पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी 4-5 मार्च को दो दिनों की आधिकारिक यात्रा पर नेपाल में थे. यह पाकिस्तान के किसी प्रधानमंत्री की पिछले 24 साल में नेपाल की पहली आधिकारिक यात्रा थी. इससे पहले बेनजीर भुट्टो 1994 में द्विपक्षीय यात्रा पर नेपाल गई थीं, जबकि नवाज शरीफ 2014 में 18वें सार्क सम्मेलन में शामिल होने के लिए वहां पहुंचे थे.
अब्बासी का गर्मजोशी से स्वागत
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का नेपाल में गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ. काठमांडू के टुंडीखेल ग्राउंड पर आर्मी पवेलियन में उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर पेश किया गया. आमतौर पर विदेशी मेहमानों को यह सम्मान काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर दिया जाता रहा है. दोनों देशों के बीच आपसी रिश्ते मजबूत करने के लिए कई मुद्दों पर बात हुई. इसमें सार्क प्रक्रिया को रिवाइव करने और चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के जरिये रीजनल कनेक्टिविटी को बढ़ाने पर भी चर्चा हुई.
ओली के साथ मीटिंग में अब्बासी ने चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को लेकर हुई प्रगति की जानकारी दी. इसका निर्माण बीआरआई के तहत किया जा रहा है. इसके तहत पाकिस्तान में रोड, रेलवे, पोर्ट, एयरपोर्ट और ग्रिड का विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है.
अब्बासी ने नेपाल के बीआरआई ज्वाइन करने पर खुशी जताई और कहा कि यह प्रोजेक्ट पूरे दक्षिण एशिया के लिए गेम चेंजर साबित होगा. अब्बासी ने नेपाल को केरूंग-तिब्बत मेन रेलवे लाइन के जरिये पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट के इस्तेमाल का भी ऑफर दिया. नेपाल मई 2017 में बीआरआई से जुड़ा था. उस वक्त माओवादी चेयरमैन पुष्प कमल दहाल प्रचंड प्रधानमंत्री थे, लेकिन उसके बाद से बीआरआई के तहत प्रोजेक्ट की पहचान और उस पर काम शुरू करने को लेकर ज्यादा प्रगति नहीं हुई है.
भारत-नेपाल रिश्ते के लिए यह अच्छा समय नहीं है
इस यात्रा के दौरान अब्बासी ने सार्क प्रोसेस को रिवाइव करने पर जोर दिया, जो भारत और पाकिस्तान के खराब संबंधों की वजह से रुका हुआ है. 19वां सार्क सम्मेलन नवंबर 2016 में इस्लामाबाद में होने वाला था, लेकिन उरी हमले में पाकिस्तान का हाथ होने की वजह से भारत के बहिष्कार करने पर इसे कैंसल करना पड़ा था.
अब्बासी ने ओली को बताया कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया गया है, जबकि आतंकवाद की वैसी ही मार उसे भी झेलनी पड़ रही है. इस यात्रा में भारत के लिए कई संदेश छिपे हैं. ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के नेपाल से रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. 2015 के मधेशी आंदोलन के बाद बॉर्डर ब्लॉक होने से ओली की यूएमएल पार्टी और भारत के रिश्ते खराब हुए थे.
भारत कहता रहा है कि बॉर्डर ब्लॉक होने की वजह नेपाल के आंदोलनकारी थे, जबकि नेपाल की राष्ट्रवादी ताकतों का मानना है कि भारत ने तत्कालीन ओली सरकार पर मधेशियों की मांग मानने का दबाव बनाने के लिए ऐसा किया था. मधेशियों ने तब नए संविधान में संशोधन की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था.
चीन-नेपाल की बढ़ती दोस्ती भारत के लिए खतरा
करीब पांच महीने तक भारत-नेपाल के बीच ट्रेड रुकने से नेपाल के लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ी थी. इससे नेपाल में भारत-विरोधी सेंटीमेंट बना. यहां हुए पिछले चुनाव में वामपंथी दलों को जीत मिली, जिसके बाद भारत नेपाल की नई सरकार के साथ बातचीत करने को बाध्य हुआ. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस महीने की शुरुआत में नेपाल गई थीं. दरअसल, भारत संकेत दे रहा है कि वह नेपाल की नई सरकार के साथ काम करने को तैयार है.
ओली नई सरकार में कुछ मधेशी पार्टियों को जगह देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने संविधान संशोधन की भी हामी भरी थी. हालांकि, इस बारे में अब तक नई सरकार ने स्पष्ट संकेत नहीं दिए हैं. ओली को चीन का करीबी बताया जाता है. इस बीच, नेपाल और पाकिस्तान की दोस्ती बढ़ने से भारत की चिंताएं बढ़ सकती हैं. पाकिस्तान और चीन की नजदीकी किसी से छिपी नहीं है.
चीन ने बहुत कम समय में नेपाल में प्रभाव बढ़ाया है. वह अब वहां के राजनीतिक मामलों में सीधे दखल दे रहा है. नेपाल के विकास के लिए चीन भारत का मजबूत विकल्प बनकर उभरा है. बीआरआई पर भारत के विरोध के बावजूद नेपाल के उसके जुड़ने का मतलब यह है कि वह तिब्बत के रास्ते नए ट्रेड रूट डिवेलप करना चाहता है. इसका नेपाल की इकनॉमी पर व्यापक असर होगा.
मुश्किल वक्त में नेपाल की ओर पाकिस्तान ने बढ़ाया है हाथ
अब्बासी की नेपाल यात्रा दो मायनों में खास है. पहला, इससे पता चलता है कि पाकिस्तान और चीन नेपाल में भारत का प्रभाव कम करने के लिए उसके साथ मजबूत रिश्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब भारत और अमेरिका के बीच इंडो-पैसिफिक में विकास और सुरक्षा मामलों को लेकर सहयोग बढ़ रहा है. दोनों देश इस क्षेत्र में रोड कनेक्टिविटी के लिए पार्टनरशिप कर रहे हैं. यह एक तरह से चीन के वन बेल्ड, वन रोड (ओबीओआर) का विकल्प होगा.
जापान और ऑस्ट्रेलिया भी इस पहल का हिस्सा हो सकते हैं. चीन इसका विरोध कर रहा है. दूसरी तरफ, अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा दिया है. उसने पाकिस्तान की सैन्य मदद रोकने की चेतावनी भी दी है. वह पाकिस्तान सरकार पर आतंकवादी कैंपों के खिलाफ एक्शन लेने का दबाव डाल रहा है.
इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़ने का डर सता रहा है, जिसके संकेत अब्बासी ने नेपाल यात्रा के दौरान दिए भी थे. इसलिए वह चीन की मदद से दूसरे दक्षिण एशियाई देशों के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहता है. दूसरी बात यह है कि चीन और पाकिस्तान के साथ नेपाल की दोस्ती बढ़ने पर भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी और उसका प्रभाव नेपाल में कम होगा.
(आकांक्षा शाह नेपाल की जर्नलिस्ट हैं. इन दिनों वे दिल्ली में रहकर रिसर्च कर रही हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. आर्टिकल की कुछ सूचनाएं लेखक के अपने ब्लॉग पर छपी हैं.)
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