वो भारत के सबसे कामयाब लोग हैं. वो बहुत मजे में हैं. देश की दिक्कतें उन्हें छू नहीं सकतीं. लेकिन अब उन्हें इस बात की दिक्कत है कि जो हवा उन्हें सांस में लेनी है, उसे वो किसी और देश से उठाकर भारत नहीं ला सकते. यहीं आकर उनकी सीमा सामने आ गई है. वरना वो अपना सारा बंदोबस्त कर लेते हैं. वो सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थाओं पर निर्भर नहीं हैं.
हालांकि हवा का भी बंदोबस्त करने की कोशिश वो करते हैं. मास्क और एयर प्यूरीफायर तो मामूली बात है. खराब आबोहवा वाले दिनों को देखते हुए उनमें से कई ने लंबी छुट्टी ले ली है और कहीं और उड़ गए हैं. लेकिन भारत के संसाधन से उन्हें मतलब है. इसलिए यहां रहने की मजबूरी है और यहां की हवा भी उन्हें सांस में लेनी पड़ रही है. वरना उन्हें इस देश का कुछ भी पसंद नहीं है.
महानगरों की हवा खराब करने वाला कौन?
महानगरों की हवा खराब करने में भी इनका बड़ा योगदान है. बिल्डर होने के नाते उन्होंने पेड़ काटकर घर और ऑफिस बना दिए हैं. पर्यावरण इनकी प्राथमिकता में कभी नहीं था. जो कुछ इन्होंने बनाया, उनमें ऊर्जा की खपत बहुत ज्यादा है. एसी और फ्रिज लगातार खतरनाक गैस वातावरण में छोड़ रहे हैं. इन लोगों में एक परिवार में परिवार के सदस्यों से ज्यादा गाड़ियां हैं, जो ढेर सारा पेट्रोल और डीजल पीती हैं और पीकर जहरीली गैस छोड़ती हैं.
ये बहुत ज्यादा कचरा पैदा करते हैं और उसका निपटारा कैसे होगा, यह उनकी चिंता का विषय नहीं. ज्यादा चिंतित होने पर वो सरकार को गाली दे देते हैं. लेकिन यह भी वो कम करते हैं. वो इसके लिए आम जनता को दोषी ठहरा देते हैं.
मिसाल के तौर पर, इन सर्दियों में दिल्ली की खराब हवा के लिए उनका विलेन हरियाणा और पंजाब का किसान है. उनके हिसाब से किसान इस समय अपने खेतों में धान की पराली यानी पुआल यानी धान के पौधे के नीचे के हिस्से को जलाता है, इसलिए सारी समस्या आ रही है. लेकिन उसके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि पराली तो कई साल से जलाई जा रही है, और जहां जलाई जा रही है, वहां की हवा तो इतनी गंदी नहीं है, तो ऐसी बातों पर वह बात करने से ही इनकार कर देता है.
दरअसल उसका वश चले, तो वह सांस लेने के लिए विदेश से कोई पाइप लगा ले. यहां का कुछ उसे पसंद ही नहीं है और जिसका वह इस्तेमान नहीं करता, उस सुविधा या व्यवस्था के ठीक रहने की कोई संभावना ही नहीं बचती. देश उन्हीं के लिए चल रहा है. वही देश चला रहे हैं.
उन्हें इस देश की सड़कें नापसंद हैं. वो ज्यादातर सफर हवाई जहाज से करते हैं और हो सके तो हवाई जहाज से सिटी सेंटर तक आने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तमाल करते हैं.
जो नेता, ब्यूरोक्रेट, बिजनेसमैन, प्रोफेशनल्स देश चला रहे हैं, वह मजबूरी में ही सड़कों का इस्तेमाल करता है, ऐसे में भारतीय सड़कों का बुरा हाल होना तय है.
उन्हें इस देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. वो सुरक्षा का अपना इंतजाम करते हैं. भारत का तेजी से फलता-फूलता प्राइवोट सिक्योरिटी मार्केट के वो बड़े खरीदार हैं. सुरक्षा के तमाम गैजेट्स उन्होंने लगा लिए हैं. जो नए गैजेट्स आएंगे, उन्हें भी वो खरीद लेंगे.
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इंडिया का मार्केट पसंद नहीं!
इंडिया का मार्केट भी उसे पसंद नहीं है. भारत में दुनिया के लगभग सारे लक्जरी ब्रांड मिलने लगे हैं, लेकिन वो शॉपिंग के लिए लंदन, पेरिस और न्यूयॉर्क से लेकर सिंगापुर, दुबई तक का सफर करते हैं. दुनिया के काफी लोग सैर-सपाटे के लिए भारत आते हैं, पर वो अपनी हर छुट्टी ससेल्स, दक्षिण अफ्रीका, बहामास, मोनैको, बाली या अलास्का में बिताना चाहते हैं.
भारत बेशक यूरोप और अमेरिका के गरीब और मध्यवर्गीय लोगों के लिए इलाज कराने का बड़ा ठिकाना बन गया है, लेकिन वो इलाज के लिए यूरोप या अमेरिका ही जाते हैं.
उनके बच्चे या तो विदेश में पढ़ते हैं या भारत में रहकर ही स्कूली सर्टिफिकेट किसी विदेशी स्कूल बोर्ड का ही लेते हैं. ताकि हायर एजुकेशन के लिए विदेश जाने में दिक्कत न हो. उनकी सुविधा के लिए अब देश में ही कई इंटरनेशनल स्कूल खुल गए हैं, जो विदेशी स्कूल बोर्ड का एक्जाम लेकर वहीं का सर्टिफिकेट जैसे आईबी देते हैं.
उन्हें यहां की भाषा भी पसंद नहीं है. वो सिर्फ अपने नौकर-चाकर से भारतीय भाषाओं में बात करते हैं. उनके घर विदेशों में भी हैं, जहां वो अक्सर छुट्टियां बिताने के दौरान जाते हैं. वो विदेशी पहनते हैं, विदेशी शराब पीते हैं, विदेशी ख्वाब जीते हैं.
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ये सक्सेसफुल इंडियन हैं. ये भारतीय हैं, क्योंकि इनकी रगों में भारतीय खून है, वरना इनकी जिंदगी में अब भारत नाम मात्र का ही बचा है. खून में भारत है इसलिए भारत इनकी मजबूरी है. कभी कभार ये देशभक्त भी बन जाते हैं, खासकर विदेशों में होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान, जहां आप इन्हें भारतीय झंडा लहराते देख सकते हैं.
ऐसे और ऐसे ही कुछ चुने हुए मौकों पर वो अपनी देशभक्ति दिखा सकते हैं. भारत से उन्हें प्यार नहीं है. देश का उनके लिए खास मतलब ही नहीं है. उनमें से कई ने खुद विदेशी नागरिकता ले ली है.
कई के बाल-बच्चों ने भी ऐसा ही किया है. भारत के लिए वो दुलारे हैं, इसलिए उन्हें भारत की भी नागरिकता मिली है.
भारत के संसाधनों से प्यार है
देशप्रेम हो या न हो, लेकिन भारत से उन्हें मतलब जरूर है. भारत के संसाधनों से उन्हें प्यार है. भारत से वो अपना धन अर्जित करते हैं. भारत के कायदे कानून उनके लिए झुकने से परहेज नहीं करते हैं. भारत की राजनीति से लेकर नौकरशाही उनके कदमों में बिछी होती है. देश के संसाधनों का ये सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, लेकिन देश का इनके लिए कोई मतलब नहीं है.
किसी विदेशी एयरपोर्ट पर भारतीय या एशियाई होने के कारण अपमानित होने पर इनका देशप्रेम जगता है. इसके बाद वो नस्लभेद की शिकायत करते हैं.
देश के करोड़ों लोगों के हित का इनके लिए कोई मतलब नहीं है. पुराना इलीट भी पैसे कमाता था, लेकिन साथ ही धर्मशालाएं बनवाता था, मंदिर बनवाता था, प्याऊ बनवाता था, स्कूल चलाता था. नया इलीट भूलकर भी ये सब नहीं करता. देश को लेकर भावुक होना उसकी फितरत नहीं है.
ये लोग भारत से आजाद हैं. ये कामयाब लोगों की आजादी है. राजनीतिशास्त्र के विद्वान प्रोफेसर रणधीर सिंह ने ऐसे लोगों के लिए 'कामयाब लोगों के अलगाववाद' जुमले का इस्तेमाल किया है. उनके मुताबिक, जब कोई व्यक्ति असाधारण रूप से कामयाब यानी अमीर हो जाता है, तो वो बाकी देश से अलग हो जाता है. वो देश के बाकी लोगों की तरह नहीं जीता. जीवन के साधन से लेकर तमाम तरीकों में वो अलग ही दुनिया बसा लेता है और उसी दुनिया में वो जीता है.
दुनिया के किसी और देश में डॉलर मिलिनेयर की संख्या इतनी तेजी से नहीं बढ़ी है. यही वजह से दुनिया की तमाम वोल्थ मैनेजमेंट कंपनियां जैसे मॉर्गन स्टेनले, सोसायटी जैनराल, क्रेडिट सुइस और बार्कलेज ने भारतीय महानगरों में अपने ऑफिस खोले हैं, जो इन सुपर रिच क्लब के सदस्यों को पैसे संभालना और पैसे से और पैसे बनाने की कला बेचते हैं.
भारत बेशक दुनिया के सबसे गरीब देशों में है और ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में देश का नंबर बेशक 130 से भी नीचे हैं, लेकिन हमारे देश का सुपर अमीर क्लब में दुनिया में दूसरा स्थान है और भारत में इस क्लब में शामिल होने वालों की रफ्तार सबसे तेज है.
भारतीय इलीट का एक छोटा-सा हिस्सा ही इस सुपर अमीर क्लब का सदस्य है. इसके अलावा भी अमीरों और धनाढ्य लोगों की एक जमात है, जिसका देश से रिश्ता लगातार कमजोर हो रहा है. इस तबके के जीवन का एकमात्र लक्ष्य सुपर अमीरों के क्लब में शामिल होना है. ये उस क्लब के संभावित सदस्य हैं. सुपर अमीर क्लब के सदस्य और वोटिंग लिस्ट में शामिल लोगों से मिलकर ही भारत के कामयाब लोगों की जमात बनती है.
कामयाब लोगों के इस अलगाववाद से देश को कौन बचाएगा?
(दिलीप मंडल सीनियर जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. आर्टिकल की कुछ सूचनाएं लेखक के अपने ब्लॉग पर छपी हैं)
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