गुरुवार की रात पटना में मौसम तो गर्म था, लेकिन पटना में खाने के टेबल पर बैठे एनडीए नेता ठंडे-ठंडे ही दिख रहे थे. मौका था बीजेपी की ओर से पटना में सहयोगी दलों के लिए आयोजित भोज का, लेकिन डिनर डिप्लोमेसी भी तनाव को कम न कर पाई. सभी साथ तो बैठे, लेकिन दिलों की दूरियां नहीं मिट पाईं. ऊपर से आरएलएसपी सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा की नामौजूदगी ने “ऑल इज वेल” का दावा करने वाले बीजेपी नेताओं के खाने का स्वाद बिगाड़ दिया.
नारेबाजी से दिखी खींचतान
इस डिनर का मकसद तो एनडीए की एकजुटता दिखाना था, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट. एनडीए के नेता खेमों में बंटे नजर आए. मसलन, केंद्रीय मंत्री और एलजेपी अध्यक्ष राम विलास पासवान की एंट्री के साथ ही उनकी पार्टी के नेता “गूंजे धरती-आसमान, रामविलास पासवान” का नारा लगाया, तो जबाव में आरएलएसपी नेताओं ने “उपेंद्र कुशवाहा जिंदाबाद” का नारा लगाना शुरू कर दिया. देखा-देखी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आने पर जेडीयू नेताओं ने भी “एनडीए का नेता कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो” का नारा बुलंद किया.
'बड़ा भाई' बनने की मांग
दरअसल, एनडीए में कौन 'बड़ा भाई' बनेगा, इस एक सवाल ने बीजेपी के इस डिनर डिप्लोमेसी को तार-तार कर दिया. नीतीश कुमार की जेडीयू अपने लिए 'बड़े भाई' का दर्जा और अगले साल के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 में से 25 सीटों की मांग कर रही है. पार्टी नेता के सी त्यागी और श्याम रजक ने साफ कर दिया है कि जेडीयू इससे कम सीटों पर नहीं मानेगी. त्यागी ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर पार्टी को कम सीटें मिली, तो तालमेल नहीं हो पाएगा. वहीं, रजक ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार में सभी 40 सीटों पर अपनी तैयारी कर रही है.
उन्होंने कहा, “हम अपना हक मांग रहे हैं, कोई भीख नहीं. बिहार में वोट नीतीश कुमार के चेहरे और काम पर मिलता रहा है. इससे पहले भी बिहार में एनडीए को 2009 और 2010 में तीन चौथाई से ज्यादा सीटें नीतीश कुमार के काम की वजह से मिली हैं.”
आरएलएसपी अपनी मांग पर अड़ी है
दूसरी ओर, कुमार की धुर विरोधी आरएलएसपी अगले विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की मांग पर अड़ी हुई है. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि कुशवाहा ने दो टूक शब्दों में कहा कि वे कुमार को बिहार में एनडीए का नेता नहीं मानते. उन्होंने कहा, “बिहार के नेता का चुनाव पर फैसला एनडीए करेगा, सिर्फ दो पार्टी नहीं. उपेंद्र कुशवाहा सामाजिक न्याय के सबसे लोकप्रिय नेता हैं.” वैसे, सूबे में कुशवाहा और लालू प्रसाद की हालिया नजदीकियों को लेकर भी चर्चाएं भी आम हैं. वहीं, पासवान की एलजेपी 2019 में 10 सीटों पर दावेदारी ठोक रही है.
बीजेपी का कोई भी वरिष्ठ नेता इस बारे में खुलकर कुछ भी नहीं कह रहा है. आधिकारिक तौर पर पार्टी के नेता यही कह रहे हैं कि सभी विवाद का हल मिल-बैठकर हो जाएगा. हालांकि, सूत्रों की मानें तो पार्टी नेतृत्व बिहार एनडीए में इस अंदरूनी जूतम-पैजार से खुश नहीं हैं. उनके मुताबिक पार्टी नेतृत्व किसी भी हालत में ‘छोटे भाई’ की भूमिका में नहीं रहना चाहती, बल्कि अब बराबर की हिस्सेदारी चाहती है.
बीजेपी के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “2009 के लोकसभा चुनाव में हमें 13 फीसदी वोटों के साथ 12 सीटें मिली थी, जबकि 2014 में हमने अकेले अपने दम पर 29 फीसदी वोट और 22 सीटें हासिल की. 2015 में भी हमें ही सबसे ज्यादा वोट मिले. इसीलिए किसी को इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि आज बिहार में 'बड़ा भाई' कौन है. हम मिल बैठकर समस्याओं का हल करना चाहते हैं, लेकिन हमें कोई कमजोर समझने की भूल भी न करे”
‘नीतीश के पास विकल्प सीमित हैं’
दूसरी तरफ, ज्यादातर राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक जेडीयू भले ही दावा 25 सीटों का करे, लेकिन आखिरकार पार्टी को झुकना पड़ सकता है. एक बीजेपी विधायक ने कहा, “नीतीश जी के पास विकल्प सीमित हैं. अब क्या वे वापस महागठबंधन में जाएंगे? पहले तो लालू-राबड़ी उन्हें आने नहीं देंगे. अगर वे वापस चले भी गए, तो रही-सही इज्जत भी चली जाएगी. हमें भरोसा है कि वे मान जाएंगे. अगर 2014 या 2015 के फॉर्मूले पर तैयार नहीं हुए, तो 2019 के लिए नया फॉर्मूला बनाया जाएगा. हालांकि, अब 10 साल पुराने फॉर्मूले पर वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता है. आखिर वोट तो नीतीश कुमार भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मांगेंगे न.”
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