10 साल की उम्र. ढंग से फुल पैंट पहनना भी नहीं शुरू किया था. नए स्कूल में एडमिशन हुआ, लेकिन कई दोस्त पुराने थे. इसलिए डर कम लग रहा था. प्रेयर के बाद सब बच्चे क्लास में आ चुके थे. क्लास में मछली बाजार की तरह हंगामा हो रहा था. तब ही किसी के आने की आहट होती है. सैंडिल की ठक-ठक कानों में पड़ते ही पूरी क्लास में मानो कर्फ्यू लग गया हो. हर तरफ खामोशी.
जिस तरह कर्फ्यू में पुलिस फ्लैग मार्च करती है तब पूरा इलाका शांत तो होता है, लेकिन सिर्फ पुलिस के डंडे और जूते की खटखट सुनाई देती है, ठीक वैसा ही माहौल था क्लास में. धीरे-धीरे वो खट-खट और तेज हो गई और फिर हमारे सामने थीं नीले रंग की साड़ी, उंगलियों में ब्लैक नेल पेंट. क्रीम कलर का बैग लिए हमारी क्लास टीचर.
भले ही पूरी क्लास के लिए कर्फ्यू जैसा माहोल हो, लेकिन मेरे लिए शाहरुख खान की ‘मैं हूं ना’ में सुष्मिता सेन की एंट्री से कम नहीं था वो पल.
तराशी हुई नाक, बड़ी-बड़ी आंखें, माथे पर करीने से छलछला आईं पसीने की चंद बूंदें....और फिर आवाज आती है गुड मॉर्निंग बच्चों..
ये क्रश या वन साइडेड लव का मतलब क्या होता है?
उस वक्त मुझे क्रश या वन साइडेड लव का मतलब क्या होता है ये भी नहीं पता था. मैं उस वक्त पांचवीं में था. यहां तक कि ‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन.. जब प्यार करे कोई... जैसे गानों का मतलब भी नहीं पता था.
मैं क्लास में नया था, इसलिए मैम की नजर मुझ पर पड़ी, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं. अब बारी थी अटेंडेंस की. एक एक कर वो सुरीली आवाज में रोल नंबर पुकारतीं और फिर टें पें वाली आवाज में प्रेजेंट मैम, यस मैम की आवाज आती. मेरा रोल नंबर सेकंड लास्ट था. अब मेरी बारी थी. तब ही आवाज आई रोल नंबर 55. बस खुशी रोके ना रुकी. मैंने जोर से कहा यस मैम. फिर क्या था मैम ने मेरी तरफ देखा और कहा “कम हियर, आर यु न्यू इन द क्लास?” अब मेरी आवाज मानो गले के अंदर ही फंस गई थी. पूरी ताकत से कहा-यस मैम. फिर भी आवाज उन तक नहीं पहुंची.
हिम्मत कर के उनके पास गया. नाम मेरा ऐसा है जिसका उच्चारण करना थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए मैंने अपना नाम बताया ताकि कम से कम वो तो सादाब या मोईजी ना बुलाए.
कहानी यहीं से शुरू होती है. मेरी नजर में क्लास की लड़कियों में ना ही वो डीसेंसी था ना ही वो स्टाइल. जो मैम में था.
इंग्लिश हमको आती नहीं थी और हम इंग्लिश को भाते नहीं थे
मेरी इंग्लिश लालू यादव की इंग्लिश से कम नहीं थी, समझता सब था बस सुनने वालों की हंसी निकल जाती थी. मैम इंग्लिश में ही बात करती थीं. मेरे लिए दिक्कत ये थी कि अगर उनसे बात करनी है तो इंग्लिश बोलनी होगी. नहीं तो सुमित और अभिनव में से कोई एक मैम को इम्प्रेस कर देगा. क्योंकि उन दोनों की इंग्लिश बुलेट ट्रेन की तरह थी.
लेकिन हम भी किसी से कम नहीं थे. जब मैम से बात करनी हो या कुछ पूछना हो तो शुरू की 3 लाइन कॉल सेंटर में बैठे कस्टमर केयर वालों की तरह रट लेता. बाकी फिर तो हम हिंदुस्तान में ही थे. और तो और यहां लोग इंग्लिश बोलते हुए भी अाखिरी में ‘है न’ लगा देते हैं तो फिर यहां तो हम छोटे शहर में ही थे.
क्रश का भी कैंडी क्रश जैसा हाल हो गया
टीचर से क्रश भी कैंडी क्रश गेम की तरह होता है. हर लेवल पर गेम टफ होता जाता है. जिस तरह से कैंडी क्रश में लेवल पार करने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों के पास नोटिफिकेशन भेजना होता है ठीक वैसा ही यहां भी हुआ. कैंडी क्रश की तरह आपके दोस्त, क्लास मेट और स्कूल के बाकी टीचर्स तक वाया कुछ चुगलखोर बच्चों के नोटिफिकेशन पहुंचने लगा था.
लेकिन बचपन में किसी को पसंद करने के अपने ही फायदे होते हैं. पकड़े जाओ तो सॉरी मैम आप तो मेरी बेस्ट टीचर हैं, नहीं पकड़े गए तो बस गाड़ी चलती जाती है.
कंप्यूटर ना होता तो पहला क्रश वहीं ‘क्रश’ हो जाता
प्रिया मैम हमें कंप्यूटर पढ़ाया करती थीं. इसलिए कंप्यूटर से लगाव बढ़ता चला गया.
जब भी कंप्यूटर का नाम आता है राजीव गांधी को थैंक्स कहने का मन करता है. कहते हैं हिंदुस्तान में डिजिटल लिटरेसी की नींव उन्होंने ही रखी थी. अगर राजीव गांधी कंप्यूटर नहीं लाए होते तो हमें प्रिया मैम कहां से मिलती.
उनके मोटिवेशन ने ही पहला ईमेल आईडी बनाने को मजबूर किया. shadab4u@yahoo.co.in उस वक्त yahoo और रीडिफ पर नए लोगों से बिना जान पहचान के चैट करने का ऑप्शन हुआ करता था. कई बार कोशिश हुई कि मैम से भी बात हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
कंप्यूटर पर पेंट, एक्सेल फाइल, HTML ये सब सीखना शुरू हो चुका था. लेकिन अब अपने कंप्यूटर में वायरस आने की देरी थी. किसी ने बताया मैम अब नहीं आएंगी. क्योंकि उनकी कहीं और जॉब लग गई है. ये सुनते ही मेरे दिमाग का सिस्टम हैंग कर गया था. अब कंप्यूटर के सामने बैठने से आंखों में जलन शुरू हो गई थी. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे फिर से मानो किसी ने मेरे सिस्टम में एंटी वायरस डाल दिया हो.
“एक बात याद रखना कंप्यूटर ही फ्यूचर है”
हुआ ये कि मैम एक दिन अपना कोई पेपर लेने स्कूल आई थीं. तब ही मेरी नजर उनपर पड़ी. मैं भागते हुए उनके पास पहुंचा और पूछा, “आप कहां चली गई थीं?”
उन्होंने कहा,
मेरी घर के नजदीक ही एक स्कूल में जॉब लग गई है. इसलिए अब नहीं आ सकूंगी. लेकिन तुम अच्छे से पढ़ना. और एक बात याद रखना कंप्यूटर ही फ्यूचर है. लोग इनफार्मेशन के लिए न्यूज पेपर नहीं बल्कि इंटरनेट पर ही आएंगे.
और आज का दिन है, उनकी बात सच होती दिख रही है.
यहां तक कि अब मैं भी इसी इंटरनेट और कंप्यूटर की दुनिया के डिजिटल मीडिया में काम कर रहा हूं. थैंक्स मैम. हैप्पी टीचर्स डे.
मोरल ऑफ द स्टोरी- टीचर पर क्रश आपको कामयाबी के रास्ते पर ले जा सकता है. अगर आप उस टीचर के कहे पर सच्चे दिल से अमल करें.
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