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टीबी मुक्त भारत के लिए जनांदोलन जरूरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 26.90 लाख से ज्यादी लोग टीबी मरीज हैं.

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बीमारियाँ हमेशा दुखदायी होती हैं. अगर हम टी.बी. बीमारी की बात करें तो इससे संक्रमित व्यक्ति दुःख और पीड़ा तो सहता ही है साथ ही अक्सर उसे सामजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है. काफी लोगों में टी.बी. से जुड़े मिथक और भ्रांतियां अभी भी समाप्त नहीं हुई हैं, जो सरकार के लिए टीबी मुक्त अभियान में चुनौती बना हुई है. आप सबको मालूम है कि टी.बी. के संक्रमण का असर दशकों से भारत ही नहीं, दुनिया भर में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के आंकड़ों के अनुसार टी.बी. दुनिया भर में होने वाली मौतों के शीर्ष 10 कारणों में से एक है.

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टीबी का एक चौथाई बोझ भारत पर

अपने देश में टी.बी. के रोगियों की संख्या काफी अधिक है. वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में 1 करोड़ लोग टी.बी. से संक्रमित थे, जिनमें से लगभग 26.90 लाख टी.बी. के मरीज भारत से थे. इस प्रकार हम देखते हैं कि पूरे विश्व में टी.बी. मामलों के एक चौथाई केस भारत में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कोरोना संक्रमण से पहले 2018 में ही इसकी गंभीरता को समझते हुए 2025 तक देश से टी.बी. उन्मूलन का लक्ष्य बनाया है.

टी.बी. को 2025 तक समाप्त करने की कोशिशों के तहत राष्ट्रीय टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम ने बेहद महत्वपूर्ण बदलाव किए जिनमें सफलता भी मिली है. स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Minister of India) टी.बी. संक्रमित लोगों की मदद करने वाली नीतियों को बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है. इसका एक उदाहरण निक्षय पोषण योजना है. इस योजना के तहत टी.बी. संक्रमित को इलाज के दौरान हर महीने पोषण संबंधी सहायता दी जाती है. 2018 में ये योजना शुरू की गई थी और अब तक 60 लाख से अधिक संक्रमितों को डायरेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर के जरिए 1515 करोड़ रुपये की मदद दी जा चुकी है.

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भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2020 में टी.बी. के खिलाफ जन आंदोलन की भी घोषणा की, इसमें समाज के सभी क्षेत्र के लोगों से भारत को टी.बी. मुक्त बनाने की कोशिशों से जुड़ने की अपील की गई. ये खुशी की बात है कि संसद के अंदर कई साथी इस जन आंदोलन से जुड़े. संसद सदस्यों के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय ने जुलाई 2021 में एक बैठक की जिसकी अध्यक्षता हमारे सम्मानित पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू जी ने की. उस बैठक में विभिन्न दलों के सांसद शामिल हुए. इसके अलावा राष्ट्रीय टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम समाज के गरीब लोगों तक पहुंचे, इसके लिए इसे पंचायती राज मंत्रालय से भी जोड़ा गया है. स्थानीय स्तर पर ग्राम प्रधान को भी अपने-अपने क्षेत्र में टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम की निगरानी के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

टी.बी. मरीजों को जांच, पोषण एवं भावनात्मक सहायता देने के लिए टी.बी. मरीजों को गोद लेने की पहल उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के प्रयासों से संभव हुई. सामुदायिक सहायता की इस मुहिम में कई तरह के साझेदार और सहकारी संस्थाएं जैसे: कारपोरेट संस्थाएं, जन-प्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठन, राजनीतिक दल इत्यादि जुड़ रहे हैं. ये सब टी.बी. के खिलाफ मुहिम में ब्लॉक और जिला स्तर पर टी.बी. संक्रमितों की मदद, जांच, पोषण और उपचार के बाद आर्थिक तौर पर सक्षम बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

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टीबी बीमारी लाइलाज नहीं

मुझे लगता है सरकार की कोशिशों के साथ ही समुदाय और विशेष रूप से जन-प्रतिनिधियों को इस बारे में मंथन करके ठोस रणनीति बनाकर कार्य करना होगा. जन-प्रतिनिधियों द्वारा नियमित रूप से जिला अधिकारियों के साथ बैठकर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. ऐसा करने से कार्यक्रम के अंतर्गत आने वाली चुनौतियों को पहचान कर उनमें सुधार किया जा सकता है.

हर तीन महीने में होने वाली दिशा बैठकों में जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में चलाये जा रहे टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम की गतिविधियों, समस्याओं और उनके समाधानों पर बात कर सकते हैं. इसके साथ ही इस कार्यक्रम में सामुदायिक सहभागिता की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है. हमें प्रत्येक टीबी मरीज के नियमित उपचार में उसका सहयोग करना चाहिए, जिससे उनका मनोबल न टूटे और उसे लगे कि टीबी लाइलाज नहीं है और अगर वो समय पर और पूरी दवा खायेंगे तो पहले की तरह स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकते हैं.

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टीबी को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए जनांदोलन की आवश्यकता है. समाज के प्रत्येक व्यक्ति को टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए जिम्मेदार होना पड़ेगा. इतिहास गवाह है कि जब भी किसी कार्यक्रम ने जनांदोलन का रूप लिया है वो सफल हुआ है.

(राजेंद्र अग्रवाल यूपी के मेरठ से बीजेपी सांसद हैं. यहां व्यक्ति विचार उनके अपने हैं और उनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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