भारतीय जनता पार्टी की सीनियर नेता आनंदीबेन पटेल को बतौर मुख्यमंत्री यह टर्म पूरा नहीं करने दिया जाएगा, ऐसी अटकलें करीब साल भर पहले से लगाई जा रही थीं. पार्टी किसी नए चेहरे के साथ ही 2017 गुजरात चुनाव में उतरेगी, यह मैसेज भी लगभग-लगभग सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को दिया जा चुका था.
ऐसे में आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे को आश्चर्य के साथ नहीं देखा जाना चाहिए. वो भी तब, जब आनंदी बेन ने अपने इस्तीफे में लिखा कि वे दो महीना पहले ही अपने रिटायरमेंट के बारे में पार्टी आलाकमान को बता चुकी थीं.
आनंदीबेन के करीबी मानते हैं कि आगामी गुजरात चुनाव में बीजेपी की हार हो सकती है, जिसका ठीकरा आनंदीबेन अपने सिर पर फूटते नहीं देखना चाहती थीं. वहीं बीजेपी को यह एहसास हो चुका था कि आनंदीबेन को अगले चुनाव तक सीएम बनाए रखना पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है.
चाहे गुजरात का अनामत आंदोलन हो या फिर हालिया दलित आंदोलन, आनंदीबेन सरकार लोगों के साथ संवाद स्थापित करने और उन्हें काबू करने में विफल रही और बीजेपी इस बात को स्वीकार करती है.
गौरतलब है कि पटेल समाज 1995 से ही बीजेपी का कट्टर समर्थक माना जाता रहा है. इन्हें हाथ से गंवाना बीजेपी के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है, इसका अंदाजा पार्टी को है. ऐसे में पटेलों को संभालने का जो काम आनंदीबेन बीते 23 महीने में नहीं कर पाईं, वो पार्टी के लिए एक चिंता का विषय था.
आनंदीबेन को किसी न किसी स्टेट का गवर्नर बनाने पर मोदी सरकार विचार कर सकती है.
BJP की नई परंपरा का शिकार
75 साल या इससे ज्यादा उम्र का कोई भी नेता एक्टिव पॉलिटिक्स में न रहे. वो अपनी जिम्मेदारियों से रिटायरमेंट ले. आनंदीबेन के इस्तीफे पर बीजेपी की इस नई पॉलिसी का असर भी माना जा रहा है. आनंदी बेन ने इस फैक्टर को भी अहम मानते हुए इसका जिक्र अपने इस्तीफे में किया.
इसके अलावा कुछ जानकारों के मुताबिक, माथुर रिपोर्ट में बीजेपी के इंटरनल असेसमेंट के दौरान आनंदीबेन के नंबर काफी कम रहे थे, जिसका हल्का असर आनंदीबेन के इस्तीफे पर रहा होगा.
आनंदीबेन के बाद गुजरात
इस वक्त कई नाम हैं, जो गुजरात के अगले सीएम पद की रेस में आगे चल रहे हैं. लेकिन इस फैसले में बीजेपी कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती, क्योंकि यही नाम 2017 चुनाव में बीजेपी का नेतृत्व करेगा.
नितिन पटेल, जिनके पास अपना पुख्ता पटेल वोट बैंक है, वो सीएम पद की रेस में सबसे आगे हैं. उनके बाद इस सरकार में कई मंत्रालय पहले से संभाल रहे सौरभ पटेल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं.
लेकिन सूत्रों की मानें, तो पीएम मोदी और आरएसएस के खासमखास भीखू भाई दलसानिया, जिनका नाम नरेंद्र मोदी के बाद भी गुजरात के सीएम पद के लिए सामने निकलकर आया था, इस पद के नए दावेदार हो सकते हैं.
कुछ सीनियर पार्टी कार्यकर्ताओं की मानें, तो अमित शाह को भी गुजरात की कमान सौंपी जा सकती है. माना जाता है कि मोदी के बाद शाह के नेतृत्व में ही बीजेपी के लिए गुजरात जीतना आसान होगा.
आनंदीबेन के जाने में AAP और कांग्रेस का कितना हाथ?
गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अभी छोटे खिलाड़ी हैं. वहीं गुजरात में बीजेपी की हालात खराब होनी शुरू हो चुकी है. लेकिन यह स्थिति आज की है. अगले एक साल में राजनीति कौन सी करवट लेगी, इसका अंदाजा लगा पाना अभी मुश्किल है.
फिर भी बीजेपी इन दोनों को सीरियस मानकर चल रही है] क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का सपना लेकर चल रही बीजेपी, कहीं गुजरात से साफ न हो जाए, यह बीजेपी के लिए जाहिर तौर पर एक बड़ा डर है.
(वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू बिजनेस लाइन के संपादक वीरेंद्र पंडित से हुई बातचीत के आधार पर)
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