शिवसेना (Shivsena) शिंदे गुट और शिवसेना ठाकरे गुट के बीच विधायकों के निलंबन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी लड़ाई लंबे समय तक चलने के आसार हैं. 13 बागी विधायकों के निलंबन को लेकर जो याचिकाएं दायर की गई थी,उसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि तमाम मामलों की सुनवाई के लिए बेंच गठित की जाएगी. यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस एन. वी. रमण ने कहा कि फिलहाल विधानसभा स्पीकर विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं लेंगे और कोर्ट का फैसला आने तक अयोग्यता की कार्यवाही पर रोक रहेगी. उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि अदालत महाराष्ट्र के मामले की तुरंत सुनवाई नहीं करेगी.f
महाराष्ट्र विधानसभा के प्रधान सचिव राजेंद्र भागवत ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि पिछली 3 जुलाई को राहुल नार्वेकर को विधानसभा अध्यक्ष चुना गया है और उन्हें अयोग्यता के मसले पर विचार करना है, इसलिए विधानसभा उपाध्यक्ष की ओर से भेजे गए नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका का कोर्ट फैसला कर दे और नए विधानसभाध्यक्ष को अयोग्यता पर फैसला करने दे. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ के सामने हो रही थी.
कानूनी लड़ाई में अभी कौन कहां खड़ा है?
पूरा मामला अब विधानभवन और राजभवन के गलियारे से निकल कर अदालत के दायरे में आ गया है. शीर्ष अदालत का रुख देखते हुए यह नहीं लगता है कि अगले दो-चार महीने में इस मुद्दे पर कोई फैसला आएगा. एक तरह से सारे बागी विधायकों के लिए यह फौरी राहत है.
अदालत क्या फैसला करती है इसकी धुकधुकी तो सरकार को भी लगी थी और ठाकरे गुट भी चिंता में ही था. अब स्थिति ऐसी है कि ठाकरे गुट तो जहां है वहीं खड़ा है पर शिंदे सरकार को भले कुछ समय के लिए क्यों न हो- काम करने का समय मिल गया है.
इसके बावजूद मुख्यमंत्री एकनाथराव शिंदे और उनका साथ दे रही भारतीय जनता पार्टी के लिए रास्ता आसान नहीं है. शिंदे सरकार के सामने इस समय दो प्रमुख काम हैं- राष्ट्रपति चुनाव और मंत्रिमंडल का गठन. राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को होने जा रहा है. बीजेपी और उसके मित्र दलों की ओर से द्रौपदी मुर्मू प्रत्याशी हैं जबकि विपक्षी दलों की ओर से पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा मैदान में हैं.
राष्ट्रपति चुनाव पर उद्धव की दुविधा
यह तय है कि महाराष्ट्र में शिंदे गुट में शामिल विधायक श्रीमती मुर्मू के पक्ष में मतदान करेंगे लेकिन इसी मुद्दे को लेकर ठाकरे गुट में मतभेद सामने आ गए हैं. कहा जा रहा है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के निवास पर हुई बैठक में शिवसेना के कई सांसदों ने श्रीमती मुर्मू को समर्थन देने की मांग की जबकि राज्यसभा सांसद संजय राऊत की इच्छा है कि पार्टी विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को समर्थन दे.
अंत में तय यह हुआ कि राष्ट्रपति चुनाव में किसे मतदान किया जाए इसका फैसला उद्धव ठाकरे पर छोड़ दिया गया. विधायकों के बागी होने के बाद से शिवसेना के सांसदों का मन भी विचलित दिखाई दे रहा है. इस बैठक में भी 22 सांसदों में से सिर्फ 15 सांसद शामिल हुए. इनमें राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य शामिल हैं.
अनुपस्थित सदस्यों में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र श्रीकांत शिंदे, भावना गवली, संजय जाधव, संजय मांडलिक, हेमंत पाटिल, कृपाल तुमाने और कलाबेन डेलकर प्रमुख थे. उद्धव क्या फैसला लेते हैं यह महाविकास आघाडी के भविष्य को तय कर सकता है.
ठाकरे सरकार ने जाते-जाते औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद जिले का नाम धाराशिव रखने का फैसला किया था. NCP सुप्रीमो शरद पवार को यह फैसला पसंद नहीं आया है और उन्होंने कहा भी है कि इस मामले में गठबंधन को विश्वास में नहीं लिया गया. यदि उद्धव अपने बचे साथियों के दबाव में आकर मुर्मू को समर्थन देने का निर्णय लेते हैं तो आघाडी में फूट दिखाई देने लगेगी. शिवसेना का सबकुछ दांव पर लगा है.
गठबंधन धर्म निभाने के चक्कर में पार्टी सांसद गंवाने का खतरा उठाना उद्धव शायद ही पसंद करेंगे क्योंकि जो सासंद इस समय उनके साथ हैं वे भी कह चुके हैं कि अघाड़ी सरकार में पार्टी को उचित महत्व नहीं मिला है, इसलिए वे चाहते हैं कि शिंदे गुट के साथ चला जाए. दुविधा में फंसे उद्धव की राजनीतिक सूझबूझ की परीक्षा का यह दौर अत्यंत महत्वपूर्ण है.
शिंदे सरकार के सामने भी मसले
शिंदे सरकार तात्कालिक राहत पा तो गयी है, लेकिन उसकी कठिन परीक्षा का समय आ गया है. अभी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भारी खींचतान की संभावना है. जिन लोगों को लेकर शिंदे ने बगावत की थी वे सभी लोग मंत्री बनने की इच्छा रखते हैं. उन्हें यह मालूम है कि सभी लोगों को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है पर कोशिश तो सभी लोग करेंगे.
जिन्हें मंत्री पद मिलेगा वे मलाईदार विभाग के लिए लड़ेंगे और जो खाली रह जाएंगे वो क्या पा सकते हैं, इसकी खोज में रहेंगे. मतलब इन बागियों के अंसतोष के कारण सरकार का सुचारुरूप से चलना बहुत कठिन नजर आता है. लेकिन यह तय है कि भावी असंतुष्ट भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक कोई गड़बड़ नहीं करेंगे. वे यह जरूर जानना चाहेंगे कि उनके लिए उद्धव के पास लौटने का कोई मार्ग या विकल्प खुला है कि नहीं.
बीजेपी में असंतोष
बीजेपी में भी असंतोष का खतरा मौजूद है और कारण भी वहीं है-सब लोग मंत्री बनना चाहते हैं जो मंत्रियों की संख्या सीमा निर्धारित होने के कारण सीमित है. नियमानुसार 288 सदस्यीय विधानसभा में मंत्रियों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती. मतलब मंत्रियों की संख्या 43 से ज्यादा नहीं हो सकती.
शिंदे गुट और बीजेपी में मंत्री पदों के बंटवारे का कोई फॉर्मूला सामने नहीं आया है पर जो खबरें आ रहीं हैं उनके मुताबिक शिंदे गुट से 8 मंत्री और 5 राज्यमंत्री बनाएं जाएंगे और बचे स्थान बीजेपी को जाएंगे.
मुख्यमंत्री शिंदे को तय करना है कि वे अपने साथ आए लोगों में से किसे मंत्री बनाएं जबकि बीजेपी कोटे से मंत्री पद की लॉटरी दिल्ली से निकाले जाने की संभावना है. बीजेपी से कौन मंत्री बनेगा इसका फार्मूला तय हो चुका है. उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस संकेत दे चुके हैं कि उनकी सरकार (2014-2019) के दौरान जिन लोगों का कामकाज (परफार्मेंस) अच्छा था उनके नामों पर विचार किया जा सकता है. नए लोगों को भी मौका मिलेगा. अपने लोगों को मंत्रीपद का लॉलीपॉप दिखाना दोनों नेताओं की मजबूरी है.
अहम सवाल यह है कि मंत्रिमंडल का विस्तार कब होगा? इस समय के हालात देखते हुए यही लगता है कि मंत्रिमंडल का विस्तार राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के बाद ही होगा. यदि पहले विस्तार किया जाता है तो शिंदे गुट के असंतुष्ट विधायक मतदान के समय अपना गुस्सा दिखा सकते हैं, जिसका असर राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ सकता है जो किसी भी हालत में शिंदे सरकार के लिए ही अच्छा संकेत नहीं होगा.
महाराष्ट्र की राजनीति में कानूनी दांवपेंच लंबे समय तक खेले जाएंगे. डोर अब सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है लेकिन इस लड़ाई के फैसले की अनिश्चितता की छाया शिंदे सरकार के कामकाज पर पड़ सकती है.
(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)
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