ADVERTISEMENTREMOVE AD

गोपाल कृष्‍ण गांधी के विरोध के बहाने बापू के विचारों पर प्रहार 

गोपाल कृष्ण गांधी के बहाने किया जा रहा है गांधी के मूल्यों पर प्रहार

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

गोपाल कृष्ण गांधी अब तक एक आईएएस अफसर थे. स्तंभकार थे. प. बंगाल के गवर्नर थे. अब वो देशद्रोही की कतार में शामिल हो गए हैं. उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार होते ही उनके बारे में ये खोज शिवसेना और देश के कुछ टीवी चैनेलों ने कर ली है. एक टीवी चैनेल जो वैसे तो निकलता है अंग्रेजी में, लेकिन उसने इस बात पर बहस कर ली कि क्या देशभक्ति की परीक्षा में गोपाल गांधी पास होंगे या फेल.

चूंकि मैं आजकल खबरों से दूर रहता हूं, इसलिये पता नहीं चला कि गोपाल गांधी पास हुए या नहीं. उनका अपराध इतना सा है कि 1993 मुंबई ब्लास्ट में अपराधी याकूब मेमन को फांसी न दी जाये, इस बाबत उन्‍होंने एक चिट्ठी राष्ट्रपति महोदय को लिखी थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
चूंकि इन दिनों देश का मिजाज और मौसम, दोनों ही थोड़ा खराब है. ऐसे बहस सभ्य समाज में फांसी की प्रासंगिकता से हट कर देशभक्ति पर आ गई. लिहाजा गोपाल गांधी को ये साबित करना होगा कि वो है क्या ? देशभक्त या नहीं ? वैसे ये बताते चलें कि वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र हैं. और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी उनके नाना.

शिवसेना ने तो बाकायदा सोनिया गांधी पर भी चुटकी ले ली कि उन्‍होंने किस आदमी को अपना उम्मीदवार बना लिया. ये वहीं शिवसेना है, जिसके ऊपर मुंबई दंगों में शामिल होने के गंभीर आरोप लगे हैं. श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्टें, जिसकी तस्दीक करती हैं. मुंबई बम ब्लास्ट की तो जांच भी हो गई. अपराधी पकड़े गए और फांसी पर चढ़ गये. पर मुंबई दंगों की रिपोर्ट अभी तक धूल ही खा रही है.

ईमानदारी से जांच होती, तो गुजरात दंगों में शामिल एक पूर्व मंत्री की तरह कई नेता सलाखों के पीछे होते. साथ ही इस बात का खुलासा भी हो जाता कि असल में शिवसेना और उस जैसे संगठन कितने देशभक्त हैं, पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? सो सब शान से घूम रहे हैं और बयानबाज भी बने हुए हैं. बिलकुल वैसे ही जैसे कि बीफ का आरोप लगाकर जान लेने वाले निश्चित हो कर घूम रहे हैं.

ये अचानक गोपाल गांधी पर हमले का कुछ तो कारण होगा. ये मैं जानता हूं कि वो बहुत सज्जन हैं. अत्यंत संजीदा और संवेदनशील प्राणी. संवैधानिक पद के लिये सर्वथा उपयुक्त. पर उनकी कई कमियां हैं. पहली कमी कि वो महात्मा गांधी के वंशज है.

वो महात्मा गांधी के परिवार से हैं, जिन्होंने सांप्रदायिक शक्तियों से कभी समझौता नहीं किया, जो हमेशा हिंदू-मुसलमान एकता कि बात करते रहे, जिन्होंने न तो जिन्ना की द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को माना और न ही आरएसएस के द्विराष्ट्रवाद को मान्यता दी.

महात्मा गांधी सभी तबके को साथ लेकर चलने की बात करते थे. इंसान को इंसान से जोड़ने की वकालत करते थे. उनकी नजर में हिंदुस्तान को आगे ले जाने का एकमात्र रास्ता सेकुलरिज्म का रास्ता है. और इस मसले पर उन्‍होंने कभी समझौता नहीं किया. अंत में यही उनकी मौत का कारण भी बना. 

गांधी की नजर में हिंदुस्तान का इतिहास आपसी भाईचारे और सौहार्द का इतिहास है. ये बात हिंदुत्ववादियों को पसंद नहीं थी, न है.

हिंदुत्ववादी मानते थे और हैं कि भारत देश एक हिंदू सभ्यता है और इतिहास सभ्यताओं या फिर राष्‍ट्रीयताओं के आपसी संघर्ष का इतिहास है. हिन्दुत्ववादी मानते हैं कि मध्यकाल में मुस्लिम राष्ट्रीयता ने हिंदू राष्ट्रीयता पर आक्रमण किया और उसकी मौजूदगी ने हिंदू राष्ट्रीयता को कमजोर किया. ये लोग इस बात से मुत्मईन है कि गांधी जी की नीति गलत थी. इसने हिंदू राष्ट्रीयता को कमजोर किया जिसकी वजह से जिन्ना देश का विभाजन करवाने और पाकिस्तान बनवाने में कामयाब रहे.

हिंदुत्ववादियों की ये मजबूरी है कि गांधी जी की सर्वस्वीकार्यता अभी भी देश में इतनी है कि उनका अनादर कर राजनीति करना संभव नहीं है. गोपाल गांधी, महात्मा गांधी जैसे तेजस्वी तो नहीं, पर उन्हीं मूल्यों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

और यही बात हिंदुत्ववादियों को अखर रही है. इसलिये गोपाल गांधी तो एक बहाना है. निशाना गांधी जी हैं और आजादी की लड़ाई की वो विरासत है, जिस पर हर भारतीय को नाज होना चाहिए.

चूंकि इन दिनों हवा थोड़ी उलटी बहनी शुरू हो गई है, जो बातें पहले दबे छुपे अंदाज में कही जाती थीं, वो अब खुले आम हो रही हैं. ऐसे में गोपाल गांधी की देशभक्ति पर निशाना साधना आसान है.

ध्यान से देखें तो ये हमले कौन कर रहा है? कौन सी शक्तियों है जो देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रही है ? ये वो लोग हैं जिनका देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं था और जिनका एक भी बड़ा नेता या छोटा कार्यकर्ता जेल नहीं गया.

ये बात यहां हास्यास्पद लग सकती है. पर सच तो ये हैं कि आरएसएस ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेनेवालों को हतोत्साहित ही किया है. आरएसएस के संस्थापक केशव हेडगेवार वैसे तो पहले कांग्रेसी थे, खिलाफत आंदोलन के दौरान जेल भी गये थे और बाद में भी नमक कानून तोड़ो आंदोलन में एक साल जेल की हवा खा चुके थे, पर उनका यकीन आजादी की लड़ाई में कम था. वो इसे "छिछला राष्ट्रवाद" मानते थे.

हेडगेवार ने 1936 में कहा था अंग्रेजों के खिलाफ कांग्रेस का आंदोलन क्षणिक आवेश और भावावेश से उपजा कार्यक्रम है और ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का उद्गम सतही राष्ट्रवाद है .

उनके उत्तराधिकारी एमएस गोलवलकर तो उनसे एक कदम आगे बढ़ गये. उन्‍होंने 1960 में इंदौर में कहा कि ब्रिटेन विरोधी आंदोलन को देशभक्ति और देशप्रेम का नाम दिया गया. वास्तव में ये प्रतिक्रियावाद है. स्वतंत्रता आंदोलन के इस प्रतिक्रियावाद की देश, इसके नेताओं और लोगों पर घातक असर पड़ा.

गोलवलकर ने उदाहरण दिया कि 1920- 21 के बाद बच्चे मिलिटेंट हो गये और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का असर ये हुआ कि लोग ये सोचने लगे कि कानून का कोई अर्थ नहीं है. उनके इस वक्तव्य और सोच के कारण उनको किस कतार में खड़ा किया जाए?

क्या उन्हें देशभक्त माना जाये या नहीं, क्योंकि वो भारत की आजादी की लड़ाई को समाज पर गलत असर डालने वाला बता रहे हैं ? गोपाल गांधी का अपराध इन नेताओं की तुलना में कुछ भी नहीं है.उन्होने आजादी की लड़ाई को खारिज करने का दुस्साहस नहीं किया.

वो तो उस परंपरा को आगे बढ़ाने की बात करते हैं, जो सद्भावना की बात करता है, जो सबको साथ लेकर चलने की बात करता है, जो नफरत की राजनीति को खारिज करता है. गांधी जी के तीन पुत्रों ने अपने पिता के हत्यारे नाथूराम गोडसे की फांसी माफ करने की वकालत की थी. तो क्या मान लें कि वो तीनों पुत्र भी राष्ट्रद्रोही हैं? ये कैसा तर्क है? ये कैसी इतिहास की व्याख्या है?

फिर ये बात भी तो आयेगी कि वो कौन लोग थे, जो आज तो तिरंगे के अपमान को बड़ा मुद्दा बना आसमान सिर पर उठा लेते हैं और वही लोग तिरंगे को राष्ट्रध्वज स्वीकारने को तैयार नहीं थे, उसका अपमान किया था. 14 अगस्त, 1947 को आरएसएस के मुखपत्र में लिखा गया कि तिरंगा कभी भी हिंदुओं को मंजूर नहीं होगा. तीन शब्द अपने में ही अपशकुन है और तीन रंगों का मौजूदगी देश और समाज पर बुरा असर डालेगा.

ये बात गोपाल गांधी या महात्मा गांधी ने तो नहीं कही. अगर कहते तो शायद आज हिंदुस्तान में उनका रहना मुहाल कर दिया जाता. चूंकि आज उनकी सत्ता है, तो कुछ भी कहकर बच सकते हैं. दरअसल सवाल गोपाल गांधी का है ही नही.

एक पूरी परंपरा के मुंह पर कालिख लगाकर उसे नेस्तनाबूद करने का दुष्चक्र रचा जा रहा है. ये लड़ाई दिखती तो राजनीतिक है, पर हकीकत में है वैचारिक. राजनीति तो सिर्फ एक माध्यम है. इसलिये ये हमले आने वाले दिनों में और तेज होंगे और कई गोपाल गांधी को इस अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्‍ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

[ हमें अपने मन की बातें बताना तो खूब पसंद है. लेकिन हम अपनी मातृभाषा में ऐसा कितनी बार करते हैं? क्विंट स्वतंत्रता दिवस पर आपको दे रहा है मौका, खुल के बोल... 'BOL' के जरिए आप अपनी भाषा में गा सकते हैं, लिख सकते हैं, कविता सुना सकते हैं. आपको जो भी पसंद हो, हमें bol@thequint.com भेजें या 9910181818 पर WhatsApp करें. ]

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×