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महिला सशक्तिकरण के लिए ‘हाई हील’ से आगे बढ़ने की जरूरत 

हाई हील पहनने की वजह से लड़की बेहतर परफॉर्म करने वाली स्टाफ बन जाएगी, यह सोचना गलत है.

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आप पुरुष हैं और हाई हील पहनकर नाच रही लड़की बेशक आपको जंच रही हो (की एंड का फिल्म का पॉपुलर गाना), लेकिन अगर उसने अपनी मर्जी के खिलाफ हाई हील पहनी है और आपने उसे हाई हील शूज या सैंडल पहनने को मजबूर किया, तो बात कानून तक पहुंच सकती है. फिलिपींस में यह हो गया है.

उस खबर ने लोगों को चौंकाया है, जिसमें कहा गया है कि फिलिपींस की सरकार ने कर्मचारियों को हाई हील पहनने को मजबूर करने पर रोक लगा दी है. यानी कोई स्टोर या होटल या ऑफिस किसी महिला स्टाफ को यह नहीं कह सकता है कि वे हाई हील पहनकर ही आए. एक इंच से अधिक ऊंची हील को हाई हील की कटेगरी में रखा गया है.

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पहली नजर में यह बात मामूली लग सकती है, लेकिन महिला अधिकारों और मानवाधिकार के नजरिए से यह एक बड़ी जीत है. इसका महत्व सिर्फ इस मायने में नहीं है कि महिलाओं को दस-दस घंटे तक लगातार हाई हील पहनने की मजबूरी से फिलिपींस में छुटकारा मिल गया है और इससे उनके टखनों और पैर को वह दर्द नहीं होगा, जिसकी वजह हाई हील है.

स्वास्थ्य की दृष्टि से इस फैसले का बेशक महत्व है. इससे महिलाओं के घुटने खराब होने का प्रतिशत घटेगा और जोड़ों के दर्द से भी छुटकारा मिलेगा.


हाई हील पहनने की वजह से लड़की बेहतर परफॉर्म करने वाली स्टाफ बन जाएगी, यह सोचना गलत है.
दस-दस घंटे तक लगातार हाई हील पहनने की मजबूरी से फिलिपींस में छुटकारा मिल गया है
( फोटो:iStock )
इस फैसले का बड़ा महत्व इस मायने में है कि महिलाओं को इस लांछन से मुक्ति मिलेगी कि सेल्स टीम, फ्रंट ऑफिस तथा वेलकम डेस्क जैसी जगहों पर महिलाओं को इसलिए रखा जाए कि वे सेक्सी और लंबी नजर आएं.

यह धारणा सिर्फ फिलिपींस में नहीं है कि हाई हील पहनकर लड़कियां सेक्सी दिखती हैं और ऐसा करके वे पब्लिक डिलिंग वाले कुछ पोजिशन पर बेहतर काम कर सकती हैं. इसलिए फिलिपींस में होटल रिसेप्शनिस्ट और मॉल की सेल्स गर्ल जैसी जॉब में काम करने वाली महिलाओं को हाई हील पहनने को मजबूर किया जाता था.

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वहां की सरकार के फैसले के बाद, अब स्थिति बदलेगी.

लेकिन यह समस्या सिर्फ फिलिपींस की नहीं है. यह पुरुष मानसिकता से जुड़ी समस्या है, जिसमें यह बात सहज बन जाती है कि लड़की सेक्सी नजर आएगी, तो बिजनेस में मदद मिलेगी. और वह क्या करके सेक्सी नजर आएगी, यह भी पुरुष नजरिए से ही तय होगा.

भारत में भी महिलाओं को सेल्स के काम में लगाने के पीछे यही मानसिकता काम करती है.

इस तरह की सोच में समस्या यह है कि बात किसी लड़की के सेल्स स्किल की नहीं हो रही है. यह मुमकिन है कोई लड़की बेहतर सेल्सवीमन हो या फ्रंट ऑफिस संभालती हो, लेकिन ऐसा होना उसके लड़की या सेक्सी होने की वजह से है, यह कहना उस लड़की की क्षमताओं का अपमान है.

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हाई हील पहनने की वजह से लड़की बेहतर परफॉर्म करने वाली स्टाफ बन जाएगी, यह सोचना दोषपूर्ण है.



हाई हील पहनने की वजह से लड़की बेहतर परफॉर्म करने वाली स्टाफ बन जाएगी, यह सोचना गलत है.
भारत जैसे देश में यह मामला और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या काफी कम (सिर्फ 27 फीसदी) है
( फोटो:iStock )

भारत जैसे देश में यह मामला और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या काफी कम (सिर्फ 27 फीसदी) है. यह आंकड़ा ब्रिक्स देशों में सबसे कम है. यही नहीं, वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2005 से 2012 के बीच काम में लगी महिलाओं की संख्या भारत में लगभग दो करोड़ कम हो गई.

देश की आबादी के आधे हिस्से का कामगारों में शामिल न होना देश के विकास के लिए एक बड़ी बाधा है. वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने भर से भारत की जीडीपी में एक लंबी छलांग लग सकती है और परिवारों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी.

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इसके लिए देश में सांस्कृतिक स्तर बदलाव की जरूरत है. महिलाओं को ग्लैमर की वस्तु के तौर पर न देखकर उनकी क्षमताओं का मूल्यांकन ऑब्जेक्टिव तरीके से होना चाहिए. महिलाओं के लिए काम करना एक सहज कार्य होना चाहिए. वर्क प्लेस को ऐसी जगह होना चाहिए, जहां महिलाओं की सेहत को प्राथमिकता दी जाती हो और जहां काम करने में महिलाओं को असहज महसूस न करना पड़े.

फिलिपींस ने हाई हील की मजबूरी को खत्म करके इस दिशा में एक कदम उठाया है. भारत में स्त्री-पुरुष समानता की लड़ाई और कठिन है क्योंकि महिलाओं का दोयम दर्जे पर होने को सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है.

नीति आयोग के 2017-2020 एजेंडा पेपर में कहा गया है कि भारत में समान काम के लिए महिलाओं को वेतन कम मिलता है और उन्हें कम उत्पादक कार्यों में लगाया जाता है. साथ ही उन्हें घर-परिवार के उन कार्यों में ज्यादा लगाया जाता है, जिनके लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता. भारत के समग्र विकास के लिए जरूरी है कि इन स्थितियों को बदला जाए.

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हाई हील प्रकरण में यह सबक भारत के लिए भी है.



हाई हील पहनने की वजह से लड़की बेहतर परफॉर्म करने वाली स्टाफ बन जाएगी, यह सोचना गलत है.
हाई हील के कई तरह के असर हो सकते हैं
( फोटो:iStock )

वैसे भी हाई हील के कई तरह के असर हो सकते हैं. एक स्थिति की कल्पना कीजिए कि किसी ऑफिस में आग लग जाए या भगदड़ की स्थिति बन जाए, तो हाई हील पहनने वाली महिलाएं शूज पहनने वालों के मुकाबले किस तरह घाटे में रहेंगी.

बात सिर्फ हाई हील की नहीं है. सुंदरता के मापदंडों को पाने के लिए महिलाओं को अपने स्वास्थ्य से भी समझौता करने को सिखाया जाता है. मिसाल के तौर पर, पैडेड या वायर्ड ब्रा स्तन के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं.

लेकिन यह शहरी महिलाओं में बेहद आम है, ताकि उनके वक्ष एक खास आकार में दिखें, जिसे सुंदर माना जाता है. टाइट जींस की वजह से घुटने मोड़ने में होने वाली दिक्कत लॉन्ग टर्म में स्वास्थ्य से भारी कीमत वसूल सकती है. इसी तरह लगातार एक कंधे पर भारी बैग उठाना भी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है. बात हाई हील से आगे बढ़नी चाहिए.

(दिलीप मंडल सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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