मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सबसे ज्यादा इसी बात पर जोर दिया था. वो इसी को विस्तार देते हुए हमेशा कहते हैं कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं होता है. लेकिन, गवर्नेंस या सुशासन सिर्फ कारोबार के बेहतर तरीके होने से नहीं होता है. और कारोबार के लिए आसानी होना यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस से भी किसी सरकार के समय में गवर्नेंस नहीं आंका जा सकता.
गवर्नेंस या सुशासन का पैमाना होता है कि आम लोगों को रोज की जरूरत की सुविधाएं आसानी से मिल पा रही हैं क्या ? सरकारी कर्मचारी इस सुशासन का एकमात्र आधार है. लेकिन, ज्यादातर मामलों में यही सरकारी कर्मचारी अतिरिक्त सुविधा शुल्क की चाह में सुशासन को सबसे तगड़ी चोट मार रहा होता है.
इसका एक बड़ा अनुभव हाल में मुझे तब हुआ, जब अपने पासपोर्ट को रिन्यू कराने के लिए मैंने आवेदन किया. मोटे तौर पर अगर कहें, तो मेरा निजी अनुभव यही रहा कि पासपोर्ट सेवा केंद्र, गाजियाबाद अद्भुत तेजी के साथ काम कर रहा है. एक मोटा अनुमान, मुझे पता चला कि हर रोज करीब हजार लोगों से ज्यादा का पासपोर्ट आवेदन यहां से आगे कि प्रक्रिया में बढ़ा दिया जाता है. इंटरनेट, सुशासन में बिना लोगों को अहसास दिलाए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
घर बैठे पासपोर्ट के लिए आवेदन भरा. आधार ने उसमें और आसानी कर दी है. लेकिन, सुशासन को सरकारी कर्मचारी कैसे बत्ती लगा दे रहा है और वो भी आधार कार्ड के ही आधार पर, ये मैं आगे बताऊंगा.
पासपोर्ट आवेदन करते समय एक साथ अधिकतम 4 लोगों का आवेदन कर सकते हैं. लेकिन, इस आधार पर जब आप पासपोर्ट की फीस भरते हैं, तो सॉफ्टवेयर प्रति 15 मिनट के लिहाज से आपके चारों लोगों की अलग-अलग समय पर पासपोर्ट दफ्तर का समय मिल जाता है. इसकी वजह मैं अपने उदाहरण से ही बताता हूं.
जैसे मैंने गाजियाबाद पासपोर्ट सेवा केंद्र में समय के लिए फॉर्म भरा. मेरा, पत्नी और दोनों बेटियों का. ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर ने एक तारीख को मेरा और पत्नी का समय तय किया और उसमें भी हम दोनों के तय समय में 30 मिनट का अंतर हो गया. उसके अगले दिन का समय मिला दोनों बेटियों के लिए, वहां भी 30 मिनट का अंतर हो गया.
दरअसल, जब पासपोर्ट के लिए फीस भरने की बारी आती है, उसके पहले एक तारीख दिखती है. जैसे ही आप उस तारीख को पक्का करते हैं और डेबिट, क्रेडिट या इंटरनेट बैंकिंग के जरिए फीस भरते हैं, उतनी देर में जितने भी लोग गाजियाबाद पासपोर्ट सेवा केंद्र में अप्वाइंटमेंट लेना चाहते हैं, उन सबको 15-15 मिनट के स्लॉट के आधार पर अपने आप समय मिल जाता है.
इस तरह सुशासन को पहली चोट इंटरनेट के उसी ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर से लगती है, जिसकी वजह से सुशासन बिना कहे लोगों का जीवन आसान कर रहा है. इस ओर सुषमा स्वराज जी अगर ध्यान दें, तो बस इतना करना है कि एक फॉर्म पर चारों लोगों का समय एक साथ मिलने का विकल्प दे दिया जाए. साथ ही चारों फॉर्म की फीस एक साथ या अलग-अलग भरने का विकल्प भी दिया जा सकता है.
जब आधार नंबर है, तो आधार कार्ड क्यों?
सुशासन की कड़ी को और मजबूत करने के लिए अगर आवेदक ने आधार संख्या भरी है, तो उससे आधार कार्ड क्यों मांगा जाना चाहिए? अभी देश भर में राज्यों के और केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के प्रमाणपत्र ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए सिर्फ और सिर्फ वही प्रमाणपत्र मांगा जाना चाहिए. क्योंकि, आधार कार्ड पर तस्वीर के साथ घर का पता भी होता है.
कमाल की बात है कि पासपोर्ट बनवाने के लिए भी दसों उंगलियों के निशान देना जरूरी होता है, जो आधार बनवाते पहले ही दिया जा चुका होता है. आधार और पासपोर्ट दफ्तर आपस में जुड़ जाएं, तो आवेदक के पासपोर्ट दफ्तर में पहुंचते ही सिर्फ एक क्लिक पर उसका वेरीफिकेशन किया जा सकेगा.
ये प्रक्रिया और आसान की जा सकती है
बच्चों के मामले में, उनका आधार कार्ड बना हुआ है और मां-बाप का भी आधार कार्ड है, तो ये प्रक्रिया और आसान की जा सकती है. हमें बच्चों के पासपोर्ट आवेदन के लिए दूसरे दिन समय मिला था. और कागजों को संभालने में पत्नी का आधार कार्ड दूसरे फाइल में रह गया. सिर्फ इसकी वजह से बच्चों के पासपोर्ट आवेदन जांच में B काउंटर पर ही हमारा टोकन रद्द करके सरकारी कर्मचारी ने कहा कि- सोमवार को मां का आधार कार्ड लेकर आना. मैंने कहाकि, मेरे पास आधार कार्ड है और बच्चों का आधार कार्ड है, फिर मां के आधार कार्ड की जरूरत क्या है?
जबकि, मां के आधार कार्ड की फोटोकॉपी भी साथ में लगाई थी. बहुत मिन्नत करने के बाद एपीओ से प्रमाणित कराने के बाद रद्द टोकन दोबारा काउंटर A से इश्यू करवाया. आधे घंटे से ज्यादा का समय खराब हुआ. साथ ही C काउंटर पर जांच बांद में करने के वादे के साथ हमारी एक्जिट रसीद काट दी गई.
पासपोर्ट सेवा केंद्र का काउंटर A और B
पासपोर्ट सेवा केंद्र के A और B काउंटर का जिक्र मैंने क्यों किया है, अब बताता हूं. पासपोर्ट सेवा केंद्र में आवेदक की जांच के लिए 3 चरण हैं- A, B और C. A काउंटर पर ही कागजों की पूरी जांच, उंगलियों के निशान और तस्वीर खींचने का काम होता है. इसका जिम्मा टीसीएस के पास है और कमाल की तेजी से बिना किसी मुश्किल के यहां काम होता है. इसके बाद बारी आती है B और C काउंटर की. इन दोनों काउंटर पर सरकारी कर्मचारी होते हैं. जिन्हें कागज चेक करके सिर्फ प्रमाणित करके आगे बढ़ाना होता है.
इन दोनों काउंटरों पर बैठे सरकारी कर्मचारी ज्यादा काम करने और अतिरिक्त सुविधा शुल्क न मिलने की खुन्नस पासपोर्ट आवेदकों पर निकालते हैं और ऐसी ही खुन्नस हमारे साथ भी निकाली.
सुशासन की असली बत्ती लगाने वाला संदेश हमारे मोबाइल पर आ चुका है. संदेश आया है कि 3 हफ्ते में आपकी जांच करने कोई न आए, तो एसपी दफ्तर संपर्क करें. पासपोर्ट दफ्तर तक की मुश्किलों को दूर करने का काम तो मोदी जी और सुषमा जी कर देंगी. लेकिन, पुलिस तो योगी जी मातहत है. रिश्वत देने की बाध्यता से डरे हम पुलिस वालों की कॉल का इंतजार कर रहे हैं. सुशासन के लिए बेहतर होता कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ किसी तरह का कोई मामला दर्ज ही नहीं है, तो उससे पुलिस वाले को जांच के लिए मिलने या फोन जाने की जरूरत ही क्यों हो ?
इंटरनेट सुशासन का अनकहा जरिया बन रहा है. लेकिन, उसके बाद भी अगर सरकारी कर्मचारी नामक मानव को सामान्य मानव से मिलने का रास्ता खुला रहा, तो अतिरिक्त सुविधा शुल्क के बिना सुशासन महाराज का देश निकाला दिया जाना तय है.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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