बात उन दिनों की है, जब अमिताभ बच्चन अपनी जिंदगी में संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे. वो इतने परेशान हो चुके थे कि एक दिन उन्होंने अपने पिता और कवि हरिवंश राय बच्चन से पूछ लिया था कि, "आपने हमें पैदा ही क्यों किया?" बेटे के मुंह से ये सवाल सुनकर पिता हैरान हो गए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अपने बेटे को इसका जवाब किस तरह दें. फिर अगले दिन उन्होंने एक कविता के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. इस पूरे किस्से को अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा है. यहां क्लिक करके आप भी सुनिए वो दिलचस्प किस्सा और कविता -
बेरोजगारी ने कर दिया था हताश
दरअसल, पढ़ाई पूरी करने के बाद अमिताभ नौकरी की तलाश में दिल्ली गए थे, वहां उन्होंने कई जगह पर नौकरी की तलाश की, लेकिन कहीं भी उन्हें नौकरी नहीं मिली. यहां तक कि आकाशवाणी में भी उन्हें ये कहते हुए अनाउंसर की नौकरी नहीं दी गई कि उनकी आवाज इस लायक नहीं है. इसी वजह से युवा अमिताभ बेहद हताश और परेशान हो चुके थे. एक दिन बेरोजगारी से हतोत्साहित होकर उन्होंने पहली बार अपने पिता के सामने जाने का फैसला किया. वो सीधे हरिवंश राय बच्चन के कमरे में घुसे और ऊंची आवाज में पूछा - "आपने हमें पैदा ही क्यों किया?" बेटे का ये सवाल सुनते ही हरिवंश जी चुप हो गए. हैरान पिता काफी देर तक अपने बेटे की ओर देखते रहे. उस वक्त वो अपने बेटे के सवाल का कोई जवाब नहीं दे पाए. कमरे में काफी देर तक सन्नाटा था. पिता से कोई जवाब न मिलने पर युवा अमिताभ को भी असहजता महसूस हुई और वे चुपचाप वहां से चले गए.
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सुबह मिली 'नयी लीक'
वो रात अमिताभ के लिए बड़ी बेचैनी भरी थी. अगले दिन सुबह हरिवंश राय अमिताभ के कमरे में आये, उन्हें जगाया और उनके हाथ में एक लिफाफा थमाकर चले गए. अमिताभ ने जब वो लिफाफा खोला तो उसमें एक कागज पर एक कविता लिखी थी, जिसे हरिवंश राय ने अमिताभ के लिए लिखी थी. उस कविता का नाम था. ‘नयी लीक’, जिसके शब्द थे-
नयी लीक
जिंदगी और जमाने की कशमकश से घबराकर,
मेरे लड़के मुझसे पूछते हैं,
"हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवा
कोई जवाब नहीं है कि,
मेरे बाप ने भी मुझसे बिना पूछे
मुझे पैदा किया था
और मेरे बाप से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें
और मेरे बाबा से बिना पूछे ,उनके बाप ने उन्हें...
जिंदगी और जमाने की कशमकश
पहले भी थी,
अब भी है, शायद ज्यादा,
आगे भी होगी, शायद और ज्यादा…
तुम ही नई लीक धरना,
अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना !
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