सबसे पहले कैंब्रिज एनालिटिका और फेसबुक स्कैंडल के बाद के घटनाक्रम पर एक नजर:
1) भारत के बड़े करोबारी और महिंद्रा ग्रुप के चीफ आनंद महिंद्रा ने कहा है कि शायद समय आ गया है कि भारत का अपना सोशल नेटवर्क हो और अगर किसी के पास कोई ठोस कॉन्सेप्ट है तो वो पूंजी लगाने को तैयार हैं.
2) कैंब्रिज एनालिटिका विवाद के बाद महज दस दिन के भीतर शेयर बाजार में फेसबुक के मार्केट कैप में 9000 करोड़ डॉलर यानी 582615 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह रकम देश की सबसे बड़ी कंपनी के मार्केट कैप से ज्यादा है.
3) अमेरिका के फेडरेल ट्रेड कमीशन (एफटीसी) ने इस धोखाधड़ी को गंभीरता से लेते हुए उसकी प्राइवेसी प्रैक्टिस की जांच शुरू कर दी है.
4) अमेरिकी सीनेट की न्यायिक समिति ने अगले महीने फेसबुक के चीफ एक्जीक्यूटिव मार्क जुकरबर्ग को डेटा प्राइवेसी प्रैक्टिस के मामले में गवाही देने के लिए बुलाया है.
5) रॉयटर के एक सर्वे में केवल 41 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि वो फेसबुक पर भरोसा करते हैं. अमेजन पर सबसे अधिक 66 प्रतिशत, गूगल पर 62, माइक्रोसॉफ्ट पर 60 और याहू पर 47 प्रतिशत लोग भरोसा करते हैं.
6) देश विदेश में लोग फेसबुक अकाउंट डिलीट कर रहे हैं. एक्टर फरहान अख्तर ने अपना निजी अकाउंट डिलीट कर दिया है. अमेरिका में टेस्ला कंपनी के सीईओ एलन मस्क ने अपनी कंपनियों के पेज डिलीट करा दिए हैं. उन्हें करीब 50 लाख फैन्स ने लाइक किया था.
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तो क्या फेसबुक का बाजार खत्म हो जाएगा? क्या भरोसा एकमात्र पहलू है, जो फेसबुक जैसी कंपनी को बर्बाद करने के लिए काफी है? इन सवालों पर गौर करने से पहले कुछ और तथ्यों पर नजर डाल लेते हैं.
फेसबुक का दबदबा
बीते कुछ सालों में फेसबुक का यूजर बेस बहुत बढ़ा है और अब यह करीब 210 करोड़ हो गया है. इसका यूजर बेस जितना बढ़ा है उतनी ही अधिक कमाई हुई है. ब्लूमबर्ग पर छपी खबर के मुताबिक 2011 में विज्ञापनों से फेसबुक को 3.2 अरब डॉलर की आदमी हुई और उस वक्त उसके पास 84.5 करोड़ सक्रिय यूजर्स थे यानी प्रति यूजर 3.79 डॉलर की कमाई हुई. 2017 में फेसबुक को 2.1 अरब सक्रिय यूजर्स से 40 अरब डॉलर की कमाई हुई यानी प्रत्येक सक्रिय यूजर 19.05 डॉलर की कमाई. 2016 में फेसबुक पर औसत टाइम स्पेंट करीब 50 मिनट था.
यानी औसतन प्रत्येक यूजर 50 मिनट फेसबुक पर बिताता था. यही इसकी असली ताकत थी. लेकिन अब एक खतरनाक पहलू सामने आ रहा है. फेसबुक का यूजर बेस तो बढ़ रहा है, लेकिन टाइम स्पेंट में गिरावट हो रही है. आखिर इस गिरावट की असली वजह क्या है? इसे थोड़ा समझना होगा.
क्यों फेल हुआ आर्कुट और कामयाब रहा फेसबुक?
भारत में फेसबुक के आने से पहले गूगल का सोशल नेटवर्क ऑर्कुट काफी लोकप्रिय था. लेकिन फेसबुक के उभार के बाद लोगों का ऑर्कुट से क्रेज समाप्त हो गया और फिर 30 सितंबर 2014 को गूगल ने ऑर्कुट को बंद कर दिया. ऑर्कुट और फेसबुक में कुछ बुनियादी समानता थी. आप वहां पर दोस्त बना सकते थे. रिश्तेदारों को जोड़ सकते थे. तस्वीरें साझा कर सकते थे और कुछ लिख भी सकते थे. लेकिन साथ ही इसमें एक बड़ा बुनियादी फर्क था. ऑर्कुट एक वेल्यू सिस्टम पर बना सोशल नेटवर्क था और उसमें ताक-झांक की इजाजत नहीं थी.
अगर कोई किसी और के प्रोफाइल पेज पर जाकर उसके बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करता तो इसकी जानकारी उस व्यक्ति को हो जाती थी. लेकिन फेसबुक पर यह गोपनीय रहता है. मतलब यहां कोई भी व्यक्ति किसी भी दूसरे व्यक्ति के प्रोफाइल पेज में जाकर बड़ी आसानी से ताक-झांक कर सकता था और निश्चिंत रह सकता था कि सामने वाले को इसकी भनक नहीं लगेगी.
इसलिए फेसबुक एक ऐसा दोस्त बना जो हमारी सारी कुंठाओं को सुरक्षित रखते हुए हमें दूसरों के जीवन में झांकने का अवसर देता था. इसमें रोमांच/ किक/ नशा था और धीरे-धीरे इसने बहुत से लोगों को मानसिक तौर पर अपनी गिरफ्त में ले लिया. यह कुछ वैसा ही था कि कोई युवा किसी किक के चक्कर में सिगरेट, शराब पीने लगे और उसमें उसे मजा आने लगे.
फेसबुक के रोमांच में खलल
कुछ साल पहले फेसबुक यूजर्स के इस रोमांचकारी अहसास में खलल पड़ने लगा. दूसरों के जीवन में ताक झांक करने और अपने पेज पर दिखावा करने में जुटे लोगों को यह अहसास होने लगा कि जिस तरह वह दूसरों के जीवन में झांक रहे हैं ठीक वैसे ही कोई उनके जीवन में घुस रहा है. हालांकि इसमें एक तबका ऐसा भी था तो पूरी ईमानदारी के साथ फेसबुक पर आया था और उसके लिए प्राइवेसी का मसला बहुत बड़ा मसला था. और निजी जीवन में गैर लोगों की ताक झांक से वह तबका सबसे पहले बेचैन हुआ.
मगर लत लग चुकी है. एक सर्किल भी बन गया है और कुछ खास लोग भी जुड़े हैं. उनसे बात करने में मजा आता है. इसलिए प्राइवेसी पर मंडराते खतरों के बावजूद लोगों को फेसबुक छोड़ना ठीक नहीं लगा. उन्हें ऐसे उपाय की जरूरत थी जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मतलब थोड़ा बहुत दूसरों के बारे में पता चलता रहा, लेकिन थोड़ी प्राइवेसी भी रहे.
यही सोच कर लोगों ने फेसबुक पर सख्त प्राइवेसी सेटिंग के लिए दबाव बढ़ना शुरू किया. लोगों ने जुकरबर्ग एंड कंपनी से यह पूछा कि किसी गैर को बिना इजाजत उनकी तस्वीरें देखने का क्या हक है? उनके पोस्ट पढ़ने का क्या हक है? दबाव में जुकरबर्ग एंड कंपनी ने लोगों को कुछ अधिकार दिए.
इनके तहत उन्हें अपनी तस्वीरों और अपनी तमाम एक्टिविटी को पब्लिक करने या फिर दोस्तों और खुद तक सीमित रखने का अधिकार मिला. परेशान करने वालों को ब्लॉक करने का अधिकार मिला. जितने अधिकार मिले फेसबुक पर टाइम स्पेंट उतना ही कम होता गया.
आखिर फेसबुक ने कौन सा अधिकार किसी को नहीं दिया?
फेसबुक ने यह सब अधिकार दिए, लेकिन एक अधिकार नहीं दिया. यह जानने का अधिकार कि आखिर कौन-कौन मेरे फेसबुक पेज पर आकर ताक-झांक कर गया है. यही वो बुनियादी “फन एलिमेंट” है जो फेसबुक को जिंदा रखे हुए है. जिस दिन यूजर्स को यह अधिकार मिला उस दिन इसका “फन एलिमेंट” खत्म हो जाएगा और लोग दूसरे विकल्पों की तलाश करने लगेंगे.
लेकिन किसी भी “फन एलिमेंट” की एक सीमा होती है. जैसे मृत्यु के भय और जिंदगी जीने की चाहत में, अपनों से मोहब्बत में बड़े से बड़ा नशेड़ी लत छोड़ देता है, ठीक वैसे ही जब अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा तो फन एलिमेंट की अहमियत खत्म हो जाती है. कैंब्रिज एनालिटिका की वजह से फेसबुक विश्वसनीयता संकट के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. यूजर्स विश्वासघात के अहसास से घबराए हुए हैं. यह घबराहट भारत जैसे उन देशों में ज्यादा है जहां नैतिकता का दायरा संकीर्ण है. जहां एक तस्वीर किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकती है. उम्मीद है कि जुकरबर्ग को इस खतरे का अंदाजा होगा.
चुनौती की आहट भर से व्हाट्स ऐप और इंस्टाग्राम को खरीदा
अब आते हैं क्या फेसबुक का कोई विकल्प तैयार हो सकता है जो उससे बेहतर हो और उसमें निजता भी सुरक्षित रहे? यह हम बात कर चुके हैं कि फेसबुक की कामयाबी की बड़ी वजह इसका फन एलिमेंट है.
लेकिन सोशल नेटवर्क पर इसके वर्चस्व की एक और बड़ी वजह है. अब तक जिसमें भी फेसबुक को चुनौती देने की क्षमता थी, इसने शुरुआती दौर में ही उसकी पहचान करके खरीद लिया. व्हाट्स ऐप और इंस्टाग्राम इसके बड़े उदाहरण हैं. इंस्टाग्राम में वो क्षमता थी कि कुछ बदलावों के साथ भविष्य में फेसबुक को चुनौती दे सके. लेकिन अब वो भी फेसबुक का ही है.
फेसबुक मैसेंजर से आगे निकल रहे व्हाट्स ऐप को 2014 में 24 अरब डॉलर में खरीद कर सोशल नेटवर्क पर फेसबुक ने ये चुनौती भी खत्म कर दी. इसलिए अगर किसी को फेसबुक से आगे निकलना है तो उसे बहुत स्मार्ट होना होगा. फिलहाल ऐसा कोई भी नजर नहीं आ रहा जो जुकरबर्ग एंड कंपनी को चुनौती दे सके.
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