उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ (CM Yogi Adityanath) ने जनसंख्या नियंत्रण बिल (Population Control Bill) का ड्राफ्ट पेश कर मास्टर स्ट्रोक चला है. योगी ने एक संदेश देने की कोशिश की है कि यूपी सरकार जनसंख्या कम करने के लिए गंभीर है. लेकिन एक दूसरा मैसेज अल्पसंख्यकों को देने की कोशिश की गई है, खासकर मुस्लिमों को. क्योंकि आम धारणा है और खासकर यूपी सरकार को लगता है कि मुस्लिमों में प्रजनन दर बाकी समुदाय के मुकाबले ज्यादा है. ये दिखाता है कि बिल के पीछे एक नहीं दिखने वाला सांप्रदायिक एजेंडा भी छिपा है.
ये बिल विशेष रूप से सांप्रदायिक एजेंडे के लिए नहीं बनाया गया है, लेकिन इसका और लव-जिहाद बिल जो पहले आया था, उसके निशाने पर मुसलमान हो सकते हैं ताकि हिंदू वोट का ध्रुवीकरण किया जा सके. यह बिल अपने आप में स्थायी जनसंख्या नियंत्रण नीति का एक शॉर्टकट है, जिसका फेल होना तय है.
उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों में अल्प बताने का ट्रेंड
अगर योगी सरकार के इस कदम को पहले की गई दूसरी कार्रवाइयों के साथ जोड़कर देखा जाए तो यह साफ रूप से एक पैटर्न को दिखाता है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय को बुरा बताया जाता है, ताकि हिंदू वोट को किसी एक मुद्दे पर एकजुट किया जा सके और लोकल मुद्दे बेमानी हो जाएं. जनसंख्या पर बिल और लव जिहाद में कानून ऐसे ही मुद्दे हैं.
मुसलमानों की तुलना में कुछ हिंदू समुदायों में बहुविवाह अधिक आम है
पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी की लिखी गई एक किताब है, जिसमें ये साफ लिखा है कि अधिक प्रजनन दर या बहुविवाह जैसे कई आरोप जो मुस्लिमों के खिलाफ लगते रहे हैं, वो वास्वत में सही नहीं है. तथ्यों से परे हैं.
बहुविवाह के प्रश्न पर, पुस्तक में साफ लिखा है कि बहुविवाह की प्रथा मुसलमानों में उतनी व्यापक नहीं है जितनी हिंदुओं के कुछ वर्गों में है। यह चौंकाने वाला लग सकता है लेकिन ये तथ्य हैं। ऐसा नहीं है कि हर मुसलमान 3-4 महिलाओं से शादी कर रहा है। मुझे लगता है कि हमें पूर्वाग्रह के बजाय तथ्यों के आधार पर अपने तर्क और घरणाएं बनानी चाहिए.
शिक्षा, स्वास्थ्य में निवेश करें, अंधा प्रचार नहीं
ऐसे घातक एजेंडे को चलाने से अच्छा विकल्प है स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश किया जाए. शिक्षा, खासकर महिलाओं के लिए, ताकि वे खुद ज्यादा प्रजनन से होने वाले नुकसानों को समझ सके. ऐसा नहीं है कि जिनके दो या एक बच्चे हैं, उनके मस्तिष्क विशेष रूप से विकसित है. बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य तक बेहतर पहुंच के कारण वो अपने कल्याण और अपने भविष्य के बारे में सोचने और समझने में सक्षम हैं. वह चाहती हैं कि एक अच्छी जिंदगी, अच्छी सुविधा से बना एक समाज हो. जनसंख्या को नियंत्रित करने का यही एकमात्र स्थायी तरीका है, शिक्षा और स्वास्थ्य.
किसी दंपत्ति में शिक्षा की कमी होती है, खासकर महिलाओं में, और इस स्थिति को अगर खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे से जोड़ते हैं, साथ ही इन दोनों स्थिति को बेहद गरीबी की स्थितियों से जोड़कर देखते हैं, तो आपके पास एक ऐसी स्थिति होती है जहां लोग अपनी इच्छा के खिलाफ भी दो से अधिक बच्चों को जन्म दे रहे हैं.
जब तक आप स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश नहीं करते हैं. व्यवस्था की असमानताओं को दूर नहीं करते हैं. तब तक जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने की ये शॉर्टकट कोशिश प्रोपगेंडा के अलावा और कुछ नहीं लगती है.
(पवन के. वर्मा एक लेखक, पूर्व राजनयिक और जदयू के सदस्य हैं. उन्होंने @PavanK_Varma पर ट्वीट किया. व्यक्त विचार उनके अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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