एक वो दौर था जब भारतीय क्रिकेट टीम के पास न कोच होता था, न ट्रेनर और न ही फिजियो जैसे सपोर्ट स्टाफ. फिर भी 1971 में हमने वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज जीती, 1983 में विश्व कप जीता और 1986 में इंग्लैंड में भी सीरीज जीत ली. जैसा कि कहा जाता है, आपको वक्त के साथ बदलना होता है.
अगर हम विश्व क्रिकेट के इतिहास की ओर झांकें तो जो एक बात शुरू से बरकरार है वो है सिर्फ बैट, गेंद और स्टंप्स. नब्बे के दशक में भारतीय टीम ने अपने पहले प्रोफेशनल कोच के तौर पर अजित वाडेकर को देखा. इसके बाद कई कोच आए और गए, लेकिन इनमें से दो बेहद सफल रहे. न्यूजीलैंड के जॉन राइट और साउथ अफ्रीका के गैरी करस्टन. इन दोनों ने ही भारतीय टीम को विश्व के मंच पर लोकप्रियता दिलाने में काफी मदद की.
बात कप्तान और कोच की जोड़ी की करें, तो अजहर और अजित वाडेकर की जोड़ी हिट थी. इसके बाद सौरव गांगुली और जॉन राइट की जोड़ी बनी और फिर महेंद्र सिंह धोनी और करस्टन की. इन सबने काफी अच्छे नतीजे दिए. धोनी और करस्टन की जोड़ी ने हमें दूसरे विश्व कप की जीत का तोहफा भी दिया.
अब विराट कोहली और रवि शास्त्री की जोड़ी भारतीय क्रिकेट टीम की अगुवाई कर रही है. शास्त्री के साथ मेरी लंबी दोस्ती रही है. हमारे बीच की कुछ शानदार यादें हैं. ये यादें क्रिकेट के मैदान की और उसके बाहर की भी हैं. चाहे वो हमारी ऑफिस की टीम हो या मुंबई रणजी टीम या फिर भारतीय क्रिकेट टीम की.
पहले दिन से रवि शास्त्री की जो बात मुझे अच्छी लगी, वो उनका खुद में अपार भरोसा है. वो कभी हार न मानने वाले इंसान हैं, लेकिन उनकी जो बात मुझे पसंद नहीं है वो है उनका कुछ मौकों पर दिखने वाला अहंकार, लेकिन सच ये भी है कि आज के प्रोफेशनल दौर में लोगों के पास दूसरों को खुश करने का मौका ही कहां होता है.
रवि हमेशा अपने काम पर फोकस रखने वाले और लगातार सोचते रहने वाले क्रिकेटर रहे. यही वजह है कि बल्ले और गेंद से अपनी सीमित क्षमता के बावजूद वे 1984 में चैंपियन ऑफ चैंपियंस का खिताब जीतने में कामयाब रहे. वे कभी भी आकर्षक खिलाड़ी नहीं रहे लेकिन टीम के लिए कारगर खिलाड़ी जरूर रहे और यही आखिरकार मायने भी रखता है.
रवि में रही वास्तविकता का सामना करना और मुश्किलों को चुनौती देने की क्षमता
क्रिकेट के मैदान पर अपने आखिरी दिनों में उन्होंने दर्शकों को चुनौती देने और अपने प्रदर्शन के बूते एक मैच जीतने की बड़ी लड़ाई लड़ी. हर क्रिकेटर की जिंदगी में अच्छे और बुरे दिन आते हैं. हर क्रिकेटर के करियर में उतार-चढ़ाव आते हैं. बस, उसमें इस वास्तविकता को सामना करने का माद्दा होना चाहिए.
पुछल्ले बल्लेबाज के तौर पर करियर की शुरुआत कर देश के लिए पारी की शुरुआत करने वाला बल्लेबाज बन जाना खुद में रवि शास्त्री के जज्बे को दिखाता है. क्रिकेट से रिटायर होने के बाद वे अकसर हमें टेप रिकॉर्डर पर कमेंट्री करने की अपनी प्रैक्टिस सुनाकर बोर किया करते थे, लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि जब वो एक बार कुछ करने की ठान लेते तो फिर उसमें खुद को झोंक देते थे. पिछले दो दशक में हर किसी ने उन्हें एक चैंपियन कमंटेटर के तौर पर देखा और महसूस किया होगा.
रवि शास्त्री का असल एसिड टेस्ट अब शुरू होता है
मेरा मानना है कि रवि का असली एसिड टेस्ट अब शुरू हुआ है, उन्होंने अपना क्रिकेट का जूता फिर से पहन लिया है, लेकिन इस बार मौजूदा भारतीय टीम के कोच के रूप में. मेरी सोच है कि इस रोल में रवि अपने लंबे अनुभव और खेल की बारिकियों की समझ के बूते टीम को बहुत कुछ दे सकते हैं. इस रूप में वे भारतीय कप्तान और बाकी टीम के प्रिय हो सकते हैं और मैं ईमानदारी के साथ इस बात की आशा करता हूं कि वे अपने रोल में कामयाब होंगे. असल में क्रिकेट एक बहुत ही क्रूर खेल है. आप एक दिन हीरो तो अगले ही दिन जीरो हो सकते हैं.
मैंने भी अलग-अलग राष्ट्रीय टीमों को 22 साल तक कोचिंग दी है. इस काम में आपको बेइंतहां धैर्य और खिलाड़ियों को मैनेज करना सीखना पड़ता है. एक खिलाड़ी को अनुशासित करने से पहले आपको खुद अनुशासित होना पड़ता है. भारतीय टीम का घर में रिकॉर्ड हमेशा अच्छा रहा है लेकिन बाहर के मैदानों हमारा प्रदर्शन ठीक नहीं रहा है.
ऐसे में सवाल है कि क्या रवि इस इंग्लैंड टूर में इस मिथक को तोड़ पाएंगे?
रवि हमेशा ओवरकॉन्फिडेंट रहे
एक कोच के रूप में मैं कह सकता हूं कि कोच का काम बाउंड्री लाइन तक सीमित रहता है. वो रणनीति बना सकता है, नए आइडिया दे सकता है, खिलाड़ियों में भरोसा बढ़ा सकता है, उन्हें निर्देश दे सकता है, नेट सेशन रख सकता है और दूसरी कई और चीजों पर चर्चा कर सकता है, लेकिन आखिरकार मैदान के बीच में टीम का प्रदर्शन ही मायने रखता है.
रवि हमेशा ओवरकॉन्फिडेंट इंसान रहे हैं, लेकिन क्रिकेट के खेल में ये कोई बुरी बात नहीं है. उन्होंने मैदान में गेंदबाजों के खिलाफ और मैदान से बाहर मीडिया के खिलाफ कई लड़ाइयां जीती है. पिछले दिनों उन्हें एक लंबे आराम के अंतराल का गिफ्ट भी मिल चुका है. यही वजह है कि उन पर अगले 6 महीने कुछ बहुत बेहतर देने का दबाव है और इसमें मौजूदा इंग्लैंड सीरीज भी शामिल है, जिसमें टीम फिलहाल एक शून्य से पीछे है.
अगले 6 महीनों में भारतीय टीम को एक के बाद एक सीरीज खेलनी है. ये सीरीज घर और बाहर दोनों जगह होनी है. इसके ठीक बाद विश्व कप आ जाएगा. ये भी बमुश्किल 10 माह दूर है और इसमें कोई भी सिर्फ पॉजिटिव कमेंट से नहीं जीत सकता. जीत सिर्फ अच्छे प्रदर्शन से मिलेगी. सभी निगाहें कोच रवि शास्त्री पर टिकी होंगी और उनसे कुछ बहुत खास देने की उम्मीद रहेगी.
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