'ये जिंदगी भी कोई जिंदगी है भला, इससे अच्छा तो मौत ही हो जाए’
‘बेटे को शहर ही नहीं, घर में रखने तक से डर लगता है’
‘यहां आकर हमारी जिंदगी बंदरों जैसी हो गई है’
'धरती के स्वर्ग' कश्मीर में रहने वाले कुछ लोगों के ये बयान हैरान करने वाले हैं. इन खूबसूरत वादियों के दिल में झांका, तो उनकी बातों से उनकी जिंदगी की उदासी और मायूसी उभरकर सामने आ गई. यहां के लोगों से बात करने पर पता चला कि उनकी जिंदगी में कितनी नाउम्मीदी है. जिस कश्मीर की खूबसूरती के कसीदे पूरी दुनिया में पढ़े जाते हैं, वहां के लोगों की जिंदगी कितनी बदरंग होती जा रही है.
पिछले हफ्ते बुरहान वानी के गैंग के आखिरी सदस्य सद्दाम के एनकाउंटर के बाद ऐसा लगा कि आतंकवाद को बड़ा झटका लगा है. लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि कई लोग, खास तौर पर युवा आतंकवाद का रास्ता अपनाने को तैयार बैठा है.
सद्दाम के एनकाउंटर के बाद कई दिनों तक कश्मीर जलता रहा. कश्मीर के लोगों की आंखों में भी दहशत दिख रही है, लेकिन चेन्नई के नौजवान की पत्थरबाजी में हुई मौत ने तो इसे ऐसा अविश्वास का मोड़ दे दिया, जो अब तक घाटी में कभी नहीं दिखता था.
शायद ऐसा पहली बार हुआ था, जब कश्मीर में कोई टूरिस्ट इस तरह से पत्थरबाजी का शिकार हुआ हो. कश्मीर से लेकर चेन्नई तक इस युवक की मौत से हंगामा मच गया. खुद सीएम महबूबा मुफ्ती को पीड़ित परिवार से मिलने जाना पड़ा. ये पत्थर एक टूरिस्ट पर नहीं, बल्कि पूरे कश्मीर पर पड़ा था.
मैं इससे पहले भी कश्मीर जाती रही हूं, लेकिन इतनी मायूसी पहले कभी नहीं देखी. धरती के इस जन्नत ने हमेशा टूरिस्टों को सिर-आंखों पर बिठाया है, लेकिन इस बार सबकुछ बदला-बदला सा दिखा. लोगों के चेहरे पर निराशा दिखी. डल लेक की वो रौनक गायब थी. वही शिकारे, वही हाउसबोट, लेकिन लोग बिल्कुल अलग. उनकी मायूसी पहले से भी ज्यादा बढ़ गई थी. जो लोग खुद को खुशकिस्मत मानते थे कि वो इस स्वर्ग में पैदा हुए, वो अपनी जिंदगी को कोसते नजर आए.
श्रीनगर में एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले आलम को न चाहते हुए भी अलगाववादियों की हड़ताल में अपनी दुकान बंद करनी पड़ी. इस छोटी-सी दुकान से अपने घर का खर्च चलाने वाले आलम इस हड़ताल का कतई समर्थन नहीं करते, लेकिन दहशत से अपनी दुकान बंद करने को मजबूर हैं.
जो टूरिस्ट गाइड कश्मीर की खूबसूरती बयां करते नहीं थकते थे, वो ये कहते नजर आए कि हम आतंकवादी नहीं है, हमारी मदद भी ले लो आपको अच्छे से कश्मीर दिखाएंगे.
डल लेक पर शिकारा चलाने वाले मुश्ताक की अपनी कहानी है. दो बच्चों के पिता मुश्ताक की 20 साल की बेटी है और 22 साल का बेटा. बेटी तो स्कूल में नौकरी करती है, लेकिन मुश्ताक अपने नौजवान बेटे को बहन के घर जम्मू में छोड़ रखा है. इसकी वजह मुश्ताक बताते हैं:
‘’बेटे को घर से बाहर भेजने से डर लगता था कि पता नहीं वो शाम को वापस आएगा या नहीं. डर लगता है कि कोई आतंकवादी उसे बहलाकर न ले जाए. या कहीं आर्मी वाले किसी आरोप में फंसाकर उसे गोली न मार दें, इसलिए अपने बेटे को बहन के घर छोड़ रखा है.’’
बाहर से कश्मीर जितना खूबसूरत है, अंदर झांककर देखा, तो यहां के लोगों की जिंदगी तमाम बंधनों से बदसूरत हो गई है. डर के साए में जी रहे लोग अपनी जिंदगी को कोसते हैं. वहीं सुरक्षाबल के जवानों की हालत भी कुछ खास जुदा नहीं हैं.
कश्मीरियों के दर्द की तो हमने बात की. अब जरा उन जवानों की भी बात करते हैं, जो इनकी सुरक्षा के लिए दिन-रात तैनात रहते हैं.
आर्मी, सीआरपीएफ, बीएसएफ के जवानों की अपनी ही कहानी है, अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर यहां तैनात अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं. बिहार के रहने वाले 28 साल के राम सिंह 8 महीने से कश्मीर में हैं. राम सिंह की 2 साल पहले ही शादी हुई थी. 1 साल की बेटी भी है. बेटी के साथ वक्त भी गुजारने को नहीं मिला और यहां पोस्टिंग हो गई. घरवाले हर रोज टीवी चैनल पर नजरें गड़ाए रहते हैं. जब भी किसी जवान के शहीद होने की खबर आती है, तो दिल धक से हो जाता है. इन जवानों को आतंकवादियों से तो खतरा है ही, साथ ही ये लोगों के पत्थरों से भी खौफ में रहते हैं. राम बताते हैं:
‘’यहां आकर हमारी जिंदगी बंदरों जैसी हो गई है. हमारी गाड़ी देखकर ही लोग पत्थर फेंकने लगते हैं. लोगों के पत्थरों से बचने के लिए हमने अपनी गाड़ियों में ये जाली लगा रखी है, नहीं तो हमारे सिर तो जरूर फूट जाएं.’’
डर की वजह से ये जवान अपने परिवार को साथ नहीं रख पाते. अगर किसी ने हिम्मत कर भी ली, तो परिवारवाले अपनी पहचान छिपाकर रखने के लिए मजबूर रहते हैं. सीआरपीएफ के एक अधिकारी की पत्नी ने बताया:
‘’हम लोग तो घर से बाहर भी निकलने से डरते हैं कि पता नहीं कब, किस मुसीबत में पड़ जाएं. बच्चों को खुद से दूर दूसरे शहरों में पढ़ाते हैं. अगर शहर में निकलते भी हैं, तो हमारे साथ सादे कपड़ों में जवान तैनात रहते हैं.’’
ये तो बाहर से आए जवानों का हाल है, लेकिन कश्मीरी युवकों की हालत तो और भी बदतर है. सीआरपीएफ में तैनात कश्मीर के एक जवान नवाज बताते हैं:
‘’मैं ज्यादातर सादे कपड़ों में ही रहता हूं, क्योंकि यहां के लोगों को हमारा सेना में जाना या सीआरपीएफ में जाना पसंद नहीं, इसलिए रिश्तेदारों के अलावा दूसरे लोगों को बताता भी नहीं हूं कि मैं सीआरपीएफ में हूं.’’
कश्मीर घाटी में रहने वालों सभी पक्षों की सोच अलग है. ऐसे में कश्मीर को दोबारा जन्नत बनाने का प्लान किसी के पास नहीं है.
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