बिहार में एनडीए के दो सहयोगियों बीजेपी और जेडीयू के बीच दूरियां लगातार बढ़ती ही जा रही है. कार्यकारिणी की बैठक बाद जेडीयू ने जो बड़े संकेत दिए वो यही बताते हैं कि सहयोगियों के बीच कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है. रविवार की बैठक के बाद जेडीयू ने दोहराया कि आर्टिकल 370 और यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पार्टी बीजेपी के रुख से बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखती है.
साथ ही यह बयान भी कि बीजेपी के साथ सहयोग सिर्फ बिहार में है, दूसरे राज्यों में दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हैं. यह भी साफ बताता है कि सहयोगियों में तल्खी बढ़ने ही वाली है.
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर दोनों सहयोगियों के बीच गरमागरमी चल ही रही है. ममता बनर्जी से किशोर की मुलाकात के बाद बीजेपी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है, तो जेडीयू इसके लिए तैयार नहीं है.
पीके- ममता का साथ, बीजेपी को नहीं आ रहा रास
दरअसल, ममता बनर्जी ने बीते हफ्ते प्रशांत किशोर के साथ मुलाकात की थी. बैठक में बनर्जी ने साल 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में किशोर और उनकी कंपनी I-PAC (आईपैक) की सेवाएं लेने की पेशकश की और बताया जा रहा है कि किशोर ने इसके लिए हामी भी भर दी है.
हालांकि, बंगाल में अपने पैर पसारने में जुटी बीजेपी को यह बात मंजूर नहीं है. पार्टी नेताओं के मुताबिक उनके सहयोगी दल का उपाध्यक्ष उनके खिलाफ कैसे काम कर सकता है. यह गठबंधन धर्म के खिलाफ है और नीतीश कुमार को इस बारे में तुरंत कदम उठाना चाहिए.
हालांकि, नीतीश कुमार इस दबाव में नहीं दिखना चाहते हैं. इसीलिए इस बारे में उन्होंने कार्रवाई से साफ इनकार कर दिया है. यहां तक कि रविवार को जब जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, तो उन्होंने किशोर को अपने पास बिठाया. साथ ही, अब तक इस बाबत उठ रहे सवालों से किशोर का बचाव भी कर रहे हैं.
जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश ने कहा,
‘‘अब इन सवालों का कोई मतलब नहीं रह गया है. व्यक्ति और उसकी कंपनी को एक-दूसरे से जोड़कर देखना गलत है. जब वह (किशोर) पार्टी में रहते हैं, तो पार्टी के लिए काम करते हैं. बाकी वह अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हैं.’’
दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब किशोर को लेकर बीजेपी और जेडीयू में ठनी हो. नीतीश कुमार ने बीते साल बड़े धूमधाम से किशोर को जेडीयू में शामिल किया था. नीतीश कुमार ने खुद अपने हाथों से किशोर को सदस्यता दिलाई थी. साथ ही, उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष की कुर्सी और नंबर दो का दर्जा भी दिया. बीजेपी के नेताओं को उस वक्त भी यह बात नागवार गुजरी थी. हालांकि, सूबे के विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों के दौरान किशोर की सक्रिय भूमिका ने दोनों दलों के बीच का विवाद अपने चरम पर पहुंच गया था..
यहां तक की बीजेपी नेताओं ने प्रशांत किशोर पर विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में धांधली तक के आरोप लगाए थे और इसकी शिकायत नीतीश कुमार से भी की थी.
लोकसभा चुनाव में बिहार से बाहर रहे प्रशांत किशोर
आम चुनाव की आहट के साथ ही किशोर बिहार से गायब हो गए थे. उस वक्त उनका पूरा ध्यान आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी के चुनाव अभियान पर था. आंध्र के विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस की जबरदस्त सफलता के बाद किशोर ममता बनर्जी के रडार पर आए.
हालांकि, आम चुनाव में बंगाल में मिली बड़ी कामयाबी के बाद बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए काफी उत्साहित है. इसीलिए पार्टी को किशोर और ममता के साथ आने पर बड़ा ऐतराज है. बीजेपी के एक नेता ने कहा, ‘‘आंध्र की बात अलग है, वहां हमारा पहले भी कोई आधार नहीं था. बंगाल में तो हमारा उदय तेजी से हो रहा है. ऐसे में हमारे सहयोगी दल का नेता हमारे ही खिलाफ काम करे, ये बात कैसे बर्दाश्त की जा सकती है?’’
नीतीश के लिए तुरुप का पत्ता बन गए हैं पीके
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर का इस्तेमाल बीजेपी पर लगाम कसने के लिए कर रहे हैं. जेडीयू के एक बड़े नेता ने कहा, ‘‘हम अलग पार्टी हैं. हमारे अलग फैसले होंगे. हम पर किसी प्रकार का दबाव डालने की कोशिश न हो. हमने कभी बीजेपी से गिरिराज सिंह जैसे नेताओं को बाहर निकालने के लिए नहीं कहा है.’’
वहीं, अगले साल के अंत में तय बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कई दिग्गज मानते हैं कि नीतीश कुमार इस वक्त किशोर पर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. राज्य सरकार के एक मंत्री ने बताया,
‘‘नीतीश जी के फैसलों के बारे में नीतीश जी ही जानते हैं. हालांकि, बड़ी बाजी में कौन अपने तुरुप के पत्ते का इस्तेमाल नहीं करना चाहता? विधानसभा चुनाव में बमुश्किल एक-सवा साल का वक्त बचा है. चुनावी रणनीति में किशोर की कुशलता का इस्तेमाल कुमार करना चाहेंगे. साथ ही, किसी ‘दुर्घटना’ की स्थिति में किशोर नए साझेदारों को साथ लाने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.’’
बीजेपी-जेडीयू के बीच बढ़ते मतभेद का एक मैसेज साफ है, नीतीश कुमार अपने सहयोगियों में अपने टर्म पर ही रखना चाहते हैं. राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव तक तो ऐसा होने ही वाला है.
(निहारिका पटना की जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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