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बेहद खतरनाक है POK में चीन की मौजूदगी, भारत को उठाने होंगे ठोस कदम

पाक में मौजूदगी बढ़ाने से चीन को रणनीतिक ही नहीं, आर्थिक फायदे भी हैं, लिख रहे हैं राजीव शर्मा. 

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भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा (LoC) पर चीनी सैनिकों के बड़ी संख्या में इकट्ठा होने की खबरों पर भारत को सतर्क हो जाना चाहिए. खबरों के मुताबिक चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के अधिकारी और जवान बड़े पैमाने पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में LoC की चौकियों पर पहुंच रहे हैं.

चीन और पाकिस्तान का POK में इकट्ठा होने का मतलब है एक साथ कई कारगिल जैसी स्थितियां बनना. ऐसे में भारत के लिए सिर्फ चीन की पाकिस्तान में उपस्थिति का विरोध भर जता देना काफी नहीं होगा.

चीन की रणनीति हाल ही में उत्तरी कश्मीर के नौगांव सेक्टर की चौकियों के सामने POK की चौकियों पर चीनी सैन्य अधिकारियों के देखे जाने की खबरें परेशान करने वाली हैं. इसके अलावा सीमा के नजदीकी रेडियो इंटरसेप्ट भी यही बता रहे हैं कि चीनी सिपाही चीन-पाकिस्तान सीमा पर इकट्ठा हो रहे हैं, ताकि वे LoC पर बुनियादी ढांचा खड़ा कर सकें.

पाकिस्तान के भीतर चीनी सेना का होना भारतीय सुरक्षा ढांचे के लिए सबसे बुरा सपना साबित हो सकता है: भारत से दुश्मनी रखने वाले दो पड़ोसियों का एकसाथ आना दिल्ली के लिए बड़ी मुसीबत बनने का पूरा माद्दा रखता है.

चीन की रणनीति भारत की सुरक्षा व्यवस्था की जड़ों को खोदकर उन्हें कमजोर कर देने की है. चीन का एक लॉंग टर्म ऑब्जेक्टिव है, बिना किसी भी तरफ से एक गोली चलाए भारत को घुटनों पर ले आना. चीन की दो सहस्राब्दि पुरानी युद्ध कला का ये सबसे बेहतरीन नमूना है, जो इन दिनों सामने आ रहा है.

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स्नैपशॉट

चीन की छिपी हुई चाल

  • चीनी सैनिकों का पाकिस्तान में नजर आना ‘कारगिल’ की याद दिलाता है.
  • LoC पर चीन की कार्रवाई CPEC कॉरिडोर की सुरक्षा के मद्देनजर है, जो चीन और पाकिस्तान के लिए आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होगा.
  • पाकिस्तान CPEC कॉरिडोर से कम से कम $4600 करोड़ कमाने की उम्मीद कर रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.
  • नई दिल्ली को डर है कि पाकिस्तान चीन के लिए ‘वैसल स्टेट’ बनता जा रहा है, जो भारत के लिए एक अच्छी स्थिति नहीं है.

आर्थिक हितों की सुरक्षा

हाल में उठाए गए कदम चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (CPEC) की सुरक्षा के लिए हैं, जो चीन के लिए खाड़ी देशों और उनसे भी आगे तक पहुंचना आसान कर देगा.

पाकिस्तान को फौरी तौर पर मिलने वाला $4600 करोड़ का CPEC सालों से मंदी में चल रही पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत देगा. अगर CPEC के सारे प्रॉजेक्ट्स की कीमत आंकी जाए तो वो 1970 से अब तक पाकिस्तान को मिले फॉरेन डाइरेक्ट इनवेस्टमेंट के बराबर होगी.

और अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, चीन CPEC की पहली फेज को अगले साल के अंत तक पूरा कर लेना चाहता है और उसके अगले तीन सालों में बाकी बचे पूरे प्रॉजेक्ट को.

बेशक CPEC से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को वो सहारा मिलेगा, जिसकी उसे बेहद जरूरत है और पाकिस्तान उतना ताकतवर हो जाएगा, जितना अब तक कभी नहीं हुआ.

पाकिस्तान को CPEC के फायदे

CPEC के तहत बनने वाले बुनियादी ढांचे पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को दक्षिण-पश्चिमी चीन के स्वायत्त इलाके शिनजियांग से हाइवे और रेलवे के द्वारा जोड़ देंगे. इसके अलावा कराची और लाहौर के बीच 1,100 किलोमीटर लंबी मोटरवे बनाई जाएगी.

चीनी सीमा और रावलपिंडी के बीच काराकोरम हाइवे को भी और चौड़ा किया जाएगा. कराची पेशावक मुख्य रेलवे लाइन का जीर्णोद्धार किया जाएगा, ताकि उस पर 160 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से यात्रा की जा सके.

लिक्विड नेचुरल गैस और तेल को ले जाने के लिए पाइपलाइन का जाल भी बिछाया जाएगा, जिसमें $250 करोड़ का ग्वादर और नवाबशाह के बीच का पाइपलाइन प्रॉजेक्ट भी शामिल है, जिसे ईरान से गैस लेने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.

भारत के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है. यह एक दोहरा झटका है. अगर पूरे CPEC रूट पर चीनी सिपाहियों को तैनात किया गया, तो भारत चीन-पाकिस्तान के बीच के चक्रव्यूह में फंस जाएगा.

वैसल स्टेट

पिछले कई सालों से भारत POK में चीनी सैनिकों की मौजूदगी का विरोध कर रहा है, जो कारोकोरम हाइवे की मरम्मत के बहाने वहां जाते रहे हैं. लेकिन अगर और अधिक चीनी सैनिकों को हजारों की संख्या में पाकिस्तान में तैनात कर दिया गया, तो बेशक यह भारतीय सुरक्षा ढांचे की नींद उड़ा देगा.

इसके अलावा पाकिस्तान चीन के लिए एक सैटेलाइट की तरह हो जाएगा. इस वक्त पाकिस्तान भारत को मुसीबत में डाल देने की हद तक चीन के करीब है. लेकिन अगर मौजूदा हालातों को बिना कोई कदम उठाए नजरअंदाज कर दिया गया, तो पाकिस्तान को चीन का वैसल स्टेट बनने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि यह स्थिति भारत के लिए एक बड़े खतरे की तरह है. मोदी सरकार को इस पर कार्रवाई करनी होगी और वो भी बिना वक्त जाया किए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और रणनीतिक विश्लेषक हैं.)

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