ADVERTISEMENTREMOVE AD

जब नेहरू को ‘लव जिहाद’ के एक मामले की जांच के लिए जाना पड़ा था  

लव जिहाद के नाम पर राजनीति करने का सिलसिला 100 वर्षों से ज्यादा पुराना है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

लव जिहाद के नाम पर राजनीति करने का सिलसिला 100 वर्षों से ज्यादा पुराना है. यह जरूर कहा जा सकता है कि दो धर्मों की मान्यता वाले परिवारों की नई पीढ़ी की सदस्यों के बीच शादी के फैसलों का लव जिहाद के रूप में ‘ साम्प्रदायिक नामकरण’ भर नया है. तब ‘लव जिहाद ’ को ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी आजादी के आंदोलन की राजनीति को प्रभावित करने के इरादे से मुद्दा बनाने की कोशिश की जाती थी और महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक को हिन्दुत्ववादियों ने लव जिहाद के नाम पर परेशान कर रखा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
यह माना जा रहा है कि मौजूदा दौर में संविधान की समानता मूलक संस्कृति को बढ़ाने वाली राजनीति को रोकने के इरादे से उसे मुद्दा बनाने की कोशिश देखी जा सकती है.

नेहरु ने 100 साल पहले अंतर धार्मिक शादी की चर्चा की थी

हिन्दुत्ववाद पर आधारित राजनीति में यकीन करने वालों ने सौ साल पहले यह समझ लिया था कि भारतीय समाज में व्याप्त अंतर धार्मिक शादियों के चलन का विरोध कर अपनी विचारधारा को प्रचारित करने का एक सफल रास्ता बनाया जा सकता है.

कांग्रेस के नेता जवाहर लाल नेहरु ने सौ साल पहले की अंतर धार्मिक एक शादी के फैसले की चर्चा की है. उन्होंने उत्तर प्रदेश में आजमगढ़-मऊ की एक ऐसी घटना के बारे में लिखा हैं जिसकी जांच करने के लिए उन्हें बड़ी मुश्किलों के बीच जाना पड़ा, क्योंकि गांधी जी ने उनसे यह अनुरोध किया था.

जवाहर लाल नेहरु ने हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द को एक पत्र के जवाब में बताया है क

“वह शायद 1921 के मई या जून महीने की बात है. शौकत अली और मैं कांग्रेस के दौरे के सिलसिले में यूपी के पूर्वी जिलों के कई शहरों का दौरा कर रहे थे. एक हिन्दू लड़की के भगाये जाने की खबर अखबारों में आयी थी और उससे कुछ सनसनी फैल गयी थी. चूंकि अपने दौरे के सिलसिले में हम उस गांव के पास से होकर गुजर सकते थे , जिससे इस वाक्ये का तालुल्क था, गांधी जी ने हमसे कहा कि अगर मुमकिन हो तो हम उस गांव में जाकर मामले की जांच करें.

नेहरू ने लिखा कि गांव शायद मऊ के नजदीक कहीं था. आजमगढ़ से बलिया जाते वक्त हमारी गाड़ी मऊ में दो घंटे ठहरी , या शायद हमें वहां गाड़ी बदलनी थी. उसी शाम को हमें बलिया की एक मिटिंग में बोलना था और इसीलिए मऊ में जो दो घंटे मिले उस दौरान हमने जल्दी से गांव का एक चक्कर लगाने का फैसला किया. जब मऊ पहुंचे को पता चला कि गांव पांच मील दूर है और सिवाय इक्के के कोई दूसरी सवारी नहीं है. ठेठ गरमी में दोपहर का वक्त था और लू चल रही थी.

शौकत अली ने कहा कि चरमराते इक्के में सवार होना उनके लिए नामुमकिन हैं, क्योंकि वह टूट जायेगा और दस मील पैदल चलना उनके लिए मुमकिन न होगा. रमजान की वजह से उनका रोजा भी था. मैंने अकेले ही इक्के पर जाना तय किया. मैं गांव पहुंचा और उस लड़की से मिला. लगभग पन्द्रह मिनट तक बातें करता रहा. वह एक सयानी जवान औरत थी और उसने मुझे कहा ( जहां तक मुझे याद है , मैंने दूसरों से अलग उससे बातें की थी.) कि उसने अपना घर अपनी मर्जी से छोड़ा था और उस मुस्लिम नौजवान के साथ खुशी से आई थी. इसके अलावा उसने इस्लाम कबूल कर लिया था और मुस्लिम युवक से उसका निकाह भी हो गया था और वह अपने पुराने घर लौटने को तैयार नहीं थी. मैंने उसे इत्मीनान दिलाने की कोशिश की कि उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है , लेकिन वह मुझे सच बात और अपनी असली मुराद बता दे. तब भी उसने वहीं दुहराया जो पहले कह चुकी थी. इस मामले में मैंने लाचारी महसूस की और मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सका.

इसके अलावा उसने इस्लाम कबूल कर लिया था और मुस्लिम युवक से उसका निकाह भी हो गया था और वह अपने पुराने घर लौटने को तैयार नहीं थी. मैंने उसे इत्मीनान दिलाने की कोशिश की कि उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है , लेकिन वह मुझे सच बात और अपनी असली मुराद बता दे. तब भी उसने वहीं दुहराया जो पहले कह चुकी थी. इस मामले में मैंने लाचारी महसूस की और मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सका.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

नेहरु ने एक पत्र में किया था जिक्र

एक ही घटना से साल दर साल खेलने की राजनीतिक खेल का नमूना नेहरु के पत्र की भाषा पर गौर करें तो यह देखने को मिलता है कि उन्होंने भाई परमानंद के एक पत्र का जवाब ऐसे लिखा है जैसे उन्हें अपनी यादश्त पर जोर देना पड़ा है और नेहरू ने पत्र में मेरा ख्याल है या शायद जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया है. इसकी मुख्य वजह है कि यह घटना आज से लगभग सौ साल पुरानी 1921 की घटना है और जवाहर लाल नेहरू को भाई परमानन्द को यह पत्र 1933 में लिखना पड़ा.

जवाहर लाल नेहरू ने भाई परमानंद को यह पत्र 26-11-1933 को लिखा था. क्यों कि भाई परमानंद ने दो दिन पहले यानी 24 नवंबर 1933 को एक पत्र भेजा था और भाई परमानंद ने अपने इस पत्र में 1921 की उस घटना का संदर्भ दिया था जिसे ‘ लव जिहाद’ के रुप में प्रचारित किया जा रहा था. नेहरू ने अपने पत्र की शुरुआत इस तरह की है. “प्रिय भाई जी, आपके 24 नवंबर के खत के लिए शुक्रिया.आपने जिस वाक्ये का हवाला दिया है, अब मुझे उसकी याद आई है.”

भाई परमानंद और जवाहर लाल नेहरू के पत्र व्यवहार में यह भी गौर किया जा सकता है कि भाई परमानंद ने 1933 में लिखे एक पत्र में 1921 की एक घटना का उल्लेख किया है. यानी समाज में होने वाली एक- दो घटनाओं को भी समाज में आमतौर पर होने वाली घटनाओं की तरह पेश किया जाता है. 2020 तक भी आंकड़े बताते हैं कि देश में होने वाली कुल शादियों में यह माना जाता है कि इनमें दस प्रतिशत शादियां ही अंतर जातीय शादियां होती है. अंतर धार्मिक शादियां एक से दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं हैं . इन अंतर धार्मिक शादियों में भी भारत में सभी प्रमुख धर्मों के लड़के लड़कियों के बीच होने वाली शादियां हैं. लेकिन लव जिहाद को इस रूप में पेश किया जाता है जैसे मुस्लिम युवक हिन्दू लड़कियों को बहकाकर शादी कर लेते हैं. जबकि अंतर धार्मिक शादियों में हिन्दू लड़कों और मुस्लिम लड़कियों के बीच शादी के फैसले भी देखे जा सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
उत्तर प्रदेश में भी कानपुर के पास होने वाली चौदह अलग-अलग अंतर धार्मिक शादियों की पुलिसिया जांच पड़ताल की गई है और उनमें किसी तरह के षडयंत्र की बात सामने नहीं आई है. लेकिन लव जिहाद के राजनीतिक प्रचार को देखें तो लगता है कि देश में मुस्लिम युवक और हिन्दू लड़कियों के बीच शादी आमतौर पर हो रही है.

साम्प्रदायिक उग्रता का माहौल बनाने की रणनीति के राजनीतिक इरादे जवाहर लाल नेहरू लिखते हैं आजमगढ़ और मऊ के पास की यह घटना को इस तरह प्रचारित किया गया कि उन्हें उसकी जांच के लिए वहां जाने के लिए बाध्य होना पड़ा. इस चक्कर में उन्हें बलिया की बैठक में बोलने का मौका गंवना पड़ा, क्योंकि तब तक काफी देर हो गई और उनकी गाड़ी छूट गई. उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशन के जिस अधिकारी ने वहां से लौटने का उनके लिए इंतजाम किया उसे भी अपनी नौकरी में मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

इस पत्र व्यवहार में यह भी गौर तलब है कि हिन्दुत्व की राजनीति को उग्र बनाने के इरादे से विरोधियों के खिलाफ कुछ खास तरह के शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं. नेहरू ने अपने जवाब में लिखा है कि उन्हें कायर कहा गया. आमतौर पर हिन्दुत्ववादी राजनीति करने वाले दूसरों के लिए कायर शब्द का इस्तेमाल करते है ताकि माहौल को उग्र बनाया जा सके.

एक अन्य पहलू पर भी गौर किया जा सकता है कि अंतर धार्मिक शादियां एक दो भी होती हैं तो उसे को जितना संभव हो सकें उतना प्रचारित किया जाता है. लेकिन नेहरु ने इन दोनों ही पहलुओं पर जो उदारता दिखाई है उसे आज भी राजनीतिक मूल्यों के रूप में सुरक्षित रखने की कोशिश की जानी चाहिए. नेहरू ने एक तो खुद को कायर बुलाए जाने की घटना को अहमियत नहीं दी . दूसरे उन्होंने अंतर धार्मिक शादी की घटना की अपनी जांच की रिपोर्ट को भी मीडिया के जरिए प्रचारित नहीं किया . उन्होंने यह बात अपने पत्र में भी लिखी है. उन्होंने बताया है कि जांच की रिपोर्ट उन्होंने गांधी जो को भेज दी और समाचार पत्रों में कोई बयान भी नहीं दिया था.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×