख्या करना, जिसमें महिलाओं की मोबिलिटी पर पाबंदी लगाई जा सके, ताकि अनिष्ट होने का डर दिखाकर महिलाओं को उनकी दोयम स्थिति में रखा जा सके, ताकि शनि-राहु-केतु टाइप वाले डर को लोगों के दिमाग में बनाया रखा जा सके.
पुराना धार्मिक तर्क है महिलाओं पर रेप का दोष मढ़ना
बलात्कार के लिए महिलाएं ही दोषी हैं. ये वही पुराना धार्मिक तर्क है कि ये करोगे, तो वो अनिष्ट हो जाएगा, ऐसा नहीं करोगे, तो वो हो जाएगा...और इस तरह मनुष्य के साथ हुए हर अन्याय का ठीकरा उसी के सिर फोड़ दिया जाता था, ताकि लोग अपने खिलाफ हो रहे भेदभाव या अन्याय के खिलाफ बोल ही न सकें.
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज से दो-तीन सौ साल पहले या उससे पहले कैसे गरीब हिन्दू जनता को ये धर्माचार्य डराते-धमकाते और दंड देते रहे होंगे. यह उस अनाचार का एक उदाहरण है, जो धर्म के नाम पर थोपा जाता रहा है. जिस दौर में ऐसे कथनों का मजाक बन रहा है, उसी दौर में यह बहुतों के लिए आस्था और यकीन का ब्रह्मवाक्य भी है.
आज भी बहुत बड़ी संख्या शंकराचार्य जैसे लोगों की हर बात को सच मानने या काफी हद तक इन बातों से इत्तेफाक रखने वाली है. गांवों, कस्बों, शहरों में फैले हुए तमाम शिक्षित संपन्न हिन्दू तबका इनके अंधे फॉलोवर हैं.
ऐसे लोग प्रायः अपने-अपने सामाजिक क्षेत्रों में प्रभावशाली भी हैं. धर्म के भीतर और बाहर वैकल्पिक तर्कों और विमर्शों की जगह होना जरूरी है, लेकिन दुर्भाग्य से पॉपुलर मीडिया भी इन बाबाओं से डरा हुआ है अथवा इन्हीं की बातों का समर्थन करती है.
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