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क्या यूपी में सीएम कैंडिडेट के ऐलान से बीजेपी को फायदा होगा?

क्या उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करने से बीजेपी को मदद मिलेगी?

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ताजा सर्वे में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए जितनी अच्छी खबरें हैं, उससे कहीं ज्यादा बुरी खबरें हैं. जहां पार्टी के लिए राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले काफी बेहतर नतीजे नजर आ रहे हैं, वहीं 2014 के आम चुनाव के मुकाबले वोट शेयर में 16 प्रतिशत की कमी भी बड़ी चिंता का विषय है.

दूसरे शब्दों में कहें, तो बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में मिले वोटों का 60 प्रतिशत ही रोक पाना संभव दिख रहा है. ऐसी क्या गलती हुई कि सिर्फ दो साल में ही इस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है.

सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे में कुछ सवालों के जवाब हैं. जहां केंद्र सरकार के सामने उम्मीदों का पहाड़ काफी बड़ा था, वहीं बीजेपी को वोट देने वाले (52%) लोगों का मानना है कि पीएम ‘अच्छे दिन’ लाने में असफल रहे हैं. सर्वे के मुताबिक, इस तरह की प्रतिक्रिया दलितों की तरफ से सबसे ज्यादा आई.

तो ‘अच्छे दिन’ नहीं आए हैं!

यूपी के वोटर्स के बीच यह अवधारणा बीजेपी को ज्यादा परेशान कर रही है कि पिछले दो साल में कीमतें बहुत तेजी से बढ़ी हैं. इसके अलावा पार्टी के सांसदों के प्रति भी असंतुष्टि‍ की भावना बढ़ी है. यदि यूपी में बीजेपी के लिए सत्ता हासिल करने का कोई भी मौका है, तो यह पार्टी के लिए ‘लोहे के चने चबाने’ से कम नहीं होगा.

अब सवाल उठता है कि क्या सीएम कैंडिडेट घोषित करने से बीजेपी को मदद मिलेगी?

सर्वे में साफ है कि कोई भी उम्मीदवार यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की पॉपुलैरिटी का मुकाबला नहीं कर सकता. केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का इसमें तीसरा नंबर है.

ऐसी भी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि बीजेपी राजनाथ सिंह को सीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश कर सकती हैं. लेकिन सर्वे के नतीजे कहते हैं कि इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

यूपी में बीजेपी का सीमित सामाजिक आधार

बीजेपी के लिए बगैर किसी सेनापति के लड़ना ही एकमात्र समस्या नहीं है. बीजेपी के पास लिमिटेड संपत्तियों के नाम पर सिर्फ अगड़ी जातियों के कुछ वोट हैं. पार्टी को और अच्छा करने के लिए अन्य समूहों को भी अपने साथ जोड़ना होगा. हालांकि जो भी दूसरे सामाजिक ग्रुप बीजेपी के साथ जुड़े हैं वे पिछले एक या दो साल में ही जुड़े हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत कहीं न कहीं अपर कास्ट, गैर यादव, ओबीसी और गैर जाटव दलितों के सपोर्ट की वजह से थी. ताजा सर्वे बताता है कि दलित अपने वापस अपनी परंपरागत पार्टी की तरफ लौट गया है, साथ ही ओबीसी और अपर कास्ट के वोट शेयर में भी कमी आई है.

स्नैपशॉट
  • सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, यूपी में वोटरों की बड़ी संख्या ‘अच्छे दिन’ का इंतजार कर रही है
  • सर्वे के नतीजे कहते हैं कि बीजेपी का वोट शेयर तेजी से गिर रहा है
  • सीएम कैंडिडेट को घोषित करने से गुटबाजी को बढ़ावा मिल सकता है
  • राजनाथ सिंह यूपी के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ अच्छे संबंध रखते हैं

2014 के मुकाबले समर्थन में कमी

सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के मुताबिक, जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में 45 प्रतिशत गैर जाटव दलितों ने बीजेपी के लिए वोट किया था, उनमें से सिर्फ 16 प्रतिशत लोग ही अब विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वोट करना चाहते हैं. वहीं लोअर ओबीसी ने 2014 के आम चुनाव में 60 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था, उनमें सिर्फ 38 पर्सेंट लोग ही पार्टी को फिर से वोट देना चाहते हैं.

राजनाथ सिंह सीएम कैंडिडेट बने तो...?

राजनाथ सिंह को सीएम कैडिडेट बनाए जाने पर गिरते समर्थन में कमी आए, ऐसा नहीं लगता है. हालांकि इसकी संभावना काफी ज्यादा हैं कि इसमें और तेजी आए. अपर कास्ट बीजेपी के पीछे रही है. हालांकि इसमें अंतर्विरोध हैं.

लेकिन राजनाथ सिंह को सीएम कैंडिडेट घोषित करने पर ब्राह्मण वोट पार्टी से विमुख हो सकते हैं. कांग्रेस यूपी में तेजी से ब्राह्मण वोटों को रिझाने की कोशिश कर रही है. हालांकि सेनापति के आने से पूरी सेना को उत्साहित करने में मदद मिलती है.

राजनाथ सिंह ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं जो पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं. नरम और शांत नेता होने के नाते राजनाथ गैर पारंपरिक वोटर को रिझाने में मददगार साबित हो सकते हैं.

अपने पिछले मुख्यमंत्री कार्यकाल में राजनाथ खुद को अच्छा प्रशासक साबित करने में कामयाब रहे हैं. लेकिन इन सभी उपलब्धियों के बावजूद राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेता के लिए भी यह किसी चुनौती से कम नहीं होगा कि वह बीजेपी के लिए जीतने लायक जमीन तैयार कर सकें.

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